कारोबार के क्षेत्र में महिलाओं को अक्सर कमतर आँका जाता है। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जहाँ कुछ महिलाओं (Women Entrepreneurs) ने मिलकर एक ऐसा बिजनेस शुरू किया, जिससे वे आज न केवल हर महीने लाखों की कमाई कर रही हैं बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों महिलाओं के जीवन में भी बदलाव देखने को मिल रहा है।
यह कहानी है, दिव्या राजपूत, पूजा अरोड़ा, सुरभि सिन्हा, आस्था और क्रिस्टीना ग्रोवर की। जिन्होंने सितंबर 2019 में दिल्ली में काकुल नाम से एक ऐसे मंच को शुरू किया, जहाँ न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल और हाथों से बने सौ से अधिक उत्पादों को बेचा जाता है बल्कि इससे दूसरी महिला उद्यमियों को भी बढ़ावा मिल रहा है।
कैसे मिला विचार
इस विषय में दिव्या बताती हैं, “इस बिजनेस को शुरू करने का आइडिया काकुल रिजवी का था। वह एक मार्केटिंग प्रोफेशनल थीं। लेकिन 2018 में वह कैंसर से ग्रस्त हो गईं। इलाज के दौरान, उन्होंने देखा कि आज जैविक उत्पादों को खोजने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।”
वह आगे बताती हैं, “इससे प्रेरित होकर, उन्होंने एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाने का विचार किया, जिससे जैविक उत्पादों को बढ़ावा मिलने के साथ ही, बिजनेस के क्षेत्र में महिलाओं को भी प्रोत्साहित करने में मदद मिले।”
क्योंकि, आज भारत के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में जहाँ किसानों और कामगारों को ट्रेनिंग दी जाती है, ‘क्लस्टर डेवलपमेंट’ का काम तो चल रहा है। लेकिन, बाजार तक पहुँच नहीं होने के कारण, उनके उत्पाद बिक नहीं पाते हैं।
उन्होंने अपने इस विचार को दिव्या से साझा किया। जिसके बाद दिव्या ने बाकी सभी महिलाओं को एकजुट कर, इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया। ये सभी महिलायें पहले कहीं न कहीं नौकरियां कर चुकी थीं और उन्हें प्लास्टिक के खतरों का अंदाजा भी था। उन्होंने सितंबर 2019 में अपने वेंचर की शुरुआत की। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि जिस दिन उनकी कंपनी शुरू हुई, काकुल रिजवी का निधन हो गया।
कैसे करते हैं बिजनेस
दिव्या बताती हैं, “हम अपने इस प्लेटफॉर्म के जरिये अपने यूनिट में बने बायोडिग्रेडेबल स्टेशनरी, एग्री वेस्ट मग, जूट और कैनवास बैग, हर्बल इम्यूनिटी बूस्टर जैसे उत्पादों के अलावा, नागालैंड, असम, मेघालय जैसे कई राज्यों की महिला उद्यमियों के साथ काम कर रहे हैं। हम प्राकृतिक रूप से तैयार शहद, मसाले जैसी कई चीजों को बढ़ावा देते हैं।”
काकुल के मंच पर फिलहाल सौ से अधिक उत्पाद हैं और उनके साथ 15 वेंडर प्रत्यक्ष रूप से काम कर रहें हैं। जिनसे करीब 200 महिलायें जुड़ी हुईं हैं।
इसके लिए उन्होंने 1000 रूपये का ‘सब्सक्रिप्शन मॉडल’ तैयार किया है। जिसे सब्सक्राइब कर, कोई भी महिला इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिये अपने जैविक उत्पादों को बेच सकती है।
इस विषय में कंपनी की चीफ इनोवेटिव ऑफिसर क्रिस्टीना ग्रोवर बताती हैं, “आज हमारे ग्राहक दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में हैं।”
वह आगे बताती हैं, “हम फिलहाल B2B मार्केट पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं ताकि कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचने में आसानी हो। हमारे पास अब हर महीने 50 से 500 तक ऑर्डर आ जाते हैं। जिससे प्रति महीना औसतन एक लाख रुपये का बिजनेस होता है।”
मुंबई में रहने वाली तथा काकुल की एक नियमित ग्राहक नेहल ठक्कर बताती हैं, “मैं काकुल की नियमित ग्राहक हूँ। मैं यहाँ से प्लांटेबल किताब, कलम से लेकर कई औषधीय उत्पाद ऑर्डर करती हूँ। काकुल के पास आपके जरूरत और बजट के हिसाब से कई उत्पाद हैं। साथ ही यहाँ के सभी उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल हैं और इससे महिला उद्यमियों को भी बढ़ावा मिल रहा है। इस तरह ये महिलायें समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला रही हैं।”
आज किसी भी उत्पाद की पैकेजिंग में काफी ज्यादा वेस्ट जेनरेट होता है। इसे देखते हुए ये पैकेजिंग के लिए भी बायोडिग्रेडेबल उत्पादों का इस्तेमाल करती हैं।
कमाई का आधा हिस्सा जाता है समाज की भलाई के लिए
इस विषय में कंपनी की चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर पूजा अरोड़ा कहती हैं, “आज कई ऐसी उद्यमी महिलायें हैं, जिन्हें अपने जैविक उत्पादों के लिए बाजार खोजने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसे देखते हुए हमने ऐसी महिलाओं के लिए क्लस्टर विकसित करने में, अपनी 40 फीसदी कमाई को लगाने का फैसला किया। साथ ही, हमारी 10 फीसदी कमाई कैंसर पीड़ितों के इलाज के लिए समर्पित है।”
लॉकडाउन से मिली प्रेरणा
कंपनी में मार्केटिंग और ऑपरेशन की जिम्मेदारी संभालने वाली आस्था कहती हैं कि हम पहले एग्जीबिशन और पर्सनल कांटेक्ट के जरिये अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहते थे। लेकिन लॉकडाउन के दौरान परिस्थितियों को देखते हुए, उन्होंने अपने बिजनेस को ऑनलाइन शिफ्ट करने का फैसला किया।
बता दें कि इस बिजनेस को शुरू करने में 80 हजार रुपए लगे, जिसे सभी महिलाओं ने आपस में मिलकर जमा किया था।
इस कड़ी में पूजा कहती हैं, “हमारा अभी तक का सफर काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। क्योंकि, आज हमारे यहाँ महिला उद्यमियों की संख्या न के बराबर है। ऐसे में उन्हें ढूंढ़ना काफी कठिन है। लेकिन हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। हमें उम्मीद है कि हम अधिक से अधिक महिलाओं को एकजुट कर, एक बड़े बदलाव की शुरुआत करेंगे।”
क्या है भविष्य की योजना
इस बारे में रांची की रहने वाली सुरभि कहती हैं, “हमारे घरों में कई चीजें अपनी ‘पूरी लाइफ’ साइकल जीती हैं। यदि कोई कपड़ा पहनने लायक नहीं है तो हम उसे फेंकते नहीं हैं। उसका इस्तेमाल किसी दूसरे काम में हो जाता है। इससे साबित होता है कि हम क्लाइमेट कॉन्शस हैं। लेकिन जब लोगों को विकल्प नहीं मिलता है तो वे स्विच नहीं कर पाते हैं।”
वह आगे कहती हैं, “इसे देखते हुए हम कैफे से लेकर शिक्षण संस्थानों तक में ‘सोविनियर शॉप’ शुरू करने की योजना बना रहे हैं। ताकि ग्राहकों तक इको-फ्रेंडली सामान आसानी से पहुँच जाये।”
प्रकृति को बचाने की अपील
अंत में क्रिस्टीना कहती हैं, “आज जलवायु परिवर्तन के कारण, हमारा जीवन खतरे में है। हम अपनी सुविधा के लिए प्लास्टिक का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। जिसके दुष्परिणाम भी हमें देखने को मिल रहे हैं। पिछले दो-तीन वर्षों में मेरे पाँच-छह रिश्तेदारों को कैंसर हुआ है। इससे मैंने कई लोगों को खोया भी है। प्रकृति आज हमें सजा दे रही है। इसे लेकर हमें नये सिरे से सोचने की जरूरत है।”
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संपादन- जी एन झा
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