नए फैशन और 3D आर्ट के दौर में हमारी पुरानी कलाएं लुप्त होती जा रही हैं। कई आदिवासी कलाओं के तो नाम भी हमें नहीं पता। जबकि असल मायनों में ये कलाएं हमारी धरोहर हैं। आज हम आपको एक ऐसी आदिवासी बेटी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपने साथ-साथ पारम्परिक आदिवासी कला को भी देशभर में नई पहचान दिलाई है।
हम बात कर रहे हैं, मध्यप्रदेश के आलीराजपुर जिले की जोबट तहसील की रहने वाली साक्षी भयड़िया की। साक्षी इंदौर में एक ट्राइबल आर्ट गैलरी चला रही हैं। इसके साथ ही वो देशभर में लगने वाली प्रदर्शनियों का हिस्सा बनकर अपनी बनाई वस्तुएं लोगों के सामने प्रस्तुत करती हैं।
शौक को बनाया बिज़नेस
साक्षी की बचपन से ही चित्रकला में विशेष रूचि थी। वह अक्सर गांव में लोगों को घर की दीवारों पर पारम्परिक चित्रकारी करते देखती। वो इन चित्रों को कागज या कपड़े पर उकेरने की कोशिश करती। जब वो पढ़ाई के लिए इंदौर गई तो वहां भी जब समय मिलता तो पेंटिंग बनाती।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वह पेंटिंग को अपना काम भी बना लेंगी। पढ़ाई के बाद जब करियर बनाने की बात आई तब उन्होंने नौकरी की बजाय बिज़नेस करने का फैसला किया।
उन्होंने चित्रकारी करके छोटी-छोटी चीजें बनाईं। साक्षी ने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से फण्ड इकठ्ठा करके डेढ़ साल पहले इस आर्ट गैलरी की शुरुआत की । उस समय उन्होंने अपने माता-पिता को भी इस बारे में नहीं बताया था।
इसके बाद उन्होंने ट्राइबल आर्टिस्ट के तौर पर एक सरकारी कार्ड बनवाया और सरकार की ओर से आयोजित होने वाली प्रदर्शनियों में भाग लेने जाने लगीं।
धीरे-धीरे लोगों को इस आदिवासी बेटी के बनाएं प्रोडक्ट्स और इसके पीछे की उनकी सोच पसंद आने लगी। आज साक्षी होम डेकॉर, दुपट्टे, जैकेट जैसी अलग – अलग चीजों पर आदिवासी जीवन शैली को दर्शाने वाली पेंटिंग्स बनाती हैं।
अपने इस काम के ज़रिए वह 10 और लोगों को रोजगार भी दे रही हैं।
आशा है, देश की विलुप्त होती आदिवासी कला की बचाने की साक्षी की यह कोशिश आपको जरूर पसंद आई होगी।
आप उनके या उनके काम के बारे में ज़्यादा जानने के लिए उन्हें इंस्टाग्राम पर सम्पर्क कर सकते हैं।
यह भी देखेंः बच्चों के लिए छोड़ी विदेश की नौकरी, फ़ूड स्टॉल चलाकर बना रहीं उन्हें आत्मनिर्भर