सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट की मानें, तो हर साल देश में 4000 से ज़्यादा साइकिल सवार, सड़क हादसों में अपनी जान गवां देते हैं और इसकी एक अहम वजह है साइकिल में ब्लिंकिंग लाइट्स का ना होना।
सिर्फ एक सेफ्टी लाइट के कारण, साइकिल सवारों को कोहरे और अँधेरे में देख पाना आसान हो सकता है। लेकिन इस गंभीर समस्या के इस आसान समाधान के लिए शायद ही कोई NGO काम कर रही है। ऐसे में लखनऊ की सड़क पर चलनेवाली हर एक साइकिल में सेफ्टी लाइट लगी हो, इस बात का खास ख्याल रखती हैं 23 साल की खुशी पाण्डेय।
वह अपनी संस्था ‘सपनों की उड़ान फाउंडेशन’ के ज़रिए प्रोजेक्ट उजाला नाम से यह मुहिम चला रही हैं और रात को खुद घूम-घूमकर बिन लाइट वाली साइकिल में लाइट लगाती हैं। खुशी पिछले छह सालों से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं और अब तक वह 1500 से ज़्यादा साइकल्स पर फ्री में लाइट लगा चुकी हैं।
बचपन से ही ज़रूरतमंदों के प्रति हमदर्दी रखने वाली खुशी ने काफी कम उम्र में ही फैसला कर लिया था कि उन्हें समाज सेवा के क्षेत्र में ही काम करना है। सड़क पर दिखनेवाले हर ज़रूरतमंद इंसान को खाना-कपड़े देने जैसे काम तो स्कूल के समय से ही करती आ रही हैं।
लेकिन जब वह 18 साल की हुईं, तब उन्होंने अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए एक संस्था बनाई।
लाइट गर्ल के नाम से हुईं मशहूर
मूल रूप से उन्नाव के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाली खुशी, लॉ की पढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने अपने परिवार की मदद से संस्था की शुरुआत की थी। हालांकि, वह महिलाओं की मेंस्ट्रुअल हाइजीन के लिए प्रोजेक्ट दाग, ज़रूरतमंदों को खाना देने के लिए प्रोजेक्ट अन्नपूर्णा, गर्मी में सड़क पर काम कर रहे लोगों के लिए प्रोजेक्ट छांव जैसे पांच अलग-अलग प्रोजेक्ट्स भी चला रही हैं।
लेकिन साइकिल में लाइट लगाना उनका सबसे अहम प्रोजेक्ट है, जिसे वह मिशन मोड पर चला रही हैं। उनका सपना है कि इस ठण्ड तक शहर की हर साइकिल में ब्लिंकिंग लाइट लग जाए। अपने काम को सही तरह से चलाने के लिए वह पढ़ाई के साथ तीन-तीन नौकरियां भी कर रही हैं।
हमें पूरी उम्मीद है कि रोड सुरक्षा के लिए लाइट गर्ल की यह कोशिश ज़रूर रंग लाएगी और आने वाले समय में कोई साइकिल सवार दुर्घटना का शिकार नहीं होगा। आप खुशी की संस्था और उनके काम में बारे में जानने के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर सम्पर्क कर सकते हैं।
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