Placeholder canvas

छपाक: उस सर्वाइवर की कहानी, जिसके संघर्ष से बना एसिड की बिक्री के खिलाफ कानून!

साल 2005 में लक्ष्मी सिर्फ 15 साल की थीं जब उन पर एसिड अटैक हुआ।

बाजीराव मस्तानी और पद्मावत जैसी फिल्मों में अपने बेहतरीन अभिनय के लिए जानी जाने वाली अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, अब बतौर फिल्म-प्रोड्यूसर अपने करियर का एक नया आगाज़ कर रही हैं। मेघना गुलज़ार के निर्देशन में बन रही फिल्म ‘छपाक’ में वह न सिर्फ मुख्य किरदार निभा रही हैं, बल्कि वह इस फिल्म की प्रोड्यूसर भी हैं।

लेकिन उनकी इस फिल्म की तरफ आकर्षित करने वाली सबसे खास बात यह है कि यह फिल्म एसिड अटैक सर्वाइवर, लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित है। 30 वर्षीय लक्ष्मी अग्रवाल, भारत में एसिड अटैक के खिलाफ ‘स्टॉप एसिड सेल’ अभियान की सूत्रधार हैं और पिछले कई सालों से इस भयानक अपराध के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रही हैं।

15 साल की उम्र में लक्ष्मी पर एसिड अटैक हुआ, और उसके बाद से उनका जीवन एक अंतहीन संघर्ष की राह पर है। अपने पिता को खोना, अपने लिव-इन पार्टनर से अलग होना, एक साल तक बिना नौकरी के जैसे-तैसे गुज़ारा करना, अपनी बेटी की परवरिश की ज़िम्मेदारी से लेकर मेघना गुलज़ार की फिल्म का आधार बनने तक – लक्ष्मी की कहानी किसी रोलर कोस्टर राइड से कम नहीं!

मुंबई मिरर को एक साक्षात्कार के दौरान दीपिका ने कहा था, “इस कहानी को सुनकर मैं बहुत भावुक हो गयी थी क्योंकि यह सिर्फ किसी हिंसा की कहानी नहीं है, बल्कि ताकत और हिम्मत, उम्मीद और जीत की कहानी है। इसने मुझे इस कदर प्रभावित किया कि निजी तौर पर और रचनात्मक तौर पर भी, मुझे कुछ ज्यादा करना था और फिर मैंने प्रोड्यूसर बनने का निर्णय लिया।”

Laxmi Agarwal with Film Director Meghna Gulzar. (Source: Facebook/Laxmi Agarwal)

लक्ष्मी अग्रवाल, द एसिड अटैक सर्वाइवर- इस नाम को तो सबने कहीं न कहीं सुना ही होगा, पर उनकी कहानी को शायद बहुत कम लोगों ने जाना या सूना होगा। दिल्ली में रहने वाली एक आम-सी लड़की, जो खान मार्किट के पास एक बुक शॉप में असिस्टेंट का काम करती थी। साल 2005 में अचानक इस 15 साल की लड़की की ज़िन्दगी बिल्कुल बदल जाती है, जब उससे दुगुनी उम्र का एक आदमी उसके ऊपर तेज़ाब की बोतल उड़ेल देता है।

पर क्यों? क्योंकि लक्ष्मी ने उस आदमी के एकतरफा प्यार को ठुकरा दिया था और वह लगातार उसका पीछा कर रहा था। इस घटना के बारे में द इंडियन एक्सप्रेस को बताते हुए लक्ष्मी ने कहा था,

“अटैक के बाद, मुझे राम मनोहर लोहिया अस्पताल में एडमिट कराया गया और मैं वहां लगभग तीन महीने तक रही। जिस वार्ड में मैं थी वहां कोई भी आइना नहीं था। हर सुबह, एक नर्स कटोरे में पानी लेकर आती थी और फ्रेश होने में मेरी मदद करती। मैं उस पानी में किसी तरह अपना चेहरा देखने की बहुत कोशिश करती। मुझे अपने चेहरे पर सिर्फ पट्टियां नज़र आतीं। अटैक से पहले मेरी नाक पर एक दाग हुआ करता था और मैं डॉक्टर से कहती थी कि ऑपरेशन के टाइम वो दाग हटा दें। पर बाद में, जब मैंने पहली बार अपना चेहरा देखा, मैं बिलकुल हताश हो गयी। मेरे पास बोलने के लिए मुंह नहीं था। मेरी आँखें बदसूरत हो चुकी थीं।”

यह भी पढ़ें: एसिड अटैक फाइटर्स द्वारा चलाये जा रहे शीरोज़ हैंगआउट को मिला नारी शक्ति पुरस्कार!

इस घटना के बाद, उनकी कई सर्जरीस हुईं, लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किल था मन पर लगे घावों और दर्द से बाहर आ पाना। लेकिन कहते हैं ना कि जिन परिस्थितियों से अक्सर हम भागते हैं वही हमें सबसे ज्यादा मजबूत बना देती हैं। ऐसा ही कुछ लक्ष्मी के साथ हुआ। उन्होंने हिम्मत की और भारत में बिना किसी रोक-टोक के हो रही एसिड की बिक्री के खिलाफ कैंपेन शुरू किया।

Lakshmi Agarwal- A story of determination and courage (Source: Facebook/TheLaxmiAgrawal)

अपने पिता के कहने पर उन्होंने एसिड की बिक्री के खिलाफ, एक और एसिड अटैक सर्वाइवर, रूपा के साथ मिलकर कोर्ट में पीआईएल फाइल  किया। इस पेटीशन के ज़रिये उन्होंने न्यायपालिका से गुहार लगायी थी कि वे एसिड की खुले-आम बिक्री को लेकर कोई ठोस कदम उठाये और इस पर कानून बनाया जाये। साथ ही, सर्वाइवर्स को मुआवजा दिलाने के लिए भी उन्होंने प्रयास किये।

देश में एसिड अटैक की घटनाओं को देखते हुए उन्होंने एसिड की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने की मांग की। जुलाई 2013 में, बहुत हद तक उन्हें जीत मिली, जब कोर्ट ने एसिड की बिक्री पर नए कानून बनाये- सबसे पहले तो नाबालिग एसिड नहीं खरीद सकते और दूसरा, किसी को भी एसिड खरीदते समय अपना पहचान पत्र दिखाना होगा। इसमें अन्य और भी कई तरह के नियमों को शामिल किया गया।

यह भी पढ़ें: आम पर्यटकों की तरह एसिड अटैक फाइटर्स से मिलने पहुंचे हैरी पॉटर के अभिनेता!

पर इतने साल बाद, आज भी सवाल यही है कि आखिर इस कानून का पालन कितनी सच्चाई से हो रहा है? साल 2014 में उन्होंने कहा था कि उन्होंने खुद बिना किसी रोक-टोक के एसिड खुलेआम ख़रीदा है। इससे पता चलता है कि हमारी कानून-व्यवस्था कितनी कड़ी है।

साल 2014, लक्ष्मी के लिए अच्छे-बुरे अनुभवों से भरा हुआ रहा। उसी साल मार्च में उन्होंने यूएस स्टेट डिपार्टमेंट का इंटरनेशनल वुमन ऑफ़ करेज अवॉर्ड जीता और तत्कालीन, फर्स्ट लेडी, मिशेल ओबामा ने उन्हें इस सम्मान से नवाज़ा था। लेकिन उसी साल उन्होंने अपने भाई को टीबी की बीमारी में और पिता को हार्ट अटैक के चलते खो दिया।

Former US First Lady Michelle Obama presenting the award to Laxmi Agarwal. (Source: Wikimedia Commons)

उसी साल, लक्ष्मी, पत्रकार आलोक दीक्षित से मिली, जिन्होंने स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन की शुरुआत की थी। लक्ष्मी ने आलोक के साथ मिलकर, एक और संगठन, ‘छाँव फाउंडेशन’ की शुरुआत भी की। इसी दौरान इन दोनों में प्यार हुआ और शादी करने की बजाय उन्होंने लिव-इन में रहने का फैसला किया।

“हमने अपनी मौत तक साथ रहने का तय किया था। लेकिन हमने शादी न करके समाज को चुनौती दी थी। हम नहीं चाहते थे कि लोग हमारी शादी में आये और मेरे चेहरे को लेकर कोई बात करें। दुल्हन का चेहरा लोगों के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी होता है। इसलिए हमने कोई आयोजन न करने का फैसला किया,” उन्होंने कहा।

25 मार्च 2015 को, उनकी बेटी पीहू का जन्म हुआ। लक्ष्मी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा, लेकिन उनके जीवन में मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थीं।

Laxmi with her daughter Pihu (Source: Facebook/Laxmi Agarwal)

एक बार फिर उन्हें अपनी ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू करनी थी। आलोक और लक्ष्मी ने अपने कुछ निजी कारणों के चलते अलग होने का फैसला किया और उनकी बेटी की ज़िम्मेदारी अकेले लक्ष्मी पर आ गई।

लक्ष्मी के पास कोई नौकरी नहीं थी और ऐसे में अपनी और अपनी बेटी की ज़िन्दगी को उन्हें सम्भालना था। अलोक की तरफ से भी उन्हें पीहू की परवरिश के लिए कोई खास मदद नहीं मिल पा रही थी। यहाँ तक कि उनके सिर पर छत भी बड़ी मुश्किल से थी। लक्ष्मी को न जाने कितने ही अवॉर्ड और रिवॉर्ड मिले, पर कोई उन्हें एक स्थायी नौकरी नहीं दे रहा था। वह एक प्रशिक्षित ब्यूटिशियन हैं पर उन्हें कोई जॉब नहीं मिली और न ही रहने के लिए कोई सस्ती जगह क्योंकि लोग उन्हें कहते थे कि बच्चे उनका चेहरा देखकर डर जायेंगे।

यह भी पढ़ें: एसिड पीड़िता ने अपने नए जीवन की शुरुआत की तो पूरे सोशल मीडिया ने दिया उनका साथ!

“सर्जरी पर बहुत पैसा खर्च हुआ। लक्ष्मी को सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद सरकार से 3 लाख रुपये मुआवजा मिला। पर उससे कहीं ज्यादा उनकी सर्जरी और फिर प्रेगनेंसी के दौरान खर्च हो गया। मिशेल ओबामा से अवॉर्ड मिलने के बाद उन्हें पहचान तो बहुत मिली, लेकिन अवॉर्ड मनी काफी नहीं थी। भारत में, लोग अवॉर्ड देना चाहते हैं पर पैसा नहीं,” ह्यूमन फॉर ह्यूमैनिटी नामक एनजीओ के संस्थापक अनुराग चौहान ने कहा

लेकिन, लक्ष्मी की मुश्किलों के बारे में जब लोगों को पता चला तो बहुत से लोग उनकी मदद के लिए आगे आये। उन्हें एक अच्छी नौकरी भी मिली और अब वह एक बॉलीवुड फिल्म की कहानी का आधार हैं। बेशक, लक्ष्मी का संघर्ष, उनकी हिम्मत और जज्बा, काबिल-ए-तारीफ़ है। क्योंकि समय कैसा भी रहा हो उन्होंने हार नहीं मानी।

द बेटर इंडिया, लक्ष्मी अग्रवाल को सलाम करता है और हमें उम्मीद है कि उनके जीवन पर बन रही ‘छपाक’ फिल्म देश में इस घिनौने अपराध के प्रति लोगों की मानसिकता को बहुत हद तक बदलने में सफल रहेगी!

मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक 

संपादन – मानबी कटोच 

Summary: 30-year-old Laxmi Agarwal, India’s most high-profile campaigner against the horrific scourge of acid attacks, has won hearts with her courage and poise in circumstances that would have seen many crumble. On her journey and struggle, Meghna Gulzar is directing a film named, ‘Chhapaak,’ in which Deepika Padukon is playing the lead character. Deepika is starting her career as Film-producer with this film.


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X