कश्मीरी भाइयों ने किए 30+ आविष्कार, डॉ. कलाम ने कहा था ‘क्रिएटिव ट्विन्स ऑफ इंडिया’

Creative Twins of India

कश्मीर में रहने वाले दो जुड़वां भाई रफ़ाज़ और इश्फ़ाक वानी के नाम पर 30 से ज्यादा इनोवेशन्स हैं। वे अपने रचनात्मक कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी इनके काम को सराहा था।

30 से ज्यादा इनोवेशन्स कर चुके कश्मीर के शहर वंदेवलगाम सोयान में रहनेवाले जुड़वा भाइयों (Creative Twins of India) रफाज़ और इश्फाक वानी का बचपन अन्य बच्चों जैसा नहीं था। उनके लिए बचपन की यादें हंसते-खेलते बड़े होने की नहीं, बल्कि जिंदा बने रहने के लिए संघर्ष की कहानी हैं। 

रफाज़ याद करते हुए बताते हैं, “हम पिता के साथ ईद की नमाज़ अदा करने के लिए बाहर गए थे। उस समय हम दोनों छठी कक्षा में थे। रास्ते में बहुत सारे बच्चों को खिलौने की दुकान पर खड़े देखा तो हमने भी अपने पिता से खिलौने खरीदने की जिद की। उन्होंने बड़े प्यार से हमें ना कहा और बोले, “जब घर पहुंचेंगे तो बहुत सारे खिलौने हमारा इंतजार कर रहे होंगे।”

घर जाने पर सचमुच मिले ढेरों खिलौने

रफाज़ और इश्फाक के पिता अहमद, मजदूरी किया करते थे और जो कुछ भी कमा रहे थे, उससे परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो रहा था। रफाज़ ने द बेटर इंडिया को बताया, “बड़ी मुश्किलों से वह हमारी पढ़ाई का खर्च उठा पाते थे।”

घर आकर अहमद ने बच्चों से बरामदे में पड़ी मिट्टी को इकट्ठा करने और उसमें पानी डालकर गीला करने के लिए कहा। रफाज़ बताते हैं, “उन्होंने हमारे लिए जानवरों की आकृति वाले काफी सारे खिलौने बनाए। हम तो उनके हुनर को देखकर हैरान थे।”

Mud toys prepared by Refaz and Ishfaq in early days
Mud toys prepared by Refaz and Ishfaq in early days

अपने पिता से प्रभावित होकर उन्होंने भी इसमें अपना हाथ आज़माने की कोशिश की और अपने लिए कुछ खिलौने बनाए। उन दोनों की रचनात्मकता ने अच्छे परिणाम दिए और फिर वे बहुत अच्छे खिलौने बनाने लगे, जिसे आस-पास के लोगों ने काफी पसंद किया। धीरे-धीरे उन्होंने खुद के बनाए खिलौनों और बर्तनों को शहर में बेचना शुरू कर दिया।

29 साल के रफाज़ कहते हैं, “हमारे खिलौने बनाने के हुनर ने हमें लोकप्रिय बना दिया था।” खिलौने बनाना रचनात्मकता की ओर जाने का उनका पहला कदम था और समय के साथ उनकी रचनात्मकता इनोवेशन के रूप में बदलती चली गई।

डॉ. कलाम ने कहा ‘Creative Twins of India’

रफाज़ और इश्फाक, दोनों भाई (Creative Twins of India) उस समय तकरीबन 14 साल के थे, जब उन्होंने अपने गांव में एक ‘अर्थमूवर मशीन’ को देखा था। अपने पहले आविष्कार के बारे में रफाज़ बताते हैं, “स्थानीय लोग इस नई और भारी मशीन को देखकर काफी चकित थे। कम समय में गहरा गड्ढा खोदने की इस तकनीक ने हमें भी काफी प्रभावित किया था।”

इसके बाद, इन दोनों भाइयों (Creative Twins of India) ने मिलकर अर्थमूवर का एक अस्थाई मॉडल बनाया, जिसमें किसी भी इंजन की जरूरत नहीं थी। इसे मैनुअली चलाया जा सकता था। वह कहते हैं, “हमारी यह मशीन दो मज़दूरों के बराबर काम करती थी। इसने समय और मेहनत दोनों की बचत की।”

साल 2010 में उनकी मुलाकात कश्मीर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर जी एम भट्ट से हुई। रफाज़ बताते हैं, “उन्होंने हमारी प्रतिभा को एक नया रास्ता दिखाया और हमें केंद्र सरकार के ‘इनोवेशन इन साइंस परस्यूट’ में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। इस कार्यक्रम को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा प्रायोजित और संचालित किया गया था। उन्होंने हमारी आर्थिक रूप से भी काफी मदद की थी।”

Creative Twins of India ने कई पुरस्कार किए अपने नाम

दोनों जुड़वा भाइयों (Creative Twins of India) ने ‘नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF), अहमदाबाद’ में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ‘अखिल भारतीय इग्नाइट प्रतियोगिता’ में भी भाग लिया। वे दोनों अपने 15 नवाचार के साथ प्रतियोगिता में गए थे, जिसमें से उनकी एक फोल्डेबल पानी की बोतल ने 26 प्रतियोगियों को पछाड़ते हुए पुरस्कार जीता था।

रफाज़ ने कहा, “हमारी यह अनोखी बोतल आसानी से जेब में रखी जा सकती है। इसमें आप एक साथ दूध, पानी या कुछ भी तरल पदार्थ भरकर ला सकते हैं। बोतल में चार अलग-अलग खांचे बनाए गए हैं, जिसमें जरूरत के अनुसार कुछ भी भरकर रखा जा सकता है। यह एक साधारण सा आइडिया है, लेकिन इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं गया।”

उन्होंने बताया, “हमें यह पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से मिला था। उन्होंने हमें एक अनोखे नाम से भी संबोधित किया- ‘Creative Twins of India’ और हमें विज्ञान में शिक्षा हासिल करने की सलाह देते हुए कहा कि आपको इससे बहुत फायदा होगा।”  

डॉ कलाम के साथ हुई बातचीत ने उनकी जिंदगी को एक नया मोड़ दे दिया था। रफाज़ और इश्फाक को साल 2012, 2013 और 2014 में उनके इनोवेशन के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला। साल 2012 में, उन्होंने कनाडा में भी एक अवॉर्ड जीता था। साल 2021 में दोनों भाइयों की जोड़ी ने तुर्की में ISIF-21 के लिए छठे ‘इस्तांबुल अंतर्राष्ट्रीय आविष्कार’ में स्वर्ण पदक हासिल किया है।

Innovations Of Creative Twins of India: Apple cutter and foldable water bottle
Innovations Of Twin Brothers: Apple cutter and foldable water bottle

500 अविष्कार अभी किए जाने बाकी 

दोनों भाइयों के अनुसार, वे दोनों अभी तक 36 इनोवेशन कर चुके हैं, जिनमें एक ब्लेड के ज़रिए पेड़ से सेब काटने वाली मशीन (Apple Cutter Machine), फल तोड़ने के लिए सिढ़ी, एक ऑटोमेटिक सर्विंग बाउल और एक वाशिंग-कम-ड्राइंग मशीन शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने ‘कुदाल और फावड़ा मशीन’, एक इंजेक्शन ब्रेकर, वाहनों के लिए इंजन के पार्ट्स, गो मूत्र इकट्ठा करने वाली एक डिवाइस और एक एप्पल ग्रेडिंग डिवाइस भी तैयार की है। 

एप्पल कटर की सहायता से, जान जोखिम में डाले बिना ही पेड़ से सेब तोड़े जा सकते हैं। इसे चलाने के लिए बिजली की जरूरत होती है। ‘कुदाल और फावड़ा मशीन’ पारंपरिक औजारों की तरह काम करके खेती के लिए जमीन तैयार करती है।

इश्फाक अपने उपकरण की खासियत बताते हुए कहते हैं, “पारंपरिक कुदाल और फावड़े क्षतिग्रस्त होने पर बेकार हो जाते थे, लेकिन हमारा यह इनोवेटिव मॉडल क्षतिग्रस्त होने पर बदला जा सकता है। इससे 50 प्रतिशत तक की कुल लागत की बचत होती है, जो किसानों के लिए काफी फायदेमंद है।”

उनके अविष्कारों की लिस्ट काफी लंबी है। अभी 500 इनोवेशन तो ऐसे हैं, जिन पर काम करना बाकी है। इश्फाक कहते हैं, “पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के साथ काफी विचार-विमर्श करने के बाद, हमने अपने दो स्टार्टअप, ‘एग्रो टेक प्लांट’ और ‘वानी एग्रो टेक’ की स्थापना की है। इसी यूनिवर्सिटी से हमने पढ़ाई भी की है। एप्पल कटर और कुदाल और फावड़ा मशीन को जल्द ही कमर्शियल कर मार्केट में उतारा जाएगा।”

आर्थिक मदद की है जरूरत 

इनोवेशन के लिए उनके पास काफी विचार हैं, लेकिन बहुत कम पर ही वे काम कर पाते हैं। इसकी एक बड़ी वजह पैसों की कमी है। इश्फाक बताते हैं, “अपने 36 इनोवेशन्स में से हम सिर्फ 9 को ही पेटेंट करवा पाए हैं। पेटेंट को मंजूरी मिलने में 5 साल का समय लगता है। इसके अलावा, हम ऐसा कोई काम नहीं कर रहे हैं, जो हमारी आमदनी का जरिया बन सके। प्रोटोटाइप और वास्तविक उत्पाद बनाने के लिए पूरी तरह से पुरस्कार राशि या बाहरी फंड पर निर्भर रहना पड़ता हैं।”

उन्होंने कहा, “हम नौकरी नहीं करना चाहते, क्योंकि अगर हम नौ से पांच के रुटीन में बंध जाएंगे, तो इनोवेशन पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। इससे बेहतर होगा कि हम अपने उत्पादों का व्यवसायीकरण करें और इन्हें आमदनी का जरिया बना लें।“ 

हालांकि उनकी रचनात्मकता और अविष्कारों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिल चुकी है। फिर भी संभावित निवेशकों और सरकार से किसी भी तरह की कोई मदद या समर्थन नहीं मिल पाया है।

Spade and Hoe made by Refaz and Ishfaq, Creative Twins of India
Spade and Hoe made by Refaz and Ishfaq

वह कहते हैं, “हमारे लिए इनोवेशन के लिए ‘आइडिया’ कोई समस्या नहीं है। सब कुछ सामने होता है, बस उसका साधारण सा उपाय खोजना है, असली समस्या तो फंड की है। स्टार्टअप की अवधारणा देश के अन्य हिस्सों में काफी फैल रही है और इस पर काफी काम भी किया जा रहा है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में औद्योगिक क्षेत्र अविकसित हैं।”

अभी भी पिता उठा रहे हैं खर्च

इश्फाक के अनुसार, औद्योगिक विकास की कमी के कारण विशेषज्ञता की तो कमी होती ही है, साथ ही रिसर्च और विकास के बुनियादी ढांचे व मार्केटिंग की भी समस्या होती है। उन्होंने बताया, “हमने इन मुद्दों को उठाने के लिए जिले और राज्य सरकार के अधिकारियों से संपर्क किया है। वरिष्ठ अधिकारी अक्सर हमारे प्रयास की सराहना करते हैं। हमारी उपलब्धियों और पुरस्कार पर हमें बधाई भी देते हैं, लेकिन जब आर्थिक सहायता की बात आती है, तो कोई भी हाथ नहीं बढ़ाता है।”

फिलहाल, उनके पिता अहमद ही अपने दोनों बेटों का खर्च उठा रहे हैं, ताकि उनके काम में किसी तरह की कोई रुकावट न आए। इश्फाक ने कहा, “हमारे पिता अपनी क्षमता के अनुसार हमारी मदद करते रहते हैं। अगर निवेशकों से आर्थिक सहायता मिल जाए, तो उनका थोड़ा बोझ कम हो जाएगा।”

स्टार्टअप से है उम्मीद

दोनों भाइयों (Creative Twins of India) को उम्मीद है कि हाल ही में शुरू हुआ उनका स्टार्टअप, उनकी सफलता की अगली सीढ़ी बनेगा और राज्य में स्टार्टअप को लेकर बनी सोच में भी बदलाव लेकर आएगा।

रफाज़ के अनुसार, “वे मुख्य रूप से कृषि नवाचारों पर ध्यान देना चाहते हैं। किसानों का देश की अर्थव्यवस्था में खासा योगदान है। उनके जीवन को बेहतर बनाने से ज्यादा संतुष्टि हमें कहीं नहीं मिल सकती।”

वह आगे कहते हैं, “हम उस दिन के इंतजार में हैं, जब हमारे ज्यादातर इनोवेशन्स, कमर्शियल प्रोडक्ट में बदल जाएंगे और मार्केट में बिक्री के लिए तैयार होंगे। इससे हम रोजगार के अवसर भी पैदा कर पाएंगे और काफी लोगों को फायदा भी पहुंचेगा।”

मूल लेखः हिमांशु नित्नावरे 

संपादनः अर्चना दुबे

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