Site icon The Better India – Hindi

मजदूरों को दिनभर झुककर काम करते देख, बना दी अदरक-हल्दी की सस्ती बुवाई मशीन

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रहने वाले इंद्रजीत सिंह खस ने कभी भी यह नहीं सोचा था कि एक दिन लोग उन्हें आविष्कारक के तौर पर जानेंगे। उन्होंने बचपन से ही अपने पिता को बहुत मेहनत करते हुए देखा था। पंजाब में जब खेती-बाड़ी में कुछ नहीं बचता था तो उनके पिता रोज़गार की तलाश में औरंगाबाद के सोयागाव आकर बस गए। यहाँ उन्होंने कई तरह के काम किए लेकिन वह बार-बार असफल हुए। आखिरकार उन्होंने अपनी एक छोटी-सी वर्कशॉप शुरू की।

इंद्रजीत ने द बेटर इंडिया को बताया, “स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान जब भी वक्त मिलता तो मैं वर्कशॉप में पिताजी का हाथ बंटाया करता था। उन्हें बहुत अच्छा लगता था जब लोग अपनी मशीन उनके पास ठीक कराने लाते थे। इलाके में उनकी वर्कशॉप के बारे में बस यही कहा जाता था कि अगर कहीं कोई मशीन ठीक नहीं हुई है तो सरदार जी के पास ले जाओ, वहां ठीक हो जाएगी।”

इंद्रजीत धीरे-धीरे अपने पिता के काम को आगे बढ़ाने लगे। काम के सिलसिले में वह अक्सर किसानों से मिलने लगे। किसी का ट्रैक्टर तो किसी की बुवाई मशीन, वह कुछ न कुछ ठीक करने जाते थे।

एक घटना का जिक्र करते हुए इंद्रजीत बताते हैं, “एक बार में एक किसान के यहाँ गया तो वहाँ देखा कि मजदूरों का मेला सा लगा हुआ है। पूछने पर पता चला कि अदरक और हल्दी की बुवाई हो रही है, इसलिए इतने ज्यादा मजदूर चाहिए। मैंने वहाँ एक-दो महिलाओं से बात की और पूछा कि इतनी देर झुककर काम करने से क्या कमर में दर्द नहीं होता? इस सवाल पर वह मायूस हो गई और कहा कि करना तो पड़ता है।”

Indrajit Khas

वह खेत पर मजदूरों से बात कर रहे थे कि जिस किसान ने उन्हें बुलाया था वह भी आ गया। उन्होंने उस किसान से कहा कि इन मजदूरों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। यह सुनकर किसान ने कहा, ‘फिर सरदार जी आप कोई मशीन क्यों नहीं बना देते?’ किसान की यह बात इंद्रजीत के मन में घर कर गई। वह वर्कशॉप वापस आए और मशीन बनाने में जुट गए।

उन्होंने पहले कृषि से जुड़ी अलग-अलग मशीनों के बारे में जाना और पढ़ा। फिर यह समझा कि हाथ से किस तरह से अदरक और हल्दी बोई जाती है। इसके बाद उन्होंने अपनी तकनीक पर काम किया।

शुरूआती प्रोटोटाइप तैयार करने में उन्हें सालभर से ज्यादा समय लगा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, वह अपनी मशीन बनाने में जुटे रहे। प्रोटोटाइप तैयार करने के बाद उन्होंने इसका खेतों पर ट्रायल किया और अब कहीं जाकर उनका फाइनल डिज़ाइन तैयार हुआ।

“मशीन बनाने का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था। उस जमाने में इंटरनेट की बहुत सुविधा नहीं थी, इसलिए पहले जगह-जगह सामान खोजना पड़ता। कई बार तो रात को घंटों तक इंटरनेट कैफ़े पर बैठकर मैं मशीन के लिए ज़रूरी बैरिंग और गियर जैसी चीजें देखता था। फिर प्रिंट आउट लेकर बाज़ार पहुँचता और सामान जुटाता था। इस दौरान घरवाले भी काफी परेशान रहे और कई बार डांटते भी थे कि क्या ज़रूरत है यह सब करने की,” उन्होंने बताया।

बाज़ार में भी कई लोगों ने उनका मजाक बनाया लेकिन ऐसे भी लोग थे जो उनके प्रयासों की सराहना करते थे। साल 2009 में शुरू हुआ उनका सफर लगभग 3 साल बाद खत्म हुआ। उन्होंने आखिरकार अदरक और हल्दी की बुवाई के लिए मशीन बना ही ली। अपने एक दोस्त के खेत में उन्होंने मशीन का ट्रायल लिया और यह कामयाब रही।

इंद्रजीत कहते हैं कि इस मशीन के साथ ही उनकी वर्कशॉप सिर्फ रिपेयरिंग के लिए ही नहीं बल्कि मैन्युफैक्चरिंग के लिए भी मशहूर हो गई। उनके पिता ने रिपेयरिंग से कहानी को शुरू किया था, जिसे इंद्रजीत ने एक कदम आगे बढ़ाया और अब वह अदरक-हल्दी की बुवाई मशीन के अलावा कृषि से जुड़े अन्य यंत्र जैसे जुताई की मशीन, निराई-गुड़ाई की मशीन भी बना रहे हैं।

अदरक-हल्दी की बुवाई मशीन:

Ginger-Turmeric Planter

यह ट्रैक्टर से चलने वाली बुवाई मशीन है। अदरक और हल्दी की बुवाई इससे आसानी से हो जाती है और यह एडजस्टेबल है। इससे आप अपने मन-मुताबिक हल्दी की गांठों के बीच की दूरी एडजस्ट कर सकते हैं। यह सबसे पहले ज़मीन में गड्ढा करती है। फिर ऊपर से हल्दी या अदरक की गाँठ नीचे आती है और यह गड्ढे में जाती है और फिर मशीन ही गड्ढे के ऊपर मिट्टी डालती है।

पहले जहाँ किसानों को एक एकड़ में हल्दी-अदरक की बुवाई के लिए 20 से ज्यादा मजदूरों की ज़रूरत होती थी, वही काम अब 5 मजूदर आसानी से कर सकते हैं। मशीन से बुवाई भी एकदम स्टैण्डर्ड होती है मतलब की सभी गांठों के लिए गड्ढा साढ़े चार इंच का ही होता है और दो गांठों के बीच की दूरी भी किसान खुद तय करते हैं, जो 6 इंच, 9 इंच और 12 इंच तक होती है।

हाथ से बुवाई के दौरान लगभग 10-11 क्विंटल हल्दी या दरक की गांठे एक एकड़ में लग जाती हैं। वहीं मशीन से सिर्फ साढ़े 8 क्विंटल हल्दी और अदरक की गांठों की ज़रूरत होती है। इस तरह से किसान को पहले जो एक एकड़ में बुवाई का खर्च 3 से 4 हज़ार रुपये आता था वह अब 800 या हज़ार रुपये तक ही आता है।

इंद्रजीत कहते हैं कि मशीन की कीमत फिलहाल जीएसटी सहित 84 हज़ार रुपये है।

साल 2013 में उन्हें अपनी इस मशीन को एक राष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित करने का मौका मिला। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने उन्हें इस मशीन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा। वह बताते हैं कि पहले दो साल वह 7-8 मशीन ही बेच पाए थे। लेकिन एनआईएफ की मदद से उन्होंने एक साल में ही 15 से ज्यादा मशीन बेचीं। अब तक वह 180 से ज्यादा अदरक और हल्दी की बुवाई मशीन बेच चुके हैं। इनमें से 3 मशीन उन्होंने बांग्लादेश निर्यात की हैं।

नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के बाद उन्हें अभिनेता अक्षय कुमार से भी पुरस्कार राशि मिली। वह आगे बताते हैं कि फ़िलहाल, महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस मशीन को सब्सिडी दिलाने हेतु वह प्रयासरत हैं। उनकी कोशिश है कि यह मशीन ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचे और उनकी आय बढ़ाने में मददगार साबित हो।

“मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाएगा। लेकिन अगर मैं अपने आईडिया और अपने पैशन से यहाँ तक पहुँच सकता हूँ तो कोई भी पहुँच सकता है। इसलिए अपने आइडियाज पर काम करें और लगातार मेहनत करते रहें। आपको सफलता ज़रूर मिलेगी,” उन्होंने अंत में कहा।

अगर आप इस मशीन के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो इंद्रजीत सिंह खस से 9423813636, 9421405238 पर संपर्क कर सकते हैं!

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़: कुम्हार ने बनाया 24 घंटे तक लगातार जलने वाला दिया, पूरे देश से आयी मांग


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

Exit mobile version