अक्सर मंदिर के बाहर या सड़क पर भिखारियों को देखकर हम कुछ पैसे देकर उनकी मदद कर देते हैं या फिर कभी-कभार उन्हें खाना खिलाकर सोचते हैं कि बहुत बड़ा पुण्य का काम कर लिया। लेकिन ऐसा करके, क्या सच में हम उनकी मदद कर पाते हैं?
पुणे के रहनेवाले डॉक्टर अभिजीत सोनावणे भी पहले कुछ ऐसा ही सोचते थे। वह भी आम लोगों की तरह, उन्हें खाना खिलाकर या पैसे देकर उनकी मदद करते रहते। जरूरत होती, तो उनका इलाज भी करते। लेकिन फिर उन्होंने सोचा, इतनी मदद काफी नहीं है। अगर इन गरीब, बेसहारा लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना है और सम्मान की जिंदगी देनी है, तो उन्हें आर्थिक रूप से सबल बनाना होगा।
‘भिखारियों का डॉक्टर‘
‘भिखारियों के डॉक्टर’ के रुप में मशहूर अभिजीत के इस सफर की शुरुआत, लगभग 15 साल पहले हुई थी। उस समय वह एक अच्छी खासी नौकरी कर रहे थे। पांच लाख रुपये महीने, उनकी तन्खवाह थी। लेकिन इतना पैसा मिलने के बावजूद, उनके मन में शांति नहीं थी। दरअसल, वह उन दो भिखारियों के लिए कुछ करना चाहते थे, जिन्होंने बेकारी के दिनों में उनकी मदद की थी।
वह अपने पुराने समय को याद करते हुए कहते हैं, “उस समय मैं बेरोजगार था। खाने के लिए जेब में पैसे नहीं थे, तो खाली पेट मंदिर में घूमने लगा। एक भिखारी जोड़े ने मुझे देखा और अपने हिस्से का खाना मुझे दे दिया। उन्होंने मुझे कुछ पैसे भी दिए थे। जब मेरी नौकरी लगी, तो मुझे उन लोगों का ख्याल आया। मैं उनकी मदद करना चाहता था। बस यही सोच मुझे यहां तक खींच लाई।”
सम्मानजनक जीवन देना है मकसद

अभिजीत को जहां कहीं भी, कोई भिखारी नजर आता, वह उन्हें पैसे देकर उनकी सहायता करने लगे। शुरू में तो उन्हें ये सब करना बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन फिर महसूस हुआ कि क्या इन्हें मुफ्त में खाना या फिर पैसा देना ही काफी है। उन्हें लगा, अगर सही मायनों में उनकी मदद करनी है, तो उन्हें रोजगार से जोड़ना होगा। तभी वे एक सम्मानजनक जीवन जी पाएंगे और उनकी आर्थिक हालत भी सुधरेगी। इसके बाद से अभिजीत, भिखारियों को समझा-बुझाकर, उन्हें नौकरी दिलाने या फिर सिलाई, चाट की दुकान जैसे छोटे-मोटे व्यवसाय खोलने में मदद करने लगे।
डॉक्टर अभिजीत कहते हैं, “वे मुझे अपना बेटा या पोता मानते हैं, इसलिए यह मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं उनके लिए कुछ करूं।”
तीन साल तक वह नौकरी करते हुए, बेसहारा लोगों की मदद करते रहे। फिर उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी। मंदिर, मस्जिद जहां भी भिखारी नजर आते, उनकी मदद के लिए अभिजीत आगे आते। वह, पिछले कई सालों से इन लोगों का मुफ्त इलाज कर रहे हैं। जब ये लोग बातचीत में उनके साथ सहज हो जाते हैं, तो उन्हें समझाते हैं कि आखिर वे भीख मांगना छोड़कर नौकरी या फिर कोई छोटा-मोटा व्यवसाय करना क्यों नहीं शुरू करते। वह इस काम में उनकी पूरी मदद करते हैं।
350 से ज्यादा बेसहारा लोगों को दिलवाया घर
अभिजीत ने अपनी इस पहल को ‘भिखारी से व्यवसायी’ नाम दिया है। ज्यादातर काम वह अकेले ही करते हैं। अब तक वह 105 लोगों को रोजगार से जोड़ने में मदद कर चुके हैं। उन्होंने 53 बच्चों समेत 350 से ज्यादा बेसहारा लोगों को घर दिलवाया है।
15 साल बीत जाने के बाद भी डॉक्टर अभिजीत अपने इस अभियान में उतनी ही शिद्दत के साथ जुटे हैं। आज भी वह हर सुबह अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हैं और बेघर, बेसहारा लोगों की मदद करने के लिए उनके पास पहुंच जाते हैं।
संपादन- जी एन झा
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