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भारत के इन अफसरों ने देश की सुरक्षा के लिए गंवाई अपना जान, पढ़ें उनकी गौरव गाथा

Indian Martyr

इस साल 15 अगस्त को भारत 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। देश को आज़ादी दिलाने के लिए सैंकड़ो लोगों ने अपनी जान दे दी। वहीं, आज़ादी के बाद भी अपराधियों और गुनहगारों से देश की रक्षा करने लिए हमारे सिविल सर्वेंट हमेशा तैयार रहते हैं। आज हम उन बहादुर अधिकारियों के योगदान को याद कर रहे हैं, जिन्होंने असाधारण वीरता और साहस का परिचय दिया है। 

हम उन सिविल सर्वेंट्स के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अपनी जान की फिक्र किए बिना, देश को सबसे आगे रखा।

1. सिविल सर्वेंट सत्येंद्र दूबे (IES)

Satyendra Dubey, IES

सत्येन्द्र कुमार दूबे का जन्म बिहार के सिवान जिले में हुआ था। आईईएस की परीक्षा में सफल होने के बाद, साल 2002 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में प्रोजेक्ट डायरेक्टर का पद मिला। इस पद पर काम करते समय उन्हें गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिला। 

यहां काम करने के दौरान, उन्होंने देखा कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है। यह देख वह चुप नहीं रह सके। अटल बिहारी वाजपेयी को लिखे एक लंबे पत्र में उन्होंने दोषियों का पर्दाफाश किया, लेकिन इस कहानी का अंत अच्छा नहीं हुआ। 2003 में उनकी हत्या कर दी गई।

हालांकि, उनकी मृत्यु व्यर्थ नहीं गई। उनकी मृत्यु के बाद, 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया गया था।

2. नरेंद्र कुमार (IPS)

IPS officer Narendra Kumar

साल 2009 बैच के आईपीएस नरेंद्र कुमार, मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में एसडीओपी के पद पर तैनात थे। उन्होंने अवैध खनन के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था। सिविल सर्वेंट नरेंद्र कुमार के इस काम से जहां स्थानीय लोग उनकी प्रशंसा कर रहे थे, वहीं वह खनन माफियाओं के आंखों का कांटा बन गए थे।

मार्च 2012 में अफसर नरेंद्र कुमार को अवैध खनन की सूचना मिली थी और वह कार्रवाई करने पहुंचे थे। जब उन्होंने अवैध पत्थर ले जाते एक ट्रैक्टर को रोकने की कोशिश की तो ड्राइवर ने उनपर ट्रैक्टर चढ़ा दिया जिसमें उनकी जान चली गई।

3. सिविल सर्वेंट रणधीर प्रसाद वर्मा (IPS)  

Randhir Prasad Verma, IPS

रणधीर प्रसाद वर्मा का जन्म बिहार के सुपौल जिले के जगतपुर नामक गाँव में हुआ। 1974 में वह भारतीय पुलिस सेवा से जुड़े। धनबाद शहर में उनका काफी बोलबाला था क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई आपराधिक गिरोहों का सफाया कर दिया था। 

ऐसी ही एक घटना 3 जनवरी 1991 को भी हुई। बैंक ऑफ इंडिया की हीरापुर शाखा में डकैती के दौरान, कर्मचारियों को बंधक बना लिया गया था। वर्मा मौके पर पहुंचे और कर्मचारियों की जान बचाने के लिए अकेले ही लुटेरों से मुकाबला किया। दुर्भाग्य से इस घटना में उन्हें गोली लगी और उनकी जान चली गई।

उन्हें वीरता के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके सम्मान में साल 2004 में स्मारक डाक टिकट भी जारी किया था।

4. एस पी महंतेश (एडिमिनिस्ट्रेटिव ऑफिस)

SP Mahantesh

एसपी महंतेश, कर्नाटक प्रशासनिक सेवा के वरिष्‍ठ अधिकारी थे। उनकी ईमानदारी के कारण उन्हें विह्सिल ब्लोअर माना जाता था। नौकरी में आने के बाद से ही वह हर घोटाले की जड़ तक पहुंचकर उनका पर्दाफाश करना चाहते थे।

न्याय को सामने लाने की इस कोशिश में मई 2013 में बदमाशों के गुट ने सिविल सर्वेंट महंतेश पर बेरहमी से हमला कर दिया। उन्हें सिर पर गंभीर चोटें लगीं। पांच दिनों तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद, उन्होंने अंतिम सांस ली।

5. शानमुगम मंजूनाथ (ग्रेड ए ऑफिसर)

Shanmugam Manjunath

सिविल सर्वेंट शनमुगम मंजूनाथ, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में सेल्स ऑफिसर (ग्रेड ए अधिकारी) थे। लखनऊ में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन में ग्रेड ए अधिकारी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, मंजूनाथ ने लखीमपुर खीरी में दो पेट्रोल पंपों को सील करने का आदेश दिया था।

इन पेट्रोल पंपों पर तीन महीने से मिलावटी ईंधन बेचा जा रहा था। जब पंप ने फिर से काम करना शुरू किया, तो उसने नवंबर 2005 में एक छापेमारी की, लेकिन निरीक्षण के दौरान उन्हें गोली मार दी गई।

अपने कर्तव्य का पालन करते हुए, देशहित में वीरगति को प्राप्त इन सभी अधिकरियों को द बेटर इंडिया का सलाम।

संपादनः अर्चना दुबे

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