“एक औरत अपने बच्चे को लेकर गाँधीजी के पास आई और उनसे कहा, ‘आप इसे चीनी खाने के लिए मना करें और कहें कि चीनी खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। गाँधी जी ने उसे कहा कि वह एक हफ्ते बाद आएं। वह औरत फिर अपने बच्चे के साथ एक हफ्ते बाद गाँधी जी के पास पहुंची।
गाँधी जी ने बच्चे को कहा, ‘बेटा, चीनी खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं। तुम बहुत ज्यादा चीनी मत खाया करो।
बाद में, उस औरत ने गाँधी जी से पूछा कि आप यह बात एक हफ्ते पहले भी इसे कह सकते थे। इस पर गाँधी जी मुस्कुराए और जवाब दिया, ‘एक हफ्ते पहले तक मैं खुद चीनी खाता था। जो काम मैं स्वयं कर रहा हूँ उसे किसी और को न करने का उपदेश मैं कैसे दे सकता हूँ? यह तो झूठ होगा और झूठ से कोई बदलाव नहीं आता। आपको जो बदलाव दुनिया में देखना है, उसकी शुरूआत स्वयं से करें।’
गाँधी जी का यह किस्सा मुझे बेंगलुरु के रहने वाले पर्यावरणविद विनोद लाल हीरा ईश्वर ने बताया। क्योंकि विनोद स्वयं इस तथ्य में विश्वास करते हैं कि पर्यावरण के लिए जो कुछ भी बदलाव करने में वह सक्षम रहें हैं, उसका कारण यही है कि उन्होंने खुद से उस बदलाव की शुरूआत की।
कभी प्लास्टिक इंजीनियरिंग पढ़ने वाले विनोद लाल आज एक लेखक, क्रिएटिव डायरेक्टर, किसान और पर्यावरणविद हैं। वह बताते हैं, “मैंने प्लास्टिक इंजीनियरिंग के दौरान ही मन बना लिया था कि मैं इस इंडस्ट्री में काम नहीं करूँगा। क्योंकि पढ़ाई के दौरान हमारी लैब से ही बहुत ज्यादा कचरा बाहर निकलता था। उस समय भले ही क्लाइमेट चेंज जैसे शब्द बहुत कम ही सुनने को मिलते थे लेकिन मुझे समझ में आ गया था कि यह इंडस्ट्री हमारे पर्यावरण के लिए खतरा है।”
पर्यावरण-संरक्षण पर डिजाइन किए विज्ञापन और लिखीं किताबें:
विनोद ने साल 2000 में अपनी ग्रैजुएशन पूरी की और अपने करियर की शुरुआत एक एडवरटाइजिंग कंपनी के साथ बतौर कॉपी एडिटर की। यहाँ पर उन्हें अलग-अलग कंपनी और फर्म्स के लिए एडवरटाइजिंग पर काम करना पड़ता था। उन्होंने बताया कि यहाँ पर उन्होंने पर्यावरण के इर्द-गिर्द बहुत से विज्ञापन डिजाईन किए और लिखे।
“मुझे पेड़-पौधों से बचपन से ही लगाव था और यह लगाव शायद मेरी माँ से मुझे विरासत में मिला। पर्यावरण के प्रति मैं सजग तो था ही और इत्तेफाक से, कंपनी में मुझे एक के बाद एक पर्यावरण के विज्ञापन पर काम करने का मौका मिलता रहा। इस दौरान मैंने बहुत कुछ जाना-पढ़ा और समझा कि पेड़ और बारिश का बहुत ही गहरा संबंध है। अगर पेड़ होंगे तो हम अपनी मिट्टी, हवा और पानी- तीनों प्राकृतिक संसाधनों को सहेज सकते हैं,” उन्होंने आगे कहा।
विनोद के मुताबिक, एक-डेढ़ हफ्ते और कभी-कभी एक महीना लगाकर एक एड को तैयार किया जाता है। लेकिन एक दिन वह अखबार में छपती है और फिर दूसरे दिन रद्दी में पहुँच जाती है। इसलिए उन्होंने ऐसा कुछ करने की सोची कि उनकी बातों को असर ज्यादा से ज्यादा हो। उन्होंने कहा, “वैसे भी लेखन में किसी का दृष्टिकोण बदलने की क्षमता है। लेखन से आप लोगों को नया दृष्टिकोण दे सकते हैं और इसलिए मैंने किताब लिखने पर काम किया।”
विनोद लाल ने बच्चों के लिए दो किताबें लिखीं- लेट्स प्लांट ट्रीज और लेट्स कैच द रेन- इन दोनों ही किताबों को उन्होंने इतनी सरलता से लिखा है कि बच्चे बहुत आसानी से पेड़ों और बारिश का महत्व समझ सकते हैं। इन दोनों किताबों को अंग्रेजी सहित 9 भारतीय भाषाओं में प्रकाशित किया गया है ताकि इनका प्रभाव क्षेत्रीय हो। विनोद कहते हैं कि जिन क्षेत्रों में पानी की समस्या है, वहां पर उनकी किताबों को बहुत ज्यादा खरीदा गया है। यह उनका अपना एक निजी अनुभव है।
अवॉर्ड विनिंग एड-फिल्म:
विनोद और उनकी टीम ने कावेरी नदी के मुद्दे पर एक पब्लिक सर्विस एडवरटीजमेंट फिल्म बनाई थी, जिसे लगभग 27 अवार्ड्स मिले। वह कहते हैं, “कावेरी नदी के बारे में शायद अब सभी को पता होगा। सालों से कर्नाटक और तमिलनाडु इस नदी के पानी के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन नदी को सूखने से बचाने के लिए शायद ही कोई काम कर रहा है। हमने कावेरी के तट पर ही शूटिंग की और वहां देखा कि वहां एक पेड़ भी नहीं है। स्थानीय लोगों से बात की तो पता चला कि कभी यह इलाका हरा-भरा और पानी से भरा हुआ था। लेकिन लोगों की अनदेखी और पेड़ों के कटने से आज स्थिति यह हो गई है।”
लोगों को यह समझना होगा कि पेड़ों और पानी का सीधा संबंध है। जब हमारे यहाँ ज्यादा से ज्यादा पेड़ होंगे तब ही बारिश सामान्य रूप से होगी और बारिश होगी तब ही नदी में पानी होगा। इसलिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर हम प्रकृति के अन्य संसाधन और जीवों की रक्षा कर सकते हैं।
रिफॉरेस्ट इंडिया संगठन से जुड़े:
साल 2005 में विनोद की मुलाक़ात रिफॉरेस्ट इंडिया की संस्थापक जेनेट से हुई। उन्होंने रिफॉरेस्ट इंडिया के साथ काम करना शुरू किया और आज इस संगठन के ट्रस्टी हैं। जेनेट के साथ मिलकर विनोद ने बहुत से सफल अभियानों पर काम किया है। वह बताते हैं, “हमने कभी भी नंबर के लिए काम नहीं किया। मतलब कि फर्क इस बात से नहीं पड़ता कि हमने साल भर में कितने पौधे लगाए और कितने नहीं। फर्क इस बात से पड़ता है कि हमारे द्वारा लगाया गया हर एक पौधा, पेड़ बनें और हरियाली बढ़ाये। इसलिए हम जब भी किसी के लिए पेड़ लगाते हैं तो अच्छे से जांच करते हैं कि वह व्यक्ति पेड़ की देखभाल करेगा या नहीं।”
रीफोरेस्ट इंडिया मुफ्त में लोगों के लिए पेड़ लगाता है लेकिन उनके कुछ दिशा-निर्देश होते हैं, जिन्हें पूरा करना आवश्यक है। अगर आप रिफॉरेस्ट इंडिया से आपके लिए प्लांटेशन करने के लिए कहेंगे तो सबसे पहले वह इस बात का जायजा लेंगे कि पौधे की देखभाल की ज़िम्मेदारी कौन ले रहा है। अगर आप पौधे को यूँ ही बस शौक के लिए लगवाना चाहते हैं तो वे नहीं लगाएंगे। लेकिन अगर आप उन्हें समझा पाएं कि आप वाकई अपने आस-पास हरियाली चाहते हैं और पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहते हैं तो उनकी टीम खुद आपके यहाँ आकर प्लांटेशन करती है।
इसी तरह उनका एक अभियान, ‘गिफ्ट अ ट्री‘ भी है- जब आप किसी को कुछ तोहफे में देते हो तो भौतिक चीजें अक्सर कुछ सालों बाद अपनी कीमत खो देती हैं। लेकिन पेड़-पौधे विरासत की तरह हैं, जो हमारे जाने के बाद भी रहेंगे। इसके अलावा, किसानों के खेतों में उनकी टीम मुफ्त में फलों के पेड़ लगाती हैं।
किसानों की मदद:
विनोद बताते हैं कि बाकी जगह लोग बेशक पेड़-पौधों की कद्र न करें। लेकिन किसान कभी भी अपने खेतों में पेड़ों को मरने नहीं देते हैं। इसके साथ ही, उनका उद्देश्य किसानों के खेत में फलों का बागान बनाना भी है। इससे किसानों को अपनी फसल के साथ-साथ अतिरिक्त आय कमाने में भी मदद मिलेगी।
साल 2018 में सायक्लोन गाजा के कारण बहुत से किसानों के खेत बर्बाद हो गए थे। खासतौर पर नारियल की खेती पर निर्भर छोटे किसानों का बुरा हाल था। उनके पास एक-दो बीघे से ज्यादा ज़मीन भी नहीं होती और अगर उनकी फसल बर्बाद हो जाए तो उन्हें बहुत ज्यादा मुआवजा भी नहीं मिलता।
ऐसे में, विनोद और उनकी टीम ने ऐसे छोटे किसानों की मदद करने की ठानी। उन्होंने तंजावुर जिले में रहने वाले लगभग 100 किसानों के खेतों में नारियल और कुछ अन्य पेड़-पौधों का रोपण किया। इससे किसानों को सिर्फ इन पेड़ों की देखभाल में मेहनत करनी थी। उनका बाकी खर्च बच गया।
विनोद और उनकी टीम का उद्देश्य जगह-जगह स्थानीय फलों के बागान लगाना है। इसलिए वे लोग किसानों के खेतों में फलों के पेड़-पौधे लगाने के लिए कार्यरत हैं। वह कहते हैं कि इको शब्द से ‘इकोनॉमी’ और ‘इकोलोजी’ दोनों ही शब्द जुड़े हुए हैं। लेकिन हम इकोनॉमी के चक्कर में इकोलॉजी को भूल गए हैं। अगर हम इकोलॉजी के लिए कुछ नहीं करेंगे तो एक दिन हमारी इकॉनमी के सभी रास्ते भी बंद हो जाएंगे।
खुद भी बन गए किसान:
दूसरे किसानों के यहाँ पेड़-पौधे लगाने के साथ-साथ विनोद खुद भी किसानी कर रहे हैं। उनके परिवार का लगभग 12 एकड़ का खेत है, जिस पर वह सुभाष पालेकर की ‘जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग’ के तरीकों से खेती कर रहे हैं। विनोद अपने खेत पर फल, साग-सब्ज़ियाँ और दाल-अनाज, सभी तरह की फसलें उगाते हैं। मिश्रित खेती करते हुए वह वन्य जीव-जन्तुओं का ख्याल भी रखते हैं। उन्होंने अपने खेतों को एक इकोसिस्टम बनाया है, जिससे कि उन्हें बाहर से कुछ भी खेतों में डालना पड़े और साथ ही, वन्य जीव-जन्तुओ की भी ज़रूरतें पूरी होती रहें।
विनोद कहते हैं कि प्रकृति को समझने के लिए ज़रूरी है उससे जुड़ना। आप अगर एक पेड़ लगाकर भी प्रकृति से जुड़ सकते हैं तो ज़रूर जुड़िए। अगर आप खुद पेड़-पौधे लगाएं और पर्यावरण का ख्याल रखेंगे तभी अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ी को यह करने का उपदेश दे सकेंगे। हमेशा याद रखें कि जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हैं, वह आपको स्वयं बनना है!
विनोद से संपर्क करने के लिए आप उन्हें vinod.eshwar@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।
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