कॉमनवेल्थ खेलों में पहली बार भारत ने लॉन बॉल में गोल्ड मेडल जीता। यह एक ऐसी कामयाबी थी, जिस पर अभी भी लोग खुली आंखों से भरोसा नहीं कर पा रहे। मेडल हासिल करने वाली टीम में स्किप सदस्या के तौर पर रूपा रानी तिर्की भी शामिल थीं।
कॉमनवेल्थ में स्वर्णिम सफलता के बाद, वह बेहद उत्साहित हैं। इस कामयाबी के लिए उन्होंने कैंप में रोज़ 8-8 घंटे प्रैक्टिस की थी। यहां तक कि जनवरी में उनकी शादी को एक महीना ही हुआ था, जब उन्हें कैंप के लिए बुला लिया गया। रूपा ने नए नवेले ससुराल, नई नवेली शादी किसी के बारे में एक पल नहीं सोचा। पति की ‘हां’ के साथ बैग पैक कर सीधे कैंप में आ गईं। उनकी स्मृतियों में अभी भी वह क्षण कैद है, जब लॉन बॉल में गोल्ड मिलने पर उनके हाथ में तिरंगा और आंखों में आंसू थे।
रूपा ने द बेटर इंडिया से खास बातचीत की और बताया, “मैंने जॉब से 5 महीने की छुट्टी लेकर पूरा फोकस केवल लॉन बॉल पर किया। मैंने इससे पहले 2010 कॉमनवेल्थ खेलों के लिए भी ट्रायल दिया था और इस खेल में शिरकत की थी। बेशक उस वक्त हम कोई मेडल नहीं जीत सके, लेकिन मुझे पूरा भरोसा था कि एक दिन हम कॉमनवेल्थ में कोई न कोई मेडल जीतने में कामयाब रहेंगे। निरंतर फोकस और टीम के साथ घंटों प्रैक्टिस कर आखिरकार टीम ने यह कर दिखाया।”
2007 नेशनल गेम्स ने बदल दी रूपा रानी तिर्की के जीवन की दिशा
रूपा रानी तिर्की का लॉन बॉल की ओर कैसे झुकाव हुआ? इस बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया, “वह 2007 का साल था। असम में नेशनल गेम्स चल रहे थे। वहां लॉन बॉल की भी स्पर्धा रखी गई थी। वहीं इस खेल से मेरा पहला परिचय हुआ। जब मैंने इस खेल को ट्राई किया, तो मुझे लगा कि मैं इस खेल को बेहतर ढंग से खेल सकती हूं। वहां मेरा प्रदर्शन बेहतर रहा।”
झारखंड लौटने पर प्रदेश सरकार ने रूपा को सम्मानित किया और हौसला अफजाई की। इससे उनका हौसला और बढ़ा। उन्हें उनका लक्ष्य सामने दिख रहा था और उन्होंने इस खेल में मेहनत करनी शुरू की, जिसका नतीजा आज सभी के सामने है।
रूपा रानी तिर्की की शादी इसी वर्ष जनवरी में हुई। वह झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले स्थित चाईबासा की बहू बनी हैं। उनके पति वहां रोड कंस्ट्रक्शन के काम में हैं।
क्या रूपा रानी तिर्की को पति से पूरा सहयोग मिला?
इस प्रश्न के जवाब में रूपा ने कहा, “शादी को एक ही माह हुआ था। मेरे पति का खेलों से कभी कोई जुड़ाव नहीं रहा। जब कॉमनवेल्थ खेलों में हिस्सेदारी की बात आई, तो मैंने उनसे कहा, भविष्य का नहीं पता, मुझे इस बार खेल लेने दो। उन्होंने भी मना नहीं किया और कहा, जाओ तुम्हारी इच्छा है, तो तुम खेलकर आओ। आज इस उपलब्धि पर पति को भी गर्व है।”
बहुत से लोग यह समझते हैं कि रूपा ने कबड्डी छोड़ दी है, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने बताया, “मैं अभी भी कबड्डी खेलती हूं। दरअसल, किसी खेल में दिलचस्पी होना एक अलग बात है, लेकिन दिक्कत यह है कि झारखंड में कबड्डी का खेल काफी पिछड़ा हुआ है। यही वजह है कि मैं इंडिविजुअल गेम में बेहतर करना चाहती थी, इसका मौका मुझे लॉन बॉल से मिला। ऐसे अनेक खिलाड़ी हैं, जिनकी दिलचस्पी किसी अन्य खेल में भी है, लेकिन वे लॉन बॉल में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
रूपा का अधिकांश समय झारखंड के रांची में ही बीता है और वहीं रामगढ़ में उनकी जॉब भी है, लेकिन उन्होंने अपनी बीपीएड यानी बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन की डिग्री, दिल्ली विश्वविद्यालय से हासिल की है। रूपा का कहना है कि उन्हें बचपन से ही खेलों में दिलचस्पी थी, यही वजह थी कि उन्होंने जब करियर बनाने के बारे में सोचा, तो फिजिकल एजुकेशन उसमें टॉप पर था। खेलों में आगे बढ़ने के लिए अनुशासन और कड़ा अभ्यास सबसे ज़रूरी होता है। अन्य खिलाड़ियों को प्रेरित करने के लिए भी आपको इन गुणों को आत्मसात करना पड़ता है।”
कोरोना काल अभ्यास के लिए अमृत काल साबित हुआ
रूपा रानी तिर्की कहती हैं कि बेशक कोरोना महामारी लोगों के लिए मुसीबत बनकर आई, लेकिन बात प्रैक्टिस की करें, तो यह काल अमृत काल साबित हुआ। उनकी जॉब को केवल एक ही साल हुआ था। ऐसे में पांच माह का अवकाश मिल गया। सुबह 4 घंटे और शाम को 4 घंटे मिलाकर दिन में कुल 8 घंटे की प्रैक्टिस गेम के लिए करनी होती थी।
अब जब जॉब पर लौटना होगा, तो हो सकता है कि सब कुछ एक साथ मैनेज करने और एडजस्ट करने में थोड़ी मुश्किल हो। इसकी वजह यह है कि सभी स्कूल वगैरह खुल चुके हैं। कितने घंटे काम होगा, प्रैक्टिस कितने घंटे हो पाएगी, यह सब कुछ उस पर निर्भर करेगा।
1800 में तय किए गए थे इस खेल के नियम
अभी तक भारत में लॉन बॉल के खेल को स्पाॉन्सर तक मिलने में परेशानी होती थी, लेकिन रूपा रानी तिर्की को पूरा भरोसा है कि कॉमनवेल्थ खेल 2022 की स्वर्णिम कामयाबी, लॉन बॉल के खेल को भारत में जड़ें जमाने में सहायता करेगी। एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा, जब लॉन बॉल भारत में भी इंग्लैंड की तरह फुटबॉल से अधिक लोकप्रिय होगा।
रूपा बताती हैं, लॉन बॉल के नियम 1800 के आस-पास तय किए गए। कोलकाता में यह खेल खूब लोकप्रिय भी रहा। केवल 1966 को छोड़ दिया जाए, तो लॉन बॉल प्रत्येक कॉमनवेल्थ खेलों का हिस्सा रहा है। इंग्लैंड का तो यह प्रमुख खेल है ही। वहां कई सालों से खेला जा रहा है।
इसके अलावा, यह खेल आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में भी प्रमुखता से खेला जाता है। इस समय इंग्लैंड में लॉन बॉल के सैकड़ों क्लब हैं। निचले स्तर से और कम उम्र में ही खिलाड़ी इस खेल से जुड़ जाते हैं, जो उन्हें आगे निखरने में मदद करता है।
हमें उम्मीद है कि इस जीत के साथ ही भारत में भी लॉन बॉल की ओर खिलाड़ियों और दर्शकों दोनों का झुकाव बढ़ेगा।
संपादनः अर्चना दुबे
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