शॉपिंग से पहले अक्सर मैं ज़रूरत के सामानों की एक सूची बनाती हूँ ताकि कुछ छूट न जाए। लेकिन हाइपरमार्किट से लौटते समय ज़रूरत के सामान के साथ-साथ और भी कई चीजें साथ में होती। थोड़ा समय बीतने पर लगता कि इसे क्यों खरीदा, जब यह काम ही नहीं आ रहा है। पिछले कुछ समय से मैं अपनी इस आदत को सुधारने में जुटी हुई हूँ और फिर लॉकडाउन ने तो यह अहसास करा ही दिया कि हम कम से कम में भी भरपूर जी सकते हैं। जी हाँ, शायद लॉकडाउन सबसे अच्छा समय और अनुभव है, जिससे हमें पूरी ज़िंदगी के लिए बेहतर सबक मिल रहा है- मिनिमलिस्ट लिविंग का यानी कि कम से कम में बेहतर ज़िंदगी जीना!
इस सिद्धांत को और अच्छे से समझने के लिए द बेटर इंडिया ने कुछ ऐसे लोगों से बात की जो लॉकडाउन के भी बहुत पहले से ‘मिनिमलिस्ट लाइफस्टाइल’ फॉलो कर रहे हैं। अपने साथ-साथ अपने पर्यावरण के बारे में भी सोचने वाले इन ‘मिनिमलिस्ट इंडियन्स’ ने न सिर्फ अपनी ज़िंदगी के बारे में बताया बल्कि दूसरे लोगों के लिए कुछ टिप्स भी साझा किए हैं।
1. उमा अय्यर, चेन्नई

सबसे पहले शुरूआत करते हैं चेन्नई में रहने वाली उमा अय्यर से। पिछले 9 सालों से आईटी सेक्टर में काम करने वाली उमा एक 4 साल के बेटे की माँ भी हैं। उमा बताती हैं कि उनका बचपन कोयम्बटूर में बहुत ही साधारण परिवार में गुजरा। लेकिन जैसे ही उन्होंने नौकरी के लिए चेन्नई जैसे बड़े शहर में कदम रखा तो उनकी ज़िंदगी अचानक से बदल गई। आसपास के लोगों को देखकर उनकी लाइफ भी फ़ास्ट शॉपिंग, फैशन ट्रेंड और दूसरी मटेरियलिस्टिक चीजों के इर्द-गिर्द घूमने लगी।
“लेकिन मेरे बेटे के जन्म के बाद मुझमें काफी बदलाव आया। उस वक़्त में बहुत कुछ पढ़ती थी और इस दौरान मैंने एक ब्लॉग, “The Minimalists” से काफी प्रभावित हुई। बस तभी से मैंने मिनिमलिस्ट और सस्टेनेबल लाइफस्टाइल की तरफ अपने कदम बढ़ाए,” उन्होंने आगे कहा।
उमा ने छोटे-छोटे कदमों से अपना सफर शुरू किया और आज वह बहुत हद तक कम साधनों में एक अच्छी और सस्टेनेबल ज़िंदगी जी रही हैं। उन्होंने अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कुछ ज़रूरी बदलाव किए जैसे:
1. सबसे पहले उन्होंने बाज़ार से ऐसे रसायन-युक्त उत्पाद लेना बंद किया जिनके प्राकृतिक विकल्प उन्हें मिल सकते हैं। टूथपेस्ट की जगह वह प्राकृतिक टूथपाउडर उपयोग करती हैं। साबुन की जगह रीठा का लिक्विड या फिर बेसन, शैम्पू के स्थान पर शिकाकाई पाउडर, कंडीशनर के लिए वह एलोवेरा, सरसों और गुलमोहर के फूलों से प्राकृतिक कंडीशनर बनाती हैं।
2. दूसरी सबसे अच्छी प्रैक्टिस हैं ‘रियूजिंग!’
“हर बार नए कपड़े खरीदने की अपनी आदत को मैंने बदला है। सबसे पहले मैं पुरानी चीजों को फिर से इस्तेमाल में लेने के बारे में सोचती हूँ। मैंने अपनी मम्मी और सास की बहुत-सी पुरानी साड़ियों से अपने लिए सूट सिलवाये हैं। साथ ही, मैं अपने बेटे के कपड़ों और खिलौनों को बहुत संभाल कर रखती हूँ ताकि ये खराब न हो और इन्हें कहीं पर ज़रूरतमंद बच्चों के लिए दिया जा सके।” इसके अलावा, वह अपने पुराने कपड़ों को ही मिक्स-मैच करके हर बार नया रूप देती हैं। ऐसे करने की प्रेरणा उन्हें एक इंस्टाग्राम अकाउंट (@my.minimal.journay) से मिली है।
3. तीसरा सबसे बड़ा बदलाव उन्होंने अपनी रसोई में किया। अक्सर खूबसूरत क्रॉकरी और नए डिज़ाइन के बर्तन हमारा मन मोह लेते हैं। इससे ढेरों बर्तन रसोई में जमा हुए रहते हैं, जिनकी हमें कभी ज़रूरत ही नहीं होती। इसलिए उमा ने अपनी किचन को डी-क्लटर किया। वह पुराने से पुराने बर्तनों को ही बार-बार इस्तेमाल करती हैं और प्लास्टिक की जगह उन्होंने कांच के डिब्बों को दी है।
“मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरी रसोई में सारे बर्तन एक जैसे नहीं है या फिर एक ढंग से नहीं रखे हैं। फर्क इस बात से पड़ता है कि क्या ज़रूरत का है और कौन बेकार रखा हुआ है। मुझे ख़ुशी है कि अब मेरी रसोई में कोई भी बिना काम की चीज़ आपको नहीं मिलेगी। इससे मेरी रसोई बहुत आसानी से मैनेज हो रही है,” उमा ने बताया।
वह आगे कहती हैं कि आप एक दिन में खुद को नहीं बदल सकते हैं और इसके लिए काफी प्लानिंग भी चाहिए होती है। इसलिए अक्सर लोगों को अपनी प्रोफेशनल लाइफ के साथ यह सब कर पाना मुश्किल लगता है। थोड़ा-सा मुश्किल है लेकिन अगर आप इसे अपनी आदत में ढाल लें तो आप हर बार कुछ भी करने से पहले खुद से सवाल करेंगे। जब आप सवाल करना सीख जाएंगे तो इसके उत्तर भी आप ही खोजेंगे।
खास टिप: एक-दूसरे से कपड़े मांगकर पहनना! आपके करीब कोई न कोई ऐसा शख्स ज़रूर होता है जिसे आपके कपड़े पहनने में या फिर आपको उनके कपड़े पहनने में कोई परेशानी नहीं होती। इसलिए हर बार नए कपड़े खरीदने से बढ़िया है कि आप एक-दूसरे से लेकर कपड़े पहनें, खासकर कि शादी-ब्याह जैसे आयोजनों के लिए!
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2. साईं रामा कृष्णा, गुरुग्राम

उमा अय्यर के बाद, हमने बात की आंध्र-प्रदेश के साईं रामा कृष्णा से, जो फ़िलहाल गुरुग्राम में रह रहे हैं। रामा एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं और एक मल्टी-नेशनल कंपनी में काम करते हैं। अपने सफर के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि वह चेन्नई ट्रैकिंग क्लब के सदस्य हैं। इस क्लब के सभी सदस्यों को प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के लिए प्रेरित किया जाता है। रामा ने भी उनकी बातों पर गौर करते हुए इस विषय पर काफी कुछ पढ़ा और जाना कि कैसे प्लास्टिक दिन-प्रतिदिन हमारे प्राकृतिक संसाधनों में घुलता जा रहा है।
“मैंने ठान लिया कि मैं कम से कम प्लास्टिक इस्तेमाल करूंगा। प्लास्टिक को कम करने से शुरू हुआ मेरा सफर, अब एक मिनिमलिस्ट लाइफस्टाइल में बदलने लगा है। पिछले एक साल से मैंने ऐसी बहुत सी आदतें अपनाई हैं जो मेरे साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी सही हैं,” उन्होंने आगे बताया।
1. रामा ने सबसे पहले प्लास्टिक के कचरे को कम से कम करने का फैसला लिया। उन्होंने तय किया कि अगर उनके घर में प्लास्टिक आएगा तो भी यह उनके घर के बाहर लैंडफिल या फिर किसी नदी-नाले में नहीं जाएगा। बल्कि वह प्लास्टिक को इकट्ठा करते हैं और जब भी वह हैदराबाद जाते हैं तो वहां प्लास्टिक वेस्ट कलेक्शन सेंटर को यह प्लास्टिक दे देते हैं।
2. दूसरा, वह किसी भी तरह का प्रोसेस्ड फ़ूड नहीं खरीदते। उनकी ग्रोसरी की शॉपिंग साधारण स्थानीय दुकानों से होती है।
3. तीसरा, बर्तन धोते समय पानी के बहाव का ध्यान रखना। “यह लोगों को भले ही मामूली- सी बात लगे, लेकिन अगर हर रोज़ आप यह प्रैक्टिस करते हैं तो आप बहुत सारा पानी बर्बाद होने से बचाते हैं। मैं बर्तन धोते समय पानी का फ्लो बहुत ही कम रखता हूं ताकि पानी कम से कम बर्बाद हो,” उन्होंने कहा।
4. रामा ने कहा, “कहीं आने-जाने के लिए मैं पब्लिक ट्रांसपोर्ट या फिर नजदीक में कहीं जाना है तो साइकिल का इस्तेमाल करता हूं। मेरे घर में कोई वाहन नहीं है। मेरे घर में आपको टीवी, एसी और फ्रिज जैसी चीजें भी नहीं मिलेंगी। बहुत से लोगों के लिए यह मूलभूत ज़रूरत है लेकिन हमने इन सभी सुविधाओं के बिना जीना सीख लिया है और हम काफी खुश भी हैं।”
खास टिप: अब वह टूथब्रश या फिर टूथपेस्ट इस्तेमाल नहीं करते बल्कि नीम की दातुन का उपयोग करते हैं। यह प्राकृतिक होने के साथ-साथ काफी फायदेमंद भी है।
रामा ने लॉकडाउन के दौरान जैविक कचरे से खाद बनाना भी शुरू किया है और उन्हें उम्मीद है कि वह इसमें सफल होंगे। अंत में लोगों को वह सिर्फ एक बात कहते हैं, “पहला कदम उठाना मुश्किल है लेकिन आप बस एक कदम उठाइए क्योंकि यही आपके दूसरे कदम की शुरूआत बनेगा और दूसरा कदम तीसरे की। ऐसा करते-करते आप बेहतर से बेहतर होते जाएंगे क्योंकि मिनिमलिस्ट या फिर सस्टेनेबल लिविंग सिर्फ एक दिन की कहानी नहीं है बल्कि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी है।”
3. मंजू शर्मा, पुणे

इस कड़ी में हमने पुणे में रहने वाली मंजू शर्मा से भी बात की जो एक डायटीशियन हैं और साथ ही, एक यूट्यूब चैनल भी चलाती हैं। बचपन से ही प्रकृति के बहुत करीब रही मंजू ने अपने घर में ही ‘यूज एंड रियूज’ के कांसेप्ट को देखा था। दादाजी खेती करते थे, जहां फसलों से बचा जैविक कचरा पशुओं का चारा बन जाता था और फिर उन्हीं पशुओं के गोबर से खेतों के लिए खाद तैयार होती थी। वह कहती हैं कि बहुत ही कम चीजें थीं जो उन्हने बाहर से लेनी पड़ती थीं।
“जो मैंने बचपन में देखा, वह मेरे साथ अब तक है। मैं पढ़ाई के लिए बाहर निकली, नौकरी की लेकिन कम में ज़िंदगी जीने की कला नहीं छूटी। इसके अलावा, कुछ और भी बाते हैं जैसे सालों से इकट्ठे किए हुए तोहफों को अक्सर संभालने में परेशानी होती थी, हर जगह प्लास्टिक का दिखना, रसोई का बहुत भरा-भरा लगना- इस सबसे परेशान होकर मैंने ‘मिनिमलिस्म’ के बारे में सोचना शुरू किया,” उन्होंने बताया।
मंजू कहती हैं कि वह रिड्यूज, रियूज और रिसायकल के कांसेप्ट को फॉलो करती हैं:
1. “कुछ भी खरीदने से पहले मैं सोचती हूं कि क्या इस चीज़ का प्राकृतिक तरीके से बनाया जा सकता है जैसे मैं एल्मुनियम फॉयल की जगह कपड़े का इस्तेमाल करती हूं। केमिकल से भरे क्लीनिंग एजेंट की जगह मैं घर पर ही क्लीनर बनाती हूं। साथ ही, हम किसी को भी पेड़-पौधे ही उपहार में देते हैं,” उन्होंने बताया।
2. पुराने कपड़ों को वह हमेशा नया रूप देकर इस्तेमाल करती हैं जैसे बैग, कालीन आदि बनाने के लिए। इसके अलावा, पुरानी बाल्टी, डिब्बे और बेकार पड़ी बोतलों में वह पेड़-पौधे लगाती हैं इससे उन्हें बाहर से गमले या फिर ग्रो बैग नहीं लेने पड़ते।
3. उनके घर का कोई भी कचरा डस्टबिन में या फिर लैंडफिल में नहीं जाता। जैविक कचरे से खाद बनती है तो अख़बार, कागज़, प्लास्टिक और मेटल आदि को रीसायकल करने के लिए दिया जाता है।
4. बंद अलमारियों की जगह वह खुली रैक में सामान रखतीं हैं ताकि उन्हें सामने दिखता रहे कि उनके पास क्या-क्या चीजें मौजूद हैं। इससे कोई भी चीज़ इधर-उधर नहीं होती और खरीददारी के समय भी याद रहता है कि आपको क्या नहीं लेना है।
5. थोड़े-थोड़े अंतराल पर मंजू शर्मा अपने घर को डी-क्लटर करतीं हैं जैसे हर मौसम में वह अपने और अपने बच्चों को कपड़ों को छांटती हैं, जिनमें से मौसम के हिसाब से पहनने वाले कपड़ों को अलग रखा जाता है और जो कपड़े उनके बच्चों को छोटे हो गए हैं, उन्हने वह डोनेशन के लिए देती हैं। बाकी जो कपड़े थोड़े फट गए हैं, उन्हें अपसायकल किया जाता है।
मंजू शर्मा के मुताबिक, एक समय पर आप अपनी एक आदत को सुधारने पर ध्यान दें। किसी एक चीज़ से आप शुरू कर सकते हैं चाहे वह गार्डनिंग हो, प्लास्टिक वेस्ट रीसाइक्लिंग या फिर अपसायकलिंग आदि। एक के बाद एक अपनी आदतों पर जब आप काम करेंगे तभी आपकी ज़िंदगी अर्थपूर्ण बनेगी।
खास टिप: अगर आपके घर में बच्चे हैं तो उन्हें भी यह आदतें अभी से सिखाएं। आप बहुत छोटी चीज़ से शुरू कर सकते हैं जैसे कॉपी जब तक पूरी न भर जाए, उन्हें नई नहीं मिलेगी, पेंसिल पूरी खत्म होने पर ही दूसरी उन्हें मिलेगी, नहाने के लिए शावर नहीं सिर्फ एक बाल्टी पानी मिलेगा, और वे बेवजह कहीं भी लाइट-पंखा चालू न छोड़ें।
4. मणिकांत गिरी, अहमदाबाद
मंजू शर्मा की ही तरह, अहमदाबाद में रहने वाले मणिकांत गिरी भी अपने घर और लाइफस्टाइल को डी-क्लटर कर रहे हैं। पिछले 13 वर्षों से सोशल सेक्टर में काम करने वाले मणिकांत कहते हैं कि वह खुद बिहार के गांव में पले-बढ़े हैं इसलिए उन्हें कम में गुज़ारा करना आता है। लेकिन शहर में रहकर भी अपनी लाइफस्टाइल को मिनिमलिस्ट रखना, इसकी प्रेरणा उन्हें पिछड़े तबके के लोगों से मिली।
“समाज के जिस तबके के लिए हम काम कर रहे हैं, अगर वह अपना गुज़ारा कम से कम साधनों में कर सकता है तो फिर हम भी कर सकते हैं। मैंने पिछले कुछ सालों में महसूस किया है कि हम हर चीज़ बहुत अधिक मात्रा में कंज्यूम कर रहे हैं जबकि इतनी ज़रूरत है ही नहीं। मैंने बस अपनी ज़िन्दगी को साधारण रखने का फैसला किया,” उन्होंने कहा।
मणिकांत ने मुख्य तौर पर तीन बातों पर तवज्जो दी:
1. सबसे पहले उन्होंने अपने लिए कपड़े खरीदना बंद किया। वह कहते हैं कि उन्होंने फ़ास्ट फैशन इंडस्ट्री के बारे में काफी कुछ पढ़ा और उन्हें पता चला कि कैसे यह इंडस्ट्री देश में प्रदुषण का दूसरा बड़ा कारण है। इसलिए उन्होंने तय किया कि जब तक वह अपने पहले कपड़ों को अच्छे से उपयोग में नहीं ले लेते वह कुछ नया नहीं खरीदेंगे। मणिकांत ने पिछले एक साल से कपड़ों की शॉपिंग नहीं की है और अभी भी उन्होंने नए कपड़ों की कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती है। इसके अलावा, जिस कपड़े को थोड़ा बहुत ही रीसायकल या फिर डाई करके उपयोग कर सकते हैं तो वह करते हैं।
2. दूसरा सबसे बड़ा बदलाव उन्होंने अपने खाने की आदतों में किया। जब तक कोई मज़बूरी न हो तब तक मणिकांत बाहर खाना नहीं खाते। काम के कारण अगर उन्हें ट्रेवल भी करना पड़े तो वह घर से ही कुछ बनाकर ले जाने के बारे में सोचते हैं। यहाँ तक कि उन्होंने अपने दोस्तों के साथ होने वाली पार्टियों के लिए भी पॉटलक या फिर खुद खाना बनाने का कांसेप्ट शुरू किया। अगर कोई उनके यहाँ आ रहा है तो वह उसे उपहार में भी घर का बना खाना लाने के लिए कहते हैं।
3. तीसरा बदलाव है कि अगर उन्हें कहीं घुमने जाना होता है तो वह बड़े होटल या रिसोर्ट में ठहरने की बजाय स्थानीय होम स्टे या कॉटेज हाउस ढूंढते हैं। वह ऐसी जगह रुकना पसंद करते हैं जहां उन्हें स्थानीय खाना मिले और साथ में वह भी उनकी मदद कर पाएं। “इससे मुझे नयी संस्कृति सिखने को मिलती है और उन्हें भी ग्राहक मिल रहे हैं। इसलिए मैं सभी से गुज़ारिश करता हूँ कि बड़े होटल में ठहरने की बजाय आप छोटे-छोटे होम स्टे में रुकिए।”
ख़ास टिप: जींस के पुराने होने पर आप उसे रग्गड लुक देकर फिर से उपयोग में ला सकते हैं और पुराने स्वेटर को किसी और रंग से डाई करवाकर फिर से पहन सकते हैं।
5. सहाना, बंगलुरु

मणिकांत की ही तरह, बेंगलुरु में रहने वाली सहाना ने भी एक साल तक कपड़े न खरीदने का चैलेंज लिया है। उन्होंने पिछले आठ महीने में कोई नए कपड़े नहीं खरीदे हैं। वह बताती हैं कि उनका सफर गार्डनिंग से शुरू हुआ। फिर जैसे-जैसे उन्होंने पर्यावरण से संबंधित चीजें पढ़ना शुरू किया तो उन्होंने महसूस किया कि अभी भी कितना कुछ करने की ज़रूरत है।
खुद जैविक खाद बनाने और खुद बायोएंजाइम बनाने के साथ-साथ सहाना के घर में आपको ज़्यादातर चीजें पर्यावरण के अनुकूल मिलेंगी। जैसे उन्होंने कुछ समय पहले खाना बनाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग शुरू किया है। साथ ही, वह खुद बीवैक्स रैप भी बना रही हैं। अब वह रियूजेबल सैनीटरी नैपकिन और मेनस्ट्रुअल कप इस्तेमाल करती हैं। साबुन और शैम्पू के लिए वह बहुत सालों से शिकाकाई का उपयोग कर रही हैं। हर दिन, उनकी कोशिश यही रहती है कि वह कम से कम चीजों में एक बेहतर ज़िंदगी जी पाएं।
सहाना कहती हैं कि अगर कोई मिनिमलिस्ट लाइफस्टाइल जीना चाहता है तो,
1. कुछ भी खरीदने से पहले, खुद से सवाल करे कि वह यह क्यों खरीद रहे हैं।
2. फिर उस प्रोडक्ट के विकल्पों के बारे में सोचे कि क्या वही प्रोडक्ट आपको प्रकृति के अनुकूल मिल सकता है। अगर हाँ तो हमेशा ही पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद को चुनें।
3. बड़े मॉल या फिर हाइपरमार्केट की बजाय स्थानीय बाज़ार से शॉपिंग करें और हमेशा ज़रूरी सामान की सूची बनाएं .
4. इसके अलावा, आप घर में कम्पोस्टिंग करने की कोशिश करें क्योंकि जब आप कम्पोस्टिंग करते हैं तो लगभग 60-70% कचरे को लैंडफिल में जाने से रोकते हैं।
5. केमिकल युक्त डिटर्जेंट या फिर दूसरे क्लीनिंग एजेंट की जगह घर पर ही बायो-एंजाइम बनाएं।
खास टिप: कोई भी सामान खरीदने से पहले देखें कि उसे बनाने में क्या-क्या इस्तेमाल हुआ है और उसका स्त्रोत क्या है? एक बार जब आपको यह आदत लग जाएगी तो आपके लिए सही विकल्प चुनना काफी आसान हो जाएगा!
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आखिर में, हम सिर्फ यही कहेंगे कि कम में ज्यादा जीना, बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है। आपको बस छोटे-छोटे बदलावों से शुरूआत करनी है और आप आज से ही ऐसा कर सकते हैं। अगर आपको यह कहानी पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें ताकि उन्हें भी एक ‘मिनिमलिस्ट लाइफस्टाइल’ जीने की प्रेरणा मिल सके!
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