कैंसर से जंग लड़ते हुए भी प्यार न हुआ कम, अब तक बचा चुके हैं 1.2 लाख गौरैया

sparrow man Narendra Singh Yadav

उत्तर प्रदेश के रहने वाले नरेंद्र सिंह ‘स्पैरो मैन’ के नाम से जाने जाते हैं। गौरैयों को बचाना ही उनके जीवन का मिशन है। अब तक उन्होंने 1.2 लाख गौरैयों की जान बचाई है और करीब 6000 घोंसले बांटे हैं।

गौरैया धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर हैं। दुनिया भर के विभिन्न संगठन गौरैयों को वापस लाने पर काम कर रहे हैं। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में एक शख्स हैं, जो सालों से सेव स्पैरो मिशन में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व डिविजनल ज्वाइंट डेवलपमेंट कमिश्नर रहे नरेंद्र सिंह यादव ने अपनी जिंदगी गौरैया बचाने के लिए समर्पित कर दी है।

‘स्पैरो मैन’ नाम से जाने जाने वाले 62 वर्षीय नरेंद्र सिंह ने अब तक 6,000 से अधिक घोंसले बांटे हैं और 1.2 लाख से ज्यादा गौरैयों को बचाने में मदद की है। नरेंद्र कहते हैं कि 2013 से अब तक वह इस मिशन पर 12 लाख रुपये से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। वह बताते हैं कि जब तक वह रिटायर नहीं हुए थे, तब तक वह अपनी कमाई का 10 प्रतिशत इस काम के लिए अलग रख देते थे।

अपने इस मिशन के बारे में उन्होंने द बेटर इंडिया के साथ विस्तार में बात की और बताया, “मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि मेरे परिवार का हर सदस्य (पत्नी रश्मि सिंह और दो बेटियां – प्राची और प्रज्ञा सिंह) इस प्रयास में शामिल हैं।”

याद करते हुए नरेंद्र कहते हैं कि बचपन में गौरैया उनके जीवन का एक अभिन्न अंग रही है और अपने बच्चों को वह यही अनुभव देना चाहते थे।

नरेंद्र बताते हैं, “मेरा बचपन गांव में बीता। दोपहर में हमारा ज्यादातर समय खुले मैदानों में गौरैयों के साथ बीता। मैं और मेरे भाई-बहन अक्सर गौरैयों का नाम रखते थे और उनकी देखभाल ऐसे करते थे जैसे वे हमारे अपने थे।”

विलुप्ति की खबर ने दिया सेव स्पैरो मिशन को जन्म

Sparrows
Sparrows

ब्लड कैंसर सर्वाइवर नरेंद्र सिंह का मानना है कि उनकी बीमारी भी उनके इस मिशन में बाधा नहीं बन पाई। जब वह गांव से कानपुर आए, तो उन्हें महसूस हुआ कि गौरेया की संख्या घट रही है।

कानपुर में बिताए समय को याद करते हुए नरेंद्र ने बताया, “मैं बिल्डिंग की सबसे ऊपरी मंजिल पर रहता था। मुझे याद है कि कभी-कभार वहां गौरैया आ जाती थी। फिर हमने रोटी के टुकड़े रखना शुरू कर दिया और इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, बड़ी संख्या में फिर से ये पक्षी हमारे पास आने लगे।”

यह करीब वह समय था, जब स्थानीय अखबारों में गौरैयों के विलुप्त होने के बारे में खबरें और लेख छपने लगे थे। इससे नरेंद्र हैरान थे, क्योंकि उनका अनुभव काफी अलग था।

अखबारों में गौरैयों के विलुप्त होने के बारे खबरें और लेख पढ़ना उनके लिए काफी निराशाजनक था। उनका कहना है कि उन्होंने संकल्प लिया है कि गौरैया की आबादी बढ़ाने के लिए जो कुछ भी उनकी क्षमता है वह करेंगे। वह बताते हैं, “एक तरफ, मैं गौरैयों की घटती संख्या के बारे में पढ़ता था और दूसरी तरफ, मेरे आंगन में उनकी संख्या लगातार बढ़ रही थी। इसलिए, मुझे पता था कि मैं उनकी रक्षा करने की दिशा में काम कर सकता हूं।”

‘खन्ना सर से मिली सेव स्पैरो मिशन को नई दिशा’

नरेंद्र के गौरैया बचाने के जुनून को नई दिशा कानपुर के एक रिटायर्ड बैंक कर्मचारी सी एल खन्ना से मिलने के बाद मिली। वह कहते हैं, “रिटायर होने के बाद खन्ना सर ने बेकार पड़े गत्ते के बक्सों और लकड़ी से घोंसला बनाना शुरू कर दिया। यह काम वह खुद करते थे और उन लोगों में बांटते थे, जो गौरैयों को बचाने के इच्छुक थे। मैं उनके पास गया और घोंसला बनाने का अनुरोध किया।”

वह आगे कहते हैं, “मैं उस समय सर्विस में था और मुझे याद है कि जब मैंने उनसे घोंसले लेने में दिलचस्पी दिखाई, तो खन्ना सर कितने खुश हुए थे। इसके बाद, 2012 में, उन्होंने मुझे पांच घोंसले दिए और यहीं से एक यात्रा की शुरुआत हुई।”

हालांकि नरेंद्र ने अपने घर में घोंसलों तो लगा दिए थे, लेकिन उनका कहना है कि गौरैयों के उनमें रहने की प्रतीक्षा लंबी और कष्टदायी थी। वह कहते हैं, “हर सुबह ये गौरैया आतीं और वह सारा खाना खा लेतीं जो मैं उनके लिए छोड़ता, लेकिन उनमें से एक भी घोंसले में नहीं जाती थी। मैंने दो महीने तक इंतजार किया। इस बीच मैंने खन्ना सर से बात भी की और निराशा जताई। लेकिन उन्होंने मुझसे धैर्य रखने के लिए कहा।”

घोंसला लगाने के लगभग दो महीने बाद गौरैयों ने आखिरकार घोंसले में अपना रास्ता बना लिया। यह देखकर नरेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं था। वह कहते हैं, “मैं आज भी शब्दों में बयां नहीं कर सकता, जो मैंने उस पल में महसूस किया था। मैंने सबसे पहला कॉल खन्ना सर को किया था। हमने बच्चों की तरह बधाई संदेशों का आदान-प्रदान किया और खुशी से झूम उठे। उसके बाद, मैंने जो पाँच घोंसले बनाए थे, उनमें से तीन में गौरैया रहने लगी थीं।”

कैंसर भी नहीं बन सका सेव स्पैरो मिशन में बाधा

sparrows gave me a reason to fight cancer.
sparrows gave me a reason to fight cancer.

एक बार जब गौरैयों ने घोंसलों में रहना शुरू किया, तो वे सहज हो गईं और धीरे-धीरे गौरैया के बच्चों की संख्या में बढ़ने लगी। नरेंद्र कहते हैं, “हमने हर एक गौरैया का नाम रखना शुरू किया, जैसे प्रियंका, दुलारी, राजू आदि। उन्हें बढ़ते हुए और घोंसला छोड़ते हुए देखकर मुझे बहुत खुशी हुई।”

20 मार्च को गौरैयों के जन्म की खुशी और विश्व गौरैया दिवस मनाने के लिए, नरेंद्र ने एक सभा का आयोजन किया। वह बताते हैं, “हमने मुख्य अतिथि के रूप में खन्ना सर को आमंत्रित किया और कार्यक्रम के दौरान घोंसले बांटे। जैसे लोग अपने बच्चों का जन्मदिन मनाते हैं, वैसे ही हमने गौरैया की आबादी में वृद्धि का जश्न मनाने का फैसला किया। उस दिन, हमने दही वड़ा, कढ़ी पकौड़े, राजमा और मिठाई जैसी लजीज़ चीजें बनाईं।”

नरेंद्र पूरी तरह से अपने काम में डूबे हुए थे और गौरैया की आबादी को बढ़ाने में मदद कर रहे थे। लेकिन अचानक अप्रैल 2013 में उन्हें प्लाज्मा सेल कैंसर, मल्टीपल मायलोमा का पता चला था। नरेंद्र ने फौरन ही उसका इलाज शुरू कर दिया। वह कहते हैं कि एक चीज़, जिसने उन्हें अपनी बीमारी में भी खुशी दी, वह थी गौरैया।

नरेंद्र बताते हैं, “अपने बोन मैरो ट्रांसप्लाट के लिए मुझे कोलकाता जाना पड़ा। वहां मेरा इलाज चला और फिलहाल इसमें काफी सुधार है।”

“मुझे मरना नहीं था”

नरेंद्र कहते हैं कि कई मौकों पर शारीरिक और मानसिक रूप से थके होने के बावजूद, गौरैया के लिए अपने प्यार और सेव स्पैरो मिशन को उन्होंने अपने जीने का मकसद बनाया। वह बताते हैं, “उस समय मेरी बेटियाँ बहुत छोटी थीं और वे मेरी बीमारी की गंभीरता को नहीं समझती थीं। उन्हें बस इतना पता था कि कुछ गड़बड़ है और घर का सामान्य वातावरण डर से भर गया था। हालंकि, जब मैं और मेरी पत्नी अपनी कॉफी के साथ बालकनी में बैठते, तो गौरैयों को इधर-उधर भागते हुए देखकर हमें शांति और खुशी मिलती थी।”

वह कहते हैं, “जीने की ललक होती थी उन्हें देखकर। मुझे मरना नहीं था।” आज, घोंसले बांटते हुए नरेंद्र, लोगों को घोंसला लगाने में मदद करने के लिए दो कील और दो लकड़ी के टुकड़े देते हैं। वह कहते हैं, “लोग घोंसला लें, लेकिन फिर उसे लगाएं न तो इसका क्या फायदा होगा, है ना?”

18 साल की प्रज्ञा (18) ने इस काम में हमेशा अपने पिता की मदद की है। वह कहती हैं, “हम पापा के गौरैयों के प्यार को देखकर बड़े हुए हैं। यह निश्चित रूप से कुछ ऐसा है, जिसने हममें काफी बदलाव किया है। जबकि ज्यादातर काम पापा और दीदी करते हैं और मैं घोंसले बनाने, उन्हें पैक करने और उनके सोशल मीडिया पेजों को मैनेज करने में मदद करती हूं। उन्होंने जो किया है उसकी तुलना में हमारा योगदान बहुत छोटा है।”

वह आगे कहती हैं, “चीजों को और अधिक व्यवस्थित करने के लिए हमने संतुलन सोसाइटी नाम का एक संगठन भी शुरू किया है। यह उस काम को सुव्यवस्थित करने में मदद करता है, जिसे पापा इतने जुनून से कर रहे हैं।”

घोंसले लगाते समय इन बातों का रखें खास ख्याल

Narendra Singh Yadav at a nest distribution event.
Narendra Singh Yadav at a nest distribution event.

नरेंद्र कहते हैं कि गौरैया का घोंसला लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कुछ सुझाव साझा किए:

  • सबसे पहली चीज़, घोंसला मिलने के तुरंत बाद उसे लगा दें।
  • हमेशा सुनिश्चित करें कि घोंसला ज़मीनी स्तर से कम से कम आठ फीट की ऊंचाई पर रहे। यह बिल्लियों और अन्य जानवरों को घोंसले को नष्ट करने या गौरैयों को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए ज़रुरी है।
  • घोंसले को ऐसी जगह न रखें जहां पंखा हो। यह पक्षियों को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • घोंसलों को दक्षिण दिशा में न रखें। यह घोंसले पर सीधी धूप से बचने के लिए ज़रुरी है।

नरेंद्र तक पहुंचने और उनके इस सेव स्पैरो मिशन का हिस्सा बनने के लिए, आप उनके ट्विटर हैंडल के ज़रिए उनसे संपर्क कर सकते हैं।

मूल लेखः विद्या राजा

संपादनः अर्चना दुबे

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