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भारत के अधिकांश लोगों के दिन की शुरुआत एक प्याली चाय से होती है और इसके बिना दिन अधूरा सा लगता है। किसी को दूध वाली चाय पसंद होती है, तो किसी को लेमन टी। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है और यहां असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर चाय की खेती होती है। लेकिन, कई अध्ययनों से पता चलता है कि चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों का जीवन हाशिए पर है और उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसी टी कंपनी के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पीढ़ियों से भारत में चाय उत्पादन को एक नया आयाम दे रहे हैं। यह कहानी है ‘ऑक्टेवियस टी’ (Octavius Tea) कंपनी की। इस कंपनी को 1898 में वाल्टर डंकन नाम के एक स्कॉटिश बिजनेसमैन ने शुरू किया था। कंपनी की शुरुआत दार्जिलिंग से हुई थी, लेकिन आज इसका दायरा असम, नीलगिरी और कांगड़ा जैसे कई चाय उत्पादन क्षेत्रों में फैल चुका है। कंपनी का कॉरपोरेट ऑफिस दिल्ली में है।
कैसे हुई थी शुरुआत
इसे लेकर कंपनी की चीफ मार्केटिंग ऑफिसर एकता जैन कहती हैं, “आजादी के पहले भारत में ऑक्टेवियस स्टील एंड इंडस्ट्रीज नाम की एक बहुत बड़ी कंपनी थी। इसी कड़ी में वाल्टर का दार्जिलिंग जाना हुआ। यहां की खूबसूरती को देखकर वह काफी प्रभावित हुए और उन्हें लगा कि यहां चाय आसानी से उगा सकते हैं। फिर, धीरे-धीरे उन्होंने यहां चाय बागान लगाना शुरू कर दिया।”
वह बताती हैं, “धीरे-धीरे कंपनी के दार्जिलिंग के अलावा कच्छार और सिलहट (अब बांग्लादेश) में कई चाय के बागान हो गए। पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी हमारी मांग स्थिर रही।”
वह बताती हैं, “1947 में भारत के आजाद होने के बाद कंपनी की बागडोर एक भारतीय उद्योगपति को सौंप दी गई और 2003 से इसे हम संभाल रहे हैं।”
क्या आया बदलाव
एकता कहती हैं, “पहले कंपनी का दायरा सिर्फ बागान लगाने तक सीमित था और चाय थोक में बाहर भेजे जाते थे। लेकिन हमने बिजनेस को नई दिशा दी और इसे रिटेल मार्केट से लेकर पैकेजिंग तक में पहुंचाया। 2016 में ऑर्थोडॉक्स ब्लैक एंड ग्रीन टी को भी अपने प्रोडक्ट रेंज में शामिल किया और जिस तरह से आज बागान लगाने से लेकर रिटेल मार्केट तक में हमारी पकड़ है, वैसा किसी और चाय कंपनी में बहुत कम देखने के लिए मिलता है।”
विदेशों में भी है कारोबार
एकता बताती हैं कि उनके पास ब्लैक टी, ग्रीन टी, व्हाइट टी, तुलसी टी जैसे 150 से अधिक तरह के चाय हैं और यदि कोई ग्राहक उनके पास आता है, तो कोई चाय पसंद न आने का सवाल ही नहीं उठता है।
वह बतातीं हैं, “लंबी पत्तियों वाली अधिकांश चाय को हम दूसरे देशों में सप्लाई करते हैं। ये चाय दार्जिलिंग में होते हैं। इसकी वजह यह है कि ये चाय काफी महंगे होते हैं और भारत में इसके ग्राहक काफी कम हैं। चाय के मामले में भारत के लोगों का टेस्ट थोड़ा स्ट्रांग है और वे दूध वाली चाय या मसाला चाय पीना अधिक पसंद करते हैं और इसकी पूर्ति असम और नीलगिरी जैसे इलाकों से होती है।”
सस्टेनेबिलिटी को दे रहे बढ़ावा
एकता कहती हैं, “आज जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया खतरे में है और सस्टेनेबिलिटी इसे नियंत्रित करने के लिए सबसे जरूरी कदम है। इसलिए आज हर एक शख्स को अपने स्तर पर कोशिश करनी होगी।”
वह कहती हैं, “पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारों को अपनाना शुरू से ही हमारे मूल्य रहे हैं। इसकी शुरुआत बागान लगाने से ही हो जाती है। चाय के बागानों को लगाने के दौरान हमारी कोशिश होती है कि कैसे पर्यावरण को बचाया जाए और मिट्टी की गुणवत्ता को प्राकृतिक तरीके से बढ़ाया जाए।”
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वह कहती हैं, “चाय की खेती के लिए सीढ़ीनुमा खेत होने चाहिए, ताकि पानी का ठहराव न हो। जहां जमीन समतल होती है, वहां इसकी खेती नहीं हो सकती है। इसलिए वैसे खाली जगहों पर हम पेड़ लगा देते हैं। जिससे पर्यावरण को काफी फायदा होता है। इसके अलावा, हजारों एकड़ जमीन पर चाय के बागान लगाने के कारण काफी हरियाली छायी रहती है, जिससे पर्यावरण को लाभ होता है।”
एकता कहती हैं कि वे चाय की खेती में कम से कम पानी का इस्तेमाल करने के साथ ही, खाद के तौर पर गाय के गोबर का इस्तेमाल करते हैं।
वह कहती हैं, “हमारी कोशिश चाय की खेती में केमिकल के इस्तेमाल को कम करना है। इसलिए हम गोबर का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, कुछ मौकों पर केमिकल युक्त कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है, लेकिन इसके लिए सिर्फ मान्यता प्राप्त कंपनियों को प्राथमिकता दी जाती है।”
वहीं, एकता बताती हैं कि आज से 150 साल पहले जब अंग्रेज भारत में चाय बागान लगा रहे थे, तो इसके लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को काटा गया था। इस वजह से चाय बागानों में इंसानों और वन्यजीवों का आमना सामना होना आम है।
वह कहती हैं, “हमारे बागानों से हाथी, तेंदुआ जैसे वन्यजीवों का गुजरना आम है। लेकिन हमने अपने कामगारों को सख्त निर्देश दिया है कि उन्हें कोई तंग न करें और अपने रास्ते जाने दें।”
वह बताती हैं, “कई बार गर्भवती तेंदुए चाय के बागानों को सुरक्षित समझकर अपना आसरा बना लेते हैं। लेकिन हम उन्हें जरा सा भी परेशान नहीं करते हैं और उन्हें पूरी सुरक्षा देते हैं।”
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इसके अलावा, कंपनी द्वारा अपने उत्पादों की पैकेजिंग के लिए भी खास सावधानी बरती जाती है।
एकता बताती हैं, “हमारे पैकेजिंग यूनिट दिल्ली और कोलकाता में हैं। हम अपनी पैकेजिंग के लिए सिर्फ रिसायकलेबल, रीयूजेबल और बायोडिग्रेडेबल संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं। हमारे यहां सिंगल यूज प्लास्टिक के लिए कोई जगह नहीं है। हमारी रीयूजेबल पैकेजिंग काफी आकर्षक और मजबूत होती है, ग्राहक इसका इस्तेमाल घर के कई कामों में कर सकते हैं।”
लोगों के जीवन को बना रहे बेहतर
एकता बताती हैं, “चाय के बागानों में काम करने वाले लोगों के लिए यही जीवन है। उन्होंने अपनी जिंदगी में कुछ देखा नहीं है। इसलिए उन्हें एक बेहतर जिंदगी देना हमारी जिम्मेदारी है। हम उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं।”
वह बताती हैं, “हम अपने कामगारों का खास ध्यान रखते हैं कि उन्हें कोई दिक्कत न हो। अच्छे रहन-सहन और मेडिकल के अलावा उनके बच्चों के लिए स्कूल की व्यवस्था भी की जाती है। ये सुविधा या तो बिल्कुल मुफ्त होती हैं या उन्हें मामूली पैसे देने पड़ते हैं।”
वह बताती हैं कि बागानों में नवजात बच्चों के लिए केयर टेकर की सुविधा भी दी जाती है, जिससे महिलाओं को काम करने में कोई दिक्कत नहीं होती है।
ऑक्टेवियस टी कंपनी (Octavius Tea Company) के साथ फिलहाल 3000 लोग फुल टाइम जॉब करते हैं और पौधों को लगाने के दौरान करीब 2000 लोगों को जरूरत के हिसाब से काम पर रखा जाता है।
उनके साथ काम करने वाली 27 वर्षीय पुर्णिमा टोप्पो कहती हैं, “मैं पहले दूसरे बागान में काम करती थी। लेकिन 2015 से पश्चिम बंगाल के नया सैली टी गार्डन में ऑक्टेवियस टी (Octavius Tea) कंपनी के साथ काम कर रही हूं। पहले मुझे काफी कम पैसे मिलते थे। लेकिन आज वैसी दिक्कत नहीं है। हमारे रहन-सहन में काफी फर्क आया है। आज मैं अपनी छोटी बहनों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रही हूं।”
वह बताती हैं, “मेरी नानी और माँ भी इसी कंपनी में काम करती थीं। ऑक्टेवियस टी कंपनी (Octavius Tea Company) के कारण आज हमारा अच्छा घर बनाने का सपना पूरा हुआ।”
क्या होती है दिक्कत
ऑक्टेवियस टी कंपनी (Octavius Tea Company) के तहत हर साल करीब 22 लाख किलो चाय का उत्पादन होता है और उनका टर्नओवर फिलहाल 110 करोड़ है। लेकिन इस बिजनेस में उन्हें कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है।
इसे लेकर एकता कहती हैं, “आज हर चीज की कीमत बढ़ती जा रही, लेकिन उस अनुपात में चाय की कीमत नहीं बढ़ रही है। जिस वजह से कई बार ऐसा होता है कि हम जितना निवेश कर रहे हैं, हमें रिटर्न उतना ही मिल रहा है। साथ ही, चाय का बाजार काफी उतार-चढ़ाव भरा रहता है। जिससे बिजनेस चलाना काफी कठिन हो जाता है। सरकार को इसे लेकर कदम उठाना चाहिए।”
जागरूकता है जरूरी
एकता कहती हैं, “आज की तारीख में चाय उद्योग में कई ऐसी कंपनियां आ गई हैं, जिनको इसका कोई अनुभव नहीं है। वे सिर्फ अच्छी पैकेजिंग कर, बाजार में अपना उत्पाद बेचना शुरू कर देते हैं। लेकिन ग्राहकों को पता होना चाहिए कि वे जिस चाय का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनका बैकग्राउंड क्या है! इससे जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों की स्थिति में सुधार आएगी।”
वह बताती हैं, “हम अपने उत्पादों में आर्टिफिशियल फ्लेवर का इस्तेमाल नहीं करते हैं। हमारे यहां बागान से लेकर कप तक का, पूरा नियंत्रण हमारे हाथों में है। हम भारतीय बाजार में अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए कई नए उत्पादों पर काम कर रहे हैं।”
वह बताती हैं कि यदि कोई चाय बागान का अनुभव हासिल करना चाहते हैं, तो इसके उन्होंने रिसॉर्ट की भी शुरुआत है। जहां लोग चीजों को काफी करीब से देख और समझ सकते हैं।
आप ऑक्टेवियस टी (Octavius Tea) से यहां संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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