कचरा बीनने वालों ने कूड़े से निकाली फैशन की राह, हो रही करोड़ों की कमाई

Anita Ahuja

दिल्ली की अनीता आहूजा और उनके पति शलभ एक अनोखे अभियान को अंजाम दे रहे हैं। वे प्लास्टिक के कचरे को दुबारा उपयोग कर, एक्सपोर्ट क्वालिटी के सुन्दर उत्पाद बनाते हैं।

दिल्ली में पलीं-बढ़ीं अनीता अहूजा का जन्म भोपाल में हुआ। एक स्वतंत्रता सेनानी की बेटी अनीता ने, अपना सारा जीवन समाज की सेवा में लगा दिया। अगर सोच बड़ी हो, तो कचरे से भी सोना निकल सकता है। आखिर कोयले जैसी काली चीज़ से भी तो चमकदार हीरा निकलता ही है। कचरा बीनने वालों (Rag Pickers) के साथ, अनीता अहूजा ने बिजनेस शुरू कर इस बात को सच साबित कर दिया। उनके बिज़नेस में उनकी बेटी, कनिका अहूजा और पति, शलभ ने भी पूरा साथ दिया। अनीता और उनके पति शलभ ने साल 1998 में ‘कंज़र्व इंडिया’ नाम के एक एनजीओ की शुरुआत की। जिसके तहत वे वेस्ट मैनेजमेंट पर काम करते थे। साथ ही, वे लोगों को सफाई, प्लांटेशन आदि को लेकर अवेयर भी करते थे।

कैसे हुई कंजर्व इंडिया की शुरूआत?

‘कंजर्व इंडिया’ का आइडिया उन्हें वेस्ट प्लास्टिक्स के कारण ही आया। एक दिन अनीता ने अपने कुछ दोस्तों और परिवार वालों के साथ मिलकर, अपने इलाके में कुछ छोटे-छोटे प्रोजेक्ट लेने का फैसला किया। उन्होंने सोचा कि क्यों न एक एनजीओ की शुरूआत की जाए, जिसके तहत वह और उनके जैसे और कई लोग समाज के लिए काम कर सकें। साल 1998 में, यहीं से उन्होंने ‘कंजर्व इंडिया’ की शुरुआत की और इस प्रोजेक्ट के तहत सारे इलाके से कचरा इकट्ठा करना शुरू किया। फिर इस कचरे से रसोई का कचरा अलग कर, उसे खाद बनाने के लिए पास के पार्क में रखा जाता था। इसे शुरू करने के साथ ही, उन्हें समझ आ गया था कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। इसके बाद, उन्होंने दूसरी कॉलोनी से भी सहयोग मांगा। 

Rag Pickers

फिर उन्होंने करीब 3000 लोगों के साथ रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की शुरुआत की। यह एसोसिएशन साल 2002 में एक फुल टाइम कमीटमेंट वाली संस्था बनी। अनीता अहूजा ने कहा, “चार साल कचरा बीनने वालों (Rag Pickers) के साथ काम करके यह महसूस किया कि वे गरीबी के स्तर से भी नीचे हैं। हमें उनके लिए कुछ करना चाहिए।”

कैसे आया बिजनेस आइडिया?

अनीता अहूजा की 30 वर्षीय बेटी, कनिका अहूजा ने द बेटर इंडिया को बताया, “इस सफर की शुरुआत, मेरी माँ अनीता और पिता शलभ ने की थी। वे काफी समय से वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहे थे। फिर जब वे दिल्ली के स्लम एरियाज़ में गए, तो देखा कि वहाँ कचरा बीननेवाले (Rag Pickers) दिन भर मेहनत करते हैं। लेकिन उन्हें सही दाम नहीं मिलता। उनकी दुर्दशा देख, माँ ने तय किया कि वह उनके जीवन को सुधारने के लिए कुछ करेंगी।”

उनका जीवन स्तर सुधारने के लिए ज़रूरी था कि उन्हें कमाई का अच्छा स्रोत दिया जाए। जो एक एनजीओ के भरोसे संभव नहीं था। तब उन्होंने तय किया कि वे इस एनजीओ को सोशल इंटरप्राइज़ में कनवर्ट करेंगे। साल 2004 में इसे सोशल इंटरप्राइज़ के तौर पर शुरू किया। लेकिन इसे पेटेंट करवाने में उन्हें काफी समय लगा। साल 2007 में आखिरकार वे इसे पेटेंट कराने में सफल रहे।

कचरे से करोड़ तक का सफर

Anita Ahuja started business with rag pickers & now they make stylish bags with waste plastics
Anita Ahuja

कनिका ने बताया, “हमने हैंडमेड री-साइकल्ड प्लास्टिक (HRP) से बैग्स बनाना शुरू किया। वैसे तो इससे बहुत सी चीज़ें बनाई जा सकती हैं। लेकिन हमारा अनुभव फैशन में ज्यादा था, इसलिए हमने बैग्स बनाने का फैसला लिया।”
उन्होंने बताया, “मेरे पिता शलभ इंजीनियर थे, अब तो वह रिटायर हो गए हैं। लेकिन जब बैग्स बनाने का काम शुरू हुआ, तब उन्होंने खुद प्लास्टिक शीट्स बनाने वाली मशीन बनाई। इसके ज़रिए बड़े स्तर पर गढ़े हुए प्लास्टिक शीट्स तैयार करवाये। ऑटोमेटिक मशीनों से बैग्स पर आर्ट वर्क करवाया और फिर उन्हें प्रदर्शनी में लगाना शुरू किया।”

छोटे से बूथ से मिला लाखों का ऑर्डर

दिल्ली के प्रगति मैदान में कंजर्व इंडिया ने ट्रेड फेयर में हिस्सा लिया था। जहां टेक्सटाइल मंत्रालय ने उन्हें एक छोटा सा बूथ दिया। इस एक छोटे से बूथ ने उनके आइडिया को बड़ी पहचान दिलाई। उन्हें यहां से 30 लाख का ऑर्डर मिला।

अब प्लास्टिक वेस्ट के लिए कूड़ा बीनने वालों को घर-घर जाकर कूड़ा लेना पड़ता था। लेकिन ज़रूरत ज्यादा थी और प्लास्टिक कम ही मिल पाते थे। बैग्स बनाने के लिए विशेष रंग वाले प्लास्टिक की जरुरत होती थी। इसके लिए उन्होंने कबाड़ वालों से सम्पर्क किया और सीधे इंडस्ट्री से भी प्लास्टिक कचरा मंगाने लगे। धीरे-धीरे कंजर्व इंडिया एक ब्रांड बन गया और अब उनका टर्न-ओवर 1 करोड़ तक पहुंच गया है।

कनिका ने की ‘लिफाफा’ की शुरूआ

Kanika Ahuja Presenting Lifaffa products which are made of waste plastics collected by rag pickers
Kanika Ahuja

मणिपाल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग और दिल्ली यूनिवर्सिटी  से एमबीए करने के बाद कनिका अहूजा भी इस बिजनेस से जुड़ गईं। साल 2017 में उन्होंने बैग्स बेचने के लिए लिफाफा नाम के एक ब्रांड की शुरूआत की। जिसे लैक फैशन वीक (Lakme Fashion Week) ने भी सपोर्ट किया और दो बार उनका ब्रैंड इस फैशन वीक का हिस्सा बना। कनिका ये बिजनेस और इसकी मार्केटिंग का काम संभालती हैं। वहीं अनीता कर्मचारियों की ट्रेनिंग और डिज़ाइनिंग का काम देखती हैं।

कैसे बनता है कचरे से बैग?

कनिका ने बताया, “बैग्स बनाने के लिए हमें पतली प्लास्टिक की ज़रूरत होती है। इसे बनाने के लिए प्लास्टिक को पूरे एक प्रॉसेस से गुजरना होता है। हम इसमें डाई या कलर्स का इस्तेमाल नहीं करते। फ्लास्टिक के जो अपने रंग होते हैं वहीं इसमें निकलकर आते हैं।”

cleaning waste plastics, collected by ragpickers to make HRP
Process of making HRP
इन स्टेप्स से बनते हैं बैग्स:
  • कचरे से इकट्ठा किए गए प्लास्टिक वेस्ट से पहले हैंडमेड रिसाइकल्ड प्लास्टिक (HRP) बनाते हैं।
  • HRP बनाने के लिए पहले प्लास्टिक्स की अच्छे से सफाई की जाती है। ताकि उसमें किसी तरह की गंदगी ना रहे और इंफेक्शन ना हो।
  • फिर इसे रंग के हिसाब से अलग किया जाता है और फिर इन कलर्स की मिक्सिंग की जाती है।
  • इसके बाद इन प्लास्टिक्स को लेयर्स में एक मशीन में डालते हैं, जो इन्हें कंप्रेस करके रंगीन प्लास्टिक शीट्स तैयार करते हैं।
  • फिर इन शीट्स से अलग-अलग तरह के बैग्स, क्लचेज़, लैपटॉप बैग्स व फोल्डर्स आदि बनाए जाते हैं।

कनिका अहूजा का कहना है, “इसे शुरू करते समय यह नहीं सोचा था कि इससे इतने पैसे भी अर्जित होंगे और ना ही हमारा मकसद पैसे कमाना था। लेकिन जैसे-जैसे लोग साथ आते गए और हमने इससे उत्पाद बनाना शुरू किया, तो ये लोगों को काफी पसंद आए।”

कोविड का बिजनेस पर पड़ा असर

कनिका ने कहा, “वैसे तो हम इस बिजनेस से पिछले साल तक एक करोड़ रुपये तक की कमाई कर लेते थे, जिससे हम अपने कर्मचारियों और हमारे लिए प्लास्टिक इकट्ठा करने वालों को अच्छा जीवन दे सके। लेकिन कोविड के कारण बिजनेस पर बहुत असर पड़ा है। फिलहाल हम नई तकनीकी पर ध्यान दे रहे हैं। हम पैकेजिंग मटेरियल की रिसाइकलिंग पर भी काम कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि हम पेरिस की ‘फैब-लैब’ से भी बात कर रहे हैं, जो प्लास्टिक रि-साइकिल के लिए नई टेक्नॉलजी का प्रयोग करते हैं। अगर हम सफल रहे तो इन प्लास्टिक्स से खिलौने वगैरह भी बनाए जा सकेंगे। जिससे ज्यादा से ज्यादा वेस्ट प्लास्टिक को दुबारा इस्तेमाल में लाया जा सकेगा।

हज़ारों कचरा बीननेवालों को मिला रोज़गार

Rag Pickers collecting plastics
Rag Pickers

अनीता अहूजा की एक अलग सोच ने बहुत से बदलाव किए। एक ओर जहां इधर-उधर फेंके गए प्लास्टिक को अनजाने में खा लेने के कारण जानवरों की मौत हो जाती है। वहीं दूसरी ओर इससे हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। उनके इस प्रयास से इन नुकसानों से तो बचाव होता ही है।साथ ही इससे हजारों कचरा बीनने वालों को रोजगार भी मिला है।

कैसे बदली ज़िंदगी?

यहां काम करने वाली तमिला और अन्य कर्मचारियों ने बताया, “यहां कई कर्मचारी ऐसे भी हैं, जो रिफ्यूजी हैं, लेकिन कभी किसी में कोई भेद-भाव नहीं होता। ज्यादातार महिलाएं ही यहां काम करती हैं। तमिला ने बताया,”मेरे घर में मैं, मेरे पति और 4 बच्चे हैं। पहले बहुत दिक्कत होती थी। पति के पास काम नहीं था, मुझे सिलाई आती थी इसलिए यहां काम मिल गया। पिछले एक साल से यहां काम कर रही हूँ और मैं ही घर चलाती हूँ। मुझे बहुत गर्व महसूस होता है कि आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं और अपने बच्चों व पति के अच्छे भविष्य के लिए कुछ कर सकती हूं।”

अनीता अहूजा और उनके साथ काम करने वाले हज़ारों रेग पिकर्स (Rag Pickers), उत्पाद तैयार करने वाले कर्मचारी, अनीता के पति शलभ और अब बेटी कनिका के मेहनत और सफलता की इस कहानी से यह पता चलता है कि इस धरती पर कुछ भी बेकार नहीं है, बस आपके पास कुछ अलग करने का जज्बा होना चाहिए।

हमारी कोशिश है कि हम आपको प्रेरित करते रहें और आप हमें अपनी सफलता की कहानियां लिखने का अवसर देते रहें।

अगर आप भी लिफाफा के बैग्स देखना या खरीदना चाहते हैं, तो  www.lifaffa.com या Instagram पर जाएं। साथ ही Conserve India के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए www.conserveindia.org पर जाएं या Instagram पर फॉलो कर सकते हैं। 

Stay Inspired & Be Inspirational!

संपादन- जी एन झा

यह भी पढ़ेंः बागवानी का शौक़ ऐसा कि छत पर बना डाला तालाब, लगाए कमल, गन्ना, समेत 100 से अधिक पेड़-पौधे

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X