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देसी गाय के गोबर से बना Vedic Plaster, जो गर्मी में भी देता है ठंडक का एहसास

vedic plaster

आज हर कोई इको फ्रेंडली और सस्टेनेबल घर बनाना चाहता है। एक ऐसा घर, जो हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के अनुकूल तो हो ही, पर भी किफ़ायती हो। दूसरे शब्दों में कहें, तो घर ऐसा हो जो दुनिया के किसी भी छोर में हो पर गांव के किसी घर जैसा एहसास देता हो। वही मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुश्बू और वही ठंडी-ताज़ी हवा। शहरों में शायद जगह और प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण, ऐसा घर बनाना थोड़ा मुश्किल हो, लेकिन गांव में आज भी काफी लोग सीमेंट के नहीं, बल्कि मिट्टी के घर में रहते हैं। इन घरों की पुताई गाय के गोबर से की जाती है, ताकि घर में ठंडक बनी रहे और हानिकारक कीटाणु और जीवाणु भी न रहें। गांव की इस सालों पुरानी तकनीक से प्रेरणा लेकर, रोहतक (हरियाणा) के 53 वर्षीय डॉ. शिव दर्शन मलिक ने गाय के गोबर का इस्तेमाल कर, इको फ्रेंडली वैदिक प्लास्टर (Vedic Plaster) का अविष्कार किया है। वैदिक प्लास्टर (Vedic Plaster) के आविष्कार के लिए, डॉ. मलिक को 2019 में राष्ट्रपति की ओर से ‘हरियाणा कृषि रत्न’ पुरस्कार भी मिला है।

डॉ. मलिक मूल रूप से, रोहतक में मदीना गांव के रहने वाले हैं। गांव से होने के कारण वह हमेशा से खेती, गोशाला, पशुपालन आदि गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई, हिसार में कुंभा खेड़ा गांव के गुरुकुल में हुई थी। उन्होंने केमिस्ट्री में पीएचडी की डिग्री हासिल की है।  

पीएचडी करने के बाद, उन्होंने कुछ समय तक केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर के तौर पर काम भी किया। हालांकि, वह अपने काम से खुश नहीं थे। वह हमेशा से रिन्युएबल एनर्जी, सस्टेनेबिलिटी और पर्यावरण के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे। उन्होंने साल 2000 में IIT दिल्ली के साथ मिलकर, गोशाला से निकलने वाले वेस्ट और ऐग्री-वेस्ट से ऊर्जा बनाने के प्रोजेक्ट पर काम किया था।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “चूँकि मैं किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूँ, इसलिए मैं हमेशा से ही गांव में मौजूद संसाधनों का सही रूप में इस्तेमाल करना चाहता था। मैं हमेशा सोचता था कि गाय के गोबर और खेतो में बेकार पड़ी चीजों को इस्तेमाल में कैसे लाया जाए। मैं इस क्षेत्र में रिसर्च कर ही रहा था कि उस दौरान मुझे IIT दिल्ली के साथ मिलकर, ‘Waste to Wealth’ प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिला।” 

डॉ. शिव दर्शन मलिक

उन्होंने 2004 में वर्ल्ड बैंक और 2005 में UNDP (United Nations Development Programme) के साथ भी रिन्युएबल एनर्जी के एक-एक प्रोजेक्ट पर काम किया है।  

वैदिक प्लास्टर की शुरुआत  

डॉ. मलिक ने बताया कि वह इन दोनों प्रोजेक्ट के सिलसिले में अमेरिका, इंग्लैंड, ईरान सहित कई दूसरे देशों में जाते रहते थे। उन्होंने अमेरिका में एक बार देखा कि लोग, भांग के पत्तों में चूना मिलाकर हैमक्रिट बनाते हैं और उससे घर तैयार करते हैं। वहीं से उन्हें आईडिया मिला कि वह भी गाय के गोबर का इस्तेमाल कर, प्लास्टर तैयार कर सकते हैं।  

उन्होंने बताया, “मैं बचपन से गांव में देखता था कि लोग अपने घरों की पुताई गोबर से करते हैं। मैंने इससे होने वाले फ़ायदे के बारे में रिसर्च की और पाया कि गोबर का इस्तेमाल करने से, घर की दीवारें प्राकृतिक रूप से थर्मल इंसुलेटेड हो जाती हैं। जिससे ये घर गर्मी में ज्यादा गर्म नहीं होते और सर्दियों में ज्यादा ठंडे नहीं होते।” लेकिन, आज जब गांव में भी पक्के मकान बनने लगे हैं, तो उन्होंने पक्के घरों को कच्चे मकान जैसा ठंडा बनाने का एक बेहतरीन तरीका ढूंढ निकाला है।  

गाय के गोबर से घरों में होने वाली पुताई के कॉन्सेप्ट को आम लोगों तक आसानी से पहुंचाने के लिए, उन्होंने 2005 में वैदिक प्लास्टर (Vedic Plaster) बनाया। डॉ. मलिक ने देसी गाय के गोबर में जिप्सम, ग्वारगम, चिकनी मिट्टी, नींबू पाउडर आदि चीजों को मिलाकर, वैदिक प्लास्टर (Vedic Plaster) तैयार किया। यह प्लास्टर आसानी से किसी भी दीवार पर लगाया जा सकता है। 

वह कहते हैं, “यह प्लास्टर, किसी भी आम प्लास्टर जैसा ही मजबूत होता है और सालों तक चलता है। प्लास्टर (Vedic Plaster) में मौजूद गाय का गोबर, घर में नेगटिव आयन की मात्रा भी बढ़ाता है, जो स्वास्थ्य के लिए ठीक रहता है।”  

इको फ्रेंडली घर    

डॉ. मलिक कहते हैं, “गोशाला में कई टन गोबर जमा हो जाता है। मैं हमेशा सोचता रहता हूँ कि और किन तरीकों से गोबर का सही इस्तेमाल किया जा सकता है।” साल 2018 में, उन्होंने गोशाला की स्थिति सुधारने और सस्टेनेबल घर बनाने के मकसद से, गोबर की ईंट बनाना शुरू किया। उनका यह प्रयोग काफी सफल रहा। गोबर की ईंट बनाने में ऊर्जा की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ती। हैमक्रिट और कॉन्क्रीट की तर्ज पर, उन्होंने गोक्रीट बनाया। डॉ. मलिक की मदद से गोक्रीट का इस्तेमाल कर, अब तक महाराष्ट्र के रत्नागिरी, झारखंड के चाकुलिया और राजस्थान के बीकानेर में, एक-एक कमरे बनाए गए हैं।  

झारखंड के चाकुलिया स्थित ‘ध्यान फाउंडेशन’ की गोशाला में, पिछले डेढ़ साल से नंदी बैल की सेवा में लगी, डॉ. शालिनी मिश्रा बताती हैं, “हमारी गोशाला में नौ हजार नंदी बैल हैं, इसलिए गोबर भी ज्यादा मात्रा में होता है। गोबर का सही इस्तेमाल करने के लिए मैंने डॉ. मलिक से गोक्रीट बनाना सीखा। इसके बाद, मैंने हमारी गोशाला में एक कमरा भी बनवाया है।” वह आगे कहती हैं कि गोक्रीट से बना कमरा हमेशा ठंडा रहता है और यह किसी दूसरे कमरे की तरह ही मजबूत होता है।  

डॉ. मलिक बताते हैं कि गोबर से बनी एक ईंट का वजन तकरीबन 1.78 किलों तक होता है, वहीं इसे बनाने में महज चार रुपये प्रति ईंट खर्च आता है। 

गोक्रीट से बना कमरा

वैदिक तरीका अपनाकर लाखों में कमाई  

उनके बीकानेर स्थित कारखाने में सलाना पांच हजार टन वैदिक प्लास्टर (Vedic Plaster) बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि देशभर में उनके 15 से ज्यादा डीलर्स हैं। पिछले साल, उन्हें सिर्फ वैदिक प्लास्टर (Vedic Plaster) से 10 लाख रुपये का मुनाफा हुआ है। वह बड़ी ख़ुशी से बताते हैं कि अब तक हजारों घरों में वैदिक प्लास्टर लगाया जा चुका है। फ़िलहाल वह ईंट का बिज़नेस नहीं, बल्कि लोगों को ईंट बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। उन्होंने 2018 से अब तक तक़रीबन 100 लोगों को गोबर की ईंट बनाने की ट्रेनिंग दी है, जिनमें किसान, गोशाला से जुड़े लोग और कुछ आर्किटेक्ट भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि फिलहाल 100 से ज्यादा लोगों ने ट्रेनिंग के लिए रजिस्ट्रेशन तो कराया है, लेकिन कोरोना के कारण अभी ट्रेनिंग प्रोग्राम बंद है।  

अंत में वह कहते हैं, “प्राकृतिक चीजों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करके, हम गांव की इकॉनमी को मजबूत बनाने के साथ-साथ, भारी मात्रा में कार्बन एमिशन या कार्बन उत्सर्जन को भी कम कर सकते हैं।”

आप डॉ. मलिक और उनके उत्पादों से जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिए उनका फेसबुक पेज देख सकते हैं। 

संपादन – प्रीति महावर

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