कुछ समय पहले IIT रूड़की का 19वां दीक्षांत समारोह सम्पन्न हुआ। इस समारोह में संस्थान के एक पूर्व छात्र अनंत वशिष्ठ को राष्ट्रपति ने गोल्ड मेडल देकर नवाज़ा। 22 वर्षीय अनंत को यह सम्मान ग्रेजुएशन के दौरान अकादमिक विषयों में अच्छा करने और संस्थान में शानदार युवा नेतृत्व के लिए मिला। उनके अलावा और भी 8 छात्रों को सम्मानित किया गया।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए अनंत ने बताया, “मैंने प्रोडक्शन एंड इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग में अपनी डिग्री की है। फर्स्ट इयर में जब मैं IIT गया तो एक अलग ही जोश और उत्साह था। इसलिए पढ़ाई के अलावा मैंने एनएसएस भी ज्वाइन कर लिया। वैसे भी मुझे खाली बैठकर सिर्फ़ फ़ोन स्क्रोल करते हुए टाइमपास करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। उससे अच्छा है कि हम किसी अच्छी जगह अपना वक़्त लगायें।”
संस्थान में NSS की गतिविधियों में तो अनंत भाग लेते ही थे और इसके अलावा उन्होंने पास के एक गाँव में भी जाना शुरू किया। हर शनिवार और रविवार वे लगभग 8 किलोमीटर दूर एक छोटे से गाँव कलियार में जाते और वहां गाँव के 20 बच्चों को मुफ़्त में पढ़ाते।
अपने साथ वे कुछ किताबें, कॉपी, चॉक आदि ले जाते और वहां एक बोर्ड लगाकर, टाट बिछाकर बच्चों की क्लास तैयार करते। ये बच्चे तीसरी, चौथी और पांचवी कक्षा के थे। अपने ग्रेजुएशन के पहले साल में उनका यही रूटीन रहा और जब दूसरे साल से उनके ऊपर अपनी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी बढ़ गयी तो उन्होंने अपने जूनियर्स को इस काम के लिए प्रोत्साहित किया।
हमेशा से ही पढ़ने और पढ़ाने के शौक़ीन रहे अनंत के लिए गाँव में बच्चों को पढ़ाना वैसे आसान नहीं रहा। वह बताते हैं, “जब वहां मैंने बच्चों को जाकर पढ़ाना शुरू किया तो सिर्फ़ 5 बच्चों को ही आने के लिए राजी कर पाया। क्योंकि एक तो गाँव के लोग आसानी से मुझ पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। दूसरा, कुछ लोगों को लगता था कि अगर बच्चे मेरे पास पढ़ने आयेंगे तो घर में उनके काम-काज में मदद कौन करेगा।”
लेकिन गाँव के लोगों की आनाकानी के बावजूद अनंत ने वहां जाना नहीं छोड़ा। उनकी लगन और नीयत देखकर धीरे-धीरे लोग अपने बच्चों को उनके पास भेजने लगे और देखते ही देखते उनकी क्लास में 20 बच्चों की तादाद हो गयी।
गाँव में अपने दिनों को याद करते हुए अनंत बताते हैं कि उन्हें बच्चों को गणित पढ़ाने में सबसे ज़्यादा मजा आता था।अनंत के प्रयासों को देखते हुए उनके कुछ और दोस्त भी उनके साथ जाने लगे और इस तरह से एक कारवां बन गया।
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अपने डिपार्टमेंट में भी हमेशा टॉपर्स की लिस्ट में रहने वाले अनंत को अपनी पढ़ाई और एक्स्ट्रा-कर्रिकुलर गतिविधियों को मैनेज करना बख़ूबी आता है। उन्होंने संस्थान में भी ऐसे कई लीडरशिप के काम किये, जिसके लिए उन्हें पासआउट होने के बाद भी उनके जूनियर्स याद रखेंगे।
उन्होंने बताया, “जैसे-जैसे पढ़ाई आगे बढ़ी, मैं संस्थान की कई सोसाइटी और ग्रुप्स का हिस्सा बना। इस दौरान मेरा यही उद्देश्य रहता था कि हम कैसे अपने इंस्टिट्यूट को स्टूडेंट-फ्रेंडली बनायें। बच्चों के पास बहुत से आईडियाज होते हैं इनोवेशन के, रिसर्च के, लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि कैसे, कहाँ उसे पिच करें और फिर अगर कोई पिच करता है तो प्रोसेस और परमिशन में ही इतना वक़्त चला जाता है।”
इस समस्या पर काम करते हुए अनंत और उनकी टीम ने एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म तैयार करने में मदद की, जिस पर छात्र सीधा जाकर अपने आईडियाज लिख सकते हैं और अनुमति मांग सकते हैं। इससे छात्रों को यहाँ से वहां भटकने की ज़रूरत नहीं है।
इसी तरह, उन्होंने एक अन्य प्रोजेक्ट पर आस-पास के स्कूलों के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने स्कूलों में जाकर ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के बच्चों को IIT रुड़की में एक दौरे पर भेजने के लिए कहा। ताकि वे बच्चों को आगे अपनी रूचि के हिसाब से बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकें।
अनंत कहते हैं, “मैंने कभी भी कोई काम किसी सम्मान के बारे में सोचकर नहीं किया था। मैं बस इतना चाहता था कि जो भी मैंने शुरू किया है, वह सब मैं अच्छे से करूँ, अपना बेस्ट दूँ। फिर जब इस अवॉर्ड के लिए मुझे बुलाया गया तो बहुत अच्छा लगा और कहीं न कहीं यह सम्मान अब मेरे लिए आगे भी बेहतर करने की एक प्रेरणा है।”
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फ़िलहाल, अनंत गुरुग्राम में मास्टरकार्ड कंपनी के साथ काम कर रहे हैं। यहाँ भी उनकी कोशिश है कि वे अपने वीकेंड को किसी अच्छे काम के लिए इस्तेमाल करें और इसलिए वे अपने आस-पास सामाजिक संगठनों के विकल्प तलाश रहे हैं।
भविष्य में आगे की पढ़ाई के लिए MIT, अमेरिका जाने की ख्वाहिश रखने वाले अनंत आखिर में सिर्फ़ यही कहते हैं कि आपको हमेशा खुद से बढ़कर सोचना चाहिए। आप जो भी काम करें उसे सिर्फ़ करने के लिए ना करें, बल्कि उससे कुछ सीखें और अपना बेस्ट दें। क्योंकि कोई भी सफलता समाज के लिए कुछ किये बिना अधूरी है।
संपादन – मानबी कटोच