आदिवासी महिला कारीगरों की ज़िंदगी बदल रहे, मुंबई में मौजूद ब्रांड ‘मोंक एंड मेइ’ की फाउंडर सोनिया खत्री आनंद से जब हमने उनके काम को लेकर बात करनी शुरू की, तो शुरुआत में ही उन्होंने हमसे कहा, “मुझे आज भी याद है जब मैं पहली बार उन 12-13 साल की युवा लड़कियों से मिली थी, जिनके हाथों में कलम की जगह बंदूक थी। मैंने उनसे पूछा भी था कि आप स्कूल क्यों नहीं जाते? लेकिन इस सवाल के जवाब में वे लड़कियां ज़ोर से हंस पड़ीं और कहा- ‘हमारी वास्तविकता, दूसरी लड़कियों से काफी अलग है’।”
बिहार के नालंदा जिले की आदिवासी लड़कियों से सोनिया की मुलाकात तब हुई थी, जब वह वर्ल्ड बैंक के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही थीं। सोनिया बताती हैं कि इन लड़कियों से बातचीत करके और इनकी कहानियां जानकर वह अंदर से हिल गई थीं।
वह कहती हैं, “उनके साथ की गई बातचीत कई दिनों तक मेरे अंदर घूमती रही। मैं हर सभा में इसके बारे में बात करने की कोशिश करती थी। लेकिन मैं जो काम कर रही थी, उन नीतियों के तहत जिस तरह का इन पर प्रभाव होना चाहिए था, ज़मीनी स्तर पर वैसे हुआ नहीं। मैं बेहद बेचैन महसूस कर रही थी।”
इसके बाद ही, 2018 में, मोंक एंड मेइ नाम के कपड़ों के एक ब्रांड की शुरुआत हुई, जहां ओडिशा के ग्रामीण हिस्सों से आदिवासी महिलाओं और युवा कारीगरों के काम को प्रदर्शित किया जाता है।
“आदिवासी महिला कारीगरों के साथ काम कर खुल गईं आंखें”
कॉरपोरेट दुनिया के साथ काम करने में डेढ़ दशक से अधिक समय बिताने के बाद, सोनिया ने फैसला किया कि वह कारीगरों के साथ काम करेंगी और ग्रामीण भारत के विकास में सहयोग करेंगी। बूट-स्ट्रेप्ड डिज़ाइनर क्लोदिंग ब्रांड आज लगभग 7.5 करोड़ रुपये के रेवेन्यू रन रेट के साथ हर महीने करीब 1,000 ऑर्डर पूरा कर रहा है।
सोनिया बताती हैं, “अलग-अलग कंस्लटिंग फर्मों के साथ काम करने के कारण मुझे वंचित बैकग्राउंड की महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण पर काम करने का मौका मिला, खासकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से।” वह कहती हैं कि यहां काम करना उनके लिए आंखें खोलने वाला अनुभव था, क्योंकि उन्हें वास्तविक भारत को नज़दीक से जानने का मौका मिला था।
वह कहती हैं कि काम के सिलसिले में वह ओडिशा गईं, जहां उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर आदिवासी महिला कारीगरों के एक और समूह से मिलने का मौका मिला। वह कहती हैं, “वे सभी प्रशिक्षित दर्जी थीं, जो अपने गृहनगर में नौकरी के अवसरों की तलाश में तमिलनाडु के तिरुपुर से लौटकर आई थीं।”
इनमें से कई महिलाओं के जीवन में कई तरह की परेशानियां थीं, जैसे- उनमें से कई लोगों को एक छोटे से कमरे में रहना पड़ रहा था, जबकि कई परिवार ऐसे थे, जो एक ही शौचालय का इस्तेमाल करने को मजबूर थे। वह आगे कहती हैं, “ये महिलाएं अपने हुनर के दम पर अपने और अपने परिवार के जीवन को बेहतर बनाना चाहती थीं।” बस यही सोनिया के जीवन का टर्निंग प्वाइंट था।
30 आदिवासी महिला कारीगरों के साथ शुरू हुआ सफर पहुंचा 91 तक
सोनिया बताती हैं कि जब उन्होंने बिज़नेस करने के लिए कॉरपोरेट जगत को छोड़ने का फैसला किया, तो उनके परिवार के सदस्यों, विशेषकर उनके पिता को झटका लगा। वह कहती हैं, “मैं अपने इस नए काम के लिए कॉन्ट्रैक्ट भरने से लेकर बोर्डरूम में सौदों को अंतिम रूप देने तक का काम खुद कर रही थी। करियर के इस बदलाव से सबसे ज्यादा फर्क़ मेरे पिता को पड़ा है।”
खैर, जल्द ही मोंक एंड मेइ ने भुवनेश्वर के बाहरी इलाके में 100 सिलाई मशीनों के साथ अपना ऑपरेशन शुरू किया। सोनिया कहती हैं कि उन्होंने 30 आदिवासी महिला कारीगरों के साथ काम की शुरुआत की और बाद में धीरे-धीरे यह संख्या बढ़कर 91 तक पहुंच गई। वह बताती हैं, “हमने कॉरपोरेट यूनिफॉर्म बनाना शुरू किया और मेरे साथ काम करने वाली महिलाओं को इस काम से जिस तरह की खुशी मिली, वह शब्दों में बयां नहीं की जा सकती।”
शुरुआती दिनों को याद करते हुए सोनिया कहती हैं, ”हम कपड़े, सुई और दूसरे कच्चे माल खुद फैक्ट्री तक ले जाते थे। शुरुआत में, हमारे पास कोई मदद नहीं थी और न ही कोई सामान उस पते तक डिलीवर करता था। लेकिन हम चलते रहे और आज जहां पहुंचे हैं, वह अपने आप में हम में से हर एक के लिए बड़ी उपलब्धि है।”
काम का असर देख सोनिया को आगे बढ़ते रहने की मिली प्रेरणा
सोनिया की इस एक पहल ने कई ज़िंदगियां बदलीं और उन्हीं में से एक हैं-परी, जो एक युवा कर्मचारी हैं। वह सोनिया के एक दौरे पर उनसे आशीर्वाद मांगने पहुंची थीं। सोनिया बताती हैं कि परी हमारे द्वारा लगाए गए युनिट के प्रति बहुत शुक्रगुजार थीं। उन्होंने आगे कहा, “परी ने बताया कि अगर ऐसा नहीं होता, तो उसकी या तो 15 साल की उम्र में शादी कर दी जाती या उसे ग़ाज़ियाबाद या तिरुपुर में एक कपड़ा कारखाने में काम करने के लिए भेज दिया जाता।”
ऐसी कई कहानियां सोनिया के साथ काम करने वाली आदिवासी महिला कारीगरों के साथ जुड़ी हुई हैं। सोनिया ने जब युनिट शुरू की, तो सब सही चल रहा था, लोग बढ़ रहे थे, काम अच्छा चल रहा था और अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे थे, लेकिन तभी 2019 में यह क्षेत्र, फानी सायक्लोन के चपेट में आ गया, जिसने व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला और यही वह समय था, जब मोंक एंड मेई ने कॉरपोरेट यूनिफॉर्म बनाने के बजाय, कंज्यूमर फेसिंग क्लोदिंग ब्रांड की ओर बढ़ने का फैसला किया।
रास्ते में आईं कई परेशानियां, लेकिन नहीं मानी हार
फानी सायक्लोन से बिज़नेस को वित्तीय रूप से काफी नुकसान हुआ था, लेकिन सोनिया और उनकी टीम ने एक नए अवतार में ब्रांड के रीब्रांडिंग पर काम किया। वह कहती हैं, “हमने मुंबई में अपने घर के गराज से सिर्फ एक कारीगर के साथ ऑपरेशन फिर से शुरू किया।”
सोनिया ने कहा, “ब्रांड के पीछे का आइडिया, ग्राहकों तक आसानी से पहुंच के साथ डिज़ाइनर कपड़े बनाना था। हम ऐसे कपड़े बनाना चाहते थे, जो लोगों के बजट में हों और इसके लिए हमें काफी ज्यादा रिसर्च करने की ज़रूरत थी।”
सोनिया के पहले कलेक्शन का नाम ‘अ रोज़ फ्रॉम माई ओल्ड डायरी’ था, जिसमें लिनन के कपड़े पर डिज़ाइन प्रिंट किए गए थे। वह बताती हैं, “हमने कपड़े पर गुलाब को डिजिटल रूप से प्रिंट किया था। इसे मार्च 2020 में लॉन्च किया गया और हमें बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली। 15 दिनों में हमने करीब 500 स्टाइल बेचे थे।”
वह आगे कहती हैं, “मुझे अभी भी याद है कि कैसे मास्टरजी आते थे, कपड़ा उठाते थे, कपड़े बनाते थे और मुझे देते थे।” कंपनी से जुड़े सबसे पुराने कारीगरों में से एक, अयूब मास्टरजी कहते हैं, “मैं सबसे पहला मास्टरजी (दर्जी) था, जिसे काम पर रखा गया था और मैं 2019 से यहां हूं। जब मैंने काम शुरू किया, तो मेरे पास दो मशीनें थीं और जैसे ही काम बढ़ने लगा, लॉकडाउन लग गया। उस समय बहुत से लोगों की नौकरी चली गई, लेकिन मेरी नहीं। मैं शायद लॉकडाउन के दौरान सबसे व्यस्त था और सही समय पर मांग को पूरा करने के लिए दो और मशीनें भी लीं।”
अयूब ने बताया, “मेरे पास काफी काम था और मुझे आठ दर्जी और रखने पड़े। उनके घर इसी काम के कारण चल रहे थे। इसके बाद हमने डाई मास्टर्स को भी काम पर रखा।”
आदिवासी महिला कारीगरों के लिए शुरू हुए इस बिज़नेस की खासियत
एक ओर जहां अयूब मास्टरजी स्केच को जीवंत करने पर काम करते हैं, वहीं शिवानी चचन (25) जैसे लोग मोंक एंड मेइ के लिए समान विचारधारा वाले ग्राहकों का एक समुदाय बनाने पर काम करते हैं।
शिवानी, जो 2020 से ब्रांड के साथ ‘ऑफिसर फॉर कम्युनिटी’ के रूप में जुड़ी हुई हैं। वह कहती हैं, “मैंने फैशन डिज़ाइन कॉलेज से ग्रैजुएट होते ही मोंक एंड मेइ के साथ काम करना शुरू कर दिया और मैंने यहां से बहुत कुछ सीखा। स्टार्टअप के साथ अपना करियर शुरू करना काफी अच्छा फैसला साबित हुआ, क्योंकि मुझे कई विभागों में काम करने और अपनी और अपनी रुचियों का पता लगाने का अवसर मिला। ब्रांड के साथ मेरा व्यक्तिगत रूप से भी काफी विकास हुआ है।”
आज, सोनिया की टीम ब्लॉक और डब्बू प्रिंट, चिकनकारी, चंदेरी, ब्रोकेड और मलमल जैसे कपड़ों पर काम करती है।
आदिवासी महिला कारीगरों के बनाए कपड़े जाते हैं टियर I से टियर III शहरों तक
इस ब्रांड के कपड़ों के 55 फीसदी ग्राहक टियर-I शहरों के और 45 फीसदी ग्राहक टियर-II व III शहरों से हैं। सोनिया का कहना है कि उनका लक्ष्य, टियर II और III शहरों के उपयोगकर्ताओं के प्रतिशत को बढ़ाना है। यह लेबल, 22 वर्ष से 55 वर्ष तक की उम्र के लोगों के लिए कपड़े बनाता है। आपको इस ब्रांड में XXS से 5XL तक साइज़ के कपड़े मिल जाएंगें।
इस ब्रांड के कपड़े, यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और दुबई तक जाते हैं। कोई भी सीधे Monk & Mei की वेबसाइट से या फिर फेसबुक और इंस्टाग्राम के ज़रिए ऑर्डर दे सकता है।
सोनिया ने अब तक जो अनुभव कमाया है, उसे नए ऑन्त्रप्रेन्यॉर्स के साथ साझा करते हुए सलाह देती हैं कि-
1. बिज़नेस के शुरुआती एक साल में स्थिरता हासिल करने की कोशिश करें
पूंजी के लिए निवेशकों से संपर्क करने से पहले, बेहद ज़रूरी है कि आपके काम और व्यापार में स्थिरता हो। अगर बिज़नेस में प्रोडक्ट शामिल हैं, तो स्टॉक कीपिंग और लॉजिस्टिक्स पर अच्छी तरह से काम करें। इसमें कुछ समय लगेगा, इसलिए इसे पूरा समय दें, घबराएं नहीं।
2. अपने व्यवसाय के प्रति जुनूनी बनें
आदिवासी महिला कारीगरों के साथ काम करने वाली सोनिया का कहना है कि अगर सिर्फ फायदा कमाना बिज़नेस का एकमात्र उद्देश्य होगा, तो हो सकता है कि जब आप पूंजी जुटाने का प्रयास करें, तो आगे का रास्ता ठीक से न दिखे। आप जिस बिज़नेस का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह जुनून और कुछ अलग करने की इच्छा के साथ शुरू होना चाहिए।
3. डेटा का रखें ध्यान
हर कोई एमआईएस (प्रबंधन सूचना प्रणाली), डेटा और एनालिटिक्स को मेंटेन करने में सक्षम नहीं होता, लेकिन हर ऑन्त्रप्रेन्यॉर को यह पता होना चाहिए कि ये सभी चीज़ें कैसे काम कर रहीं हैं और क्या करने की ज़रूरत है? इन डेटा पॉइंट्स के साथ एक बेसिक एक्सेल शीट अपडेट करते रहना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि जब आप अपना बिज़नेस किसी के सामने पिच करते हैं, तो निवेशक अक्सर इनसे जुड़े सवाल करते हैं।
4. इक्विटी के बदले ऋण
यह न केवल कंपनी के क्रेडिट स्कोर को बेहतर बनाने में मदद करता है, बल्कि बाद में पूंजी जुटाने की संभावना को भी बढ़ाता है। समय पर कर्ज़ लौटाने से कंपनी की साख भी काफी हद तक बढ़ जाती है।
संपादनः अर्चना दुबे
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