19 अप्रैल, 1975 का दिन भारतीय इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ है। इस दिन इसरो ने पूरी दुनिया को हैरान करते हुए अपने पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक लॉन्च किया।
इस मुकाम को हासिल करने में महान वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई (Dr Vikram Sarabhai) की भूमिका अमूल्य रही। वह भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में मजबूत बनाने के लिए कई वर्ष पहले ही कोशिश शुरू कर चुके थे और उनकी अगुवाई में नवंबर 1963 को केरल के थुंबा गांव से देश के पहले रॉकेट को लॉन्च किया गया। इन्हीं प्रयासों की वजह से उन्हें भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का पितामह माना जाता है।
डॉ विक्रम साराभाई (Dr Vikram Sarabhai) ने इसरो से लेकर आईआईएम, अहमदाबाद की स्थापना तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज हम उनके बारे में आपको कुछ अनसुने तथ्यों को बताने जा रहे हैं।
स्वतंत्रता सेनानियों के घर में हुआ था जन्म
विक्रम साराभाई का जन्म 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद के एक कुलीन परिवार में हुआ था। विक्रम के आठ भाई-बहन थे और उनके पिता अंबालाल साराभाई एक बड़े कपड़ा व्यवसायी होने के साथ ही, एक गांधीवादी भी थे। अंबालाल ने मुश्किल हालातों में साबरमती आश्रम को काफी पैसे दान में दिए। इसके अलावा, विक्रम साराभाई (Dr Vikram Sarabhai) की बहन मृदुला साराभाई ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉ सीवी रमन की अगुवाई में हासिल की डॉक्टरेट की डिग्री
विक्रम साराभाई, गुजरात कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, 1937 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए, जहां उन्होंने नेचुरल साइंस में दाखिल लिया। लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने के बाद उन्हें भारत लौटना पड़ा।
भारत लौटने के बाद, उन्होंने बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में काम करना शुरू कर दिया और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सीवी रमन की निगरानी में कॉस्मिक रे पर शोध करने लगे। साल 1917 में उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी कर ली।
अहमदाबाद के घर में शुरू हुआ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम
अहमदाबाद के शाहीबाग में विक्रम साराभाई का एक छोटा सा बंगला था। अपने बंगले के एक कमरे को ऑफिस का रूप देते हुए, बहुमुखी प्रतिभा के धनी साराभाई ने फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (PRL) पर काम करना शुरू कर दिया।
साराभाई ने पीआरएल की शुरुआत 1947 में की और आजादी के बाद, उन्होंने इसे नई ऊंचाई देने के लिए कड़ी मेहनत की। फिर, 1952 में, उनके गुरु सीवी रमन ने नए पीआरएल कैम्पस की नींव रखी। यह विक्रम साराभाई के अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि आज यह संस्थान अंतरिक्ष और इससे संबंधित विज्ञान के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित संस्थान है।
कम उम्र में इसरो की स्थापना के लिए सरकार को किया राजी
एक ओर जहां आज हममें से ज्यादातर लोग युवावस्था में अपने उद्देश्यों को खोजने के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं, तो वहीं डॉ साराभाई ने सिर्फ 28 साल की उम्र में सरकार के सामने एक स्पेश एजेंसी स्थापित करने की वकालत शुरू कर दी।
इसी दौरान रूस ने स्पुतनिक को सफलतापूर्वक लॉन्च किया और इसके बाद उन्होंने भारत सरकार को आश्वस्त किया कि भारत जैसा विकासशील देश भी चंद्रमा पर जा सकता है।
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इस तरह, 1959 में इसरो की स्थापना हुई। इसे लेकर एक मौके पर उन्होंने कहा था, “कुछ लोग विकासशील देशों की स्पेस एक्टिविटी को लेकर सवाल उठाते हैं। लेकिन हम अपने उद्देश्यों को लेकर स्पष्ट हैं। हमारी चंद्रमा या ग्रहों की खोज या मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान में विकसित देशों की प्रतिस्पर्धा करने की चाह नहीं है। लेकिन हमारा मानना है कि देश की समस्याओं को उन्नत तकनीकों के जरिए हल करने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए।”
देश के पहले रॉकेट को किया लॉन्च
डॉ विक्रम साराभाई अब तक के सबसे दूरदर्शी वैज्ञानिकों में से एक थे। उनकी अगुवाई में 21 नवंबर, 1963 को, तिरुवनंतपुरम के थुंबा नाम के एक छोटे से गांव से देश के पहले रॉकेट को लॉन्च किया गया।
थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्च पर कोई इमारत नहीं थी। इसलिए वहां के तत्कालीन बिशप की अनुमति से चर्च को कंट्रोल रूम का रूप दे दिया गया। आज इसे विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के रूप में जाना जाता है।
एपीजे अब्दुल कलाम की प्रतिभा को पहचाना
देश के पहले रॉकेट को लॉन्च करने वालों में एपीजे अब्दुल कलाम भी युवा वैज्ञानिक के रूप में शामिल थे। डॉ विक्रम साराभाई ने न सिर्फ डॉ अब्दुल कलाम का इंटरव्यू लिया, बल्कि उन्हें निखारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसे लेकर डॉ कलाम ने एक बार कहा था, “ज्यादा क्वलिफाइड नहीं होने के बावजूद, डॉ. विक्रम साराभाई (Dr Vikram Sarabhai) ने मुझ पर ध्यान दिया, क्योंकि मैं कड़ी मेहनत कर रहा था। एक युवा वैज्ञानिक के तौर पर उन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए कई जिम्मेदारियां सौंपी। हर मुश्किल घड़ी में वह मेरे साथ थे।”
‘आर्यभट्ट’ को लॉन्च करने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
साल 1971 में इस महान वैज्ञानिक की सिर्फ 52 साल की उम्र में मौत हो गई। लेकिन उन्होंने भारत का पहला उपग्रह बनाने की दिशा में काफी पहले ही कोशिश शुरू कर दी थी। कॉस्मिक किरणों और ऊपरी वायुमंडल के विषय में उनका रिसर्च, आज भी एक मील का पत्थर बना हुआ है।
भारत में की केबल टीवी की शुरुआत
साल 1966 में एक विमान दुर्घटना में डॉ. होमी जहांगीर भाभा की मौत के बाद, विक्रम साराभाई (Dr Vikram Sarabhai) को परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष चुना गया। इसके ठीक बाद, उन्होंने अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा से सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) को लेकर संवाद शुरू कर दिया।
उन्हीं के प्रयासों के कारण 1975 में SITE लॉन्च हुआ। यह भारत और अमेरिका के बीच, स्पेस साइंस के क्षेत्र में पहली बड़ी साझेदारी थी। यह देश में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए तकनीक के इस्तेमाल का पहला प्रयास भी था। यह भारतीय टेलीविजन के इतिहास का सबसे निर्णायक मोड़ है।
आईआईएम अहमदाबाद को भी स्थापित करने में रहा महत्वपूर्ण योगदान
देश के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संगठनों को स्थापित करने के अलावा, उनका भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद को भी शुरू करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा। आईआईएम अहमदाबाद देश में अपने तरह का पहला कार्यक्रम है। आज इसकी गिनती देश के सबसे सफल मैनेजमेंट संस्थानों में होती है।
मूल लेख – ऐश्वर्या सुब्रमण्यम
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