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नंगे पांव, सादा लिबास, सरल व्यक्तित्व, हल्की मुस्कान! पद्म श्री तुलसी को सभी ने किया सलाम

Padma shree Tulsi Gowda (1)

नंगे पांव, सादा लिबास, सरल व्यक्तित्व और चेहरे पर मुस्कान लिए जब तुलसी गौड़ा राष्ट्रपति के सामने पहुंची, तो हर किसी की नज़र उनकी सादगी को सलाम कर रही थी। पद्म श्री सम्मान से कई विभूतियों को सम्मानित किया गया, उन्हीं में से एक हैं कर्नाटक के होनाली गांव की रहनेवाली तुलसी गौड़ा।

तुलसी को 30,000 से अधिक पौधे लगाने और पिछले छह दशकों से पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इस सम्मान को लेने के लिए जब पारंपरिक धोती पहने हुए तुलसी आगे बढ़ीं, तो उनके पैरों में चप्पल तक नहीं थी। उनकी इस सादगी को देखकर देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने भी सिर झुकाकर उनका अभिवादन किया।

इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट

Tulsi Gowda (Photo Credit)

कर्नाटक की 72 वर्षीया पर्यावरणविद् तुलसी को “जंगल की इनसाइक्लोपीडिया” कहा जाता है। वह कभी स्‍कूल नहीं गईं, लेकिन अपने अनुभव से उन्‍होंने पेड़-पौधों और वनस्पति का इतना ज्ञान इकट्ठा किया कि उन्‍हें ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट’ कहा जाने लगा। पेड़-पौधों से जुड़ी ढेरों जानकारियां उन्हें जुबानी याद हैं।

कर्नाटक में हलक्की जनजाति से नाता रखने वाली तुलसी गौड़ा का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। बचपन में उनके पिता की मृत्यु हो गई और उन्होंने काफी छोटी उम्र से ही मां और बहनों के साथ काम करना शुरू कर दिया था। इसी कारण वह ना तो कभी स्कूल जा पाईं और ना ही पढ़ना-लिखना सीख सकीं।

रिटायरमेंट के बाद भी नहीं छोड़ा काम

11 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई पर उनके पति भी ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहे। अपनी जिंदगी के दुख और अकेलेपन को दूर करने के लिए तुलसी ने पेड़-पौधों का ख्याल रखना शुरू किया। धीरे-धीरे वनस्पति संरक्षण में उनकी दिलचस्पी बढ़ी और वह एक अस्थायी स्वयंसेवक के रूप में वन विभाग में शामिल हो गईं।

साल 2006 में उन्हें वन विभाग में वृक्षारोपक की स्थायी नौकरी मिली और चौदह सालों के कार्यकाल के बाद वह सेवानिवृत्त हुईं। अपनी पूरी जिंदगी जंगल को समर्पित करने वाली तुलसी को पेड़-पौधों की गजब की जानकारी है। उन्हें हर तरह के पौधों के फायदे और नुकसान के बारे में पता है। तुलसी गौड़ा अभी भी पर्यावरण के संरक्षण में लगी हुई हैं और बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने के साथ-साथ उन्हें पेड़-पौधों के महत्व से भी अवगत करा रहीं हैं।

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