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54 की उम्र में बनीं शेफ, जज़्बे और स्वाद से जीता रणवीर बरार का भी दिल

Cafe Farohar (1)

बेरी पुलाव, किड गोश्त, सल्ली मार्गी, तपेली कबाब…

अगर आप पारम्परिक पारसी खाने से परिचित हैं तो इन डिशेज़ का नाम सुनकर आपके मुँह में पानी जरूर आ गया होगा। ऐसा ही कुछ उन लोगों के साथ भी होता है जो गुजरात के छोटे से शहर उदवाडा से गुजरते हैं। क्योंकि यहां मौजूद ‘कैफ़े फ़रोहर’  लोगों को उसी पारम्परिक स्वाद से रूबरू कराता है। इस कैफ़े को चलाती है माँ-बेटे की एक जोड़ी। 60 साल की हिल्ला मारोलिया अपने बेटे शेज़ाद मारोलिया के साथ मिलकर साल 2017 से यह बिज़नेस चला रही हैं। इस कैफ़े को शुरू करने वाली हिल्ला आंटी और उनके जीवन की प्रेरक कहानी बेहद ही दिलचस्प है।

दरअसल, यह सब तब शुरू हुआ जब कुछ साल पहले हिल्ला मुंबई में रह रही थीं। एक दिन सुबह के अखबार में उन्होंने  उदवाड़ा की धर्मशाला में मैनेजर की जॉब की भर्ती देखी। बिना कुछ सोचे हिल्ला ने इस पद के लिए आवेदन कर दिया और साल 2017 में उदवाड़ा जाकर नौकरी करने लगीं।  

धर्मशाला में नौकरी करने के दौरान उन्होंने देखा कि यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए पारसी के पास खाने के लिए भोजन की अधिक विविधता नहीं थी। वहां एक निर्धारित मेनू सेट था, बस यहीं से हिल्ला के मन में पारसी खाने के रोचक पकवानों को लेकर एक कैफ़े शुरू करने का ख्याल आया।

54 की उम्र में पूरा किया अपना सपना 

खाने और खिलाने की शौक़ीन हिल्ला यूँ तो हमेशा से अपना बिज़नेस शुरू करना चाहती थीं। लेकिन उनका सपना तब पूरा हुआ जब उनके बेटे शेज़ाद ने विदेश से आकर उनका साथ देने का फैसला किया। इस तरह माँ-बेटे की सोच से पारसी तीर्थ उदवाड़ा में शुरू हुआ ‘कैफ़े फ़रोहर’ 

जिसका मकसद था असली पारसी स्वाद से यहां घूमने आने वाले हर यात्री को रूबरू करवाना। उन्होंने यहां कुछ ऐसी डिशेज़ को परोसना भी शुरू किया है जिसका नाम तक आज का पारसी समुदाय भूल चुका था। यहां हिल्ला आंटी बड़े प्यार से खाना बनाती और परोसती हैं। यहां आपको रसोई में कोई हड़बड़ी या भागदौड़ नहीं दिखेगी और व्यंजनों की कीमत भी नाममात्र है, 200 रुपये से लेकर 400 रुपये तक।

हालांकि, वह हफ्ते के पांच दिन सिर्फ करीबन  40 मेहमानों को ही दोपहर का खाना परोसते हैं। वहीं वीकेंड पर यहां लोगों का जमघट रहता है। कुछ लोग तो हिल्ला आंटी के हाथों से बना खाना खाने मुंबई से भी आते हैं।  

सच एक छोटी सी सोच से शुरू हुआ यह सफर आज जिस मुकाम तक पहुंच चुका है वह वाकई में सराहनीय है। और 60 की उम्र में अपना सपना सच करके यह मुमकिन बनाने के पीछे हिल्ला का जज़्बा कइयों के लिए मिसाल है। 

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