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Homestay Business कोविड में हुआ बंद, तो 73 साल की दादी ने शुरू कर दिया नया काम

Granny's Inn

73 वर्षीया आशा सिंह से बात करते हुए, आपको अपनी माँ या दादी की याद ज़रूर आ जाएगी। मिलनसार स्वभाव और ज़िन्दादिल आशा को, लोगों से बात करना और नई-नई चीजें सीखना बेहद पसंद है। तक़रीबन 64 की उम्र में, उन्होंने अपने जीवन की दूसरी पारी की एक बेहतरीन शुरुआत की थी। पिछले सात सालों से वह वाराणसी में Granny’s Inn नाम से एक Homestay Business चला रही थीं। जिसे फ़िलहाल कोविड के कारण उन्हें बंद करना पड़ा है। लेकिन इस उम्र में भी वह इंतजार कर रही हैं कि कब स्थिति सामान्य हो और वह वापस Granny’s Inn में जाकर मेहमानों का स्वागत कर सकें। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताती हैं, “बुढ़ापे में आपके बच्चे आपका ख्याल रखते हैं, लेकिन आत्मनिर्भर होने का अपना ही मज़ा है।”  

गंगा घाट पर बसा यह होमस्टे, वाराणसी में देश-विदेश से घूमने आए मेहमानों से हमेशा भरा रहता था। आशा अभी भी उस चहल-पहल को बहुत याद करती हैं। हालांकि, वह खाली बैठने वालों में से नहीं है, इसलिए फ़िलहाल वह पटना से तक़रीबन तीन घंटे दूर, अपने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर कुछ नया काम करने की तैयारी कर रही हैं। 

Granny Asha Singh

कैसे बनीं आशा सबकी प्यारी ग्रैनी?

बिहार के एक गांव में जन्मीं आशा, हमेशा से एक गृहिणी रही हैं। चूँकि उनके पति झारखंड के धनबाद में काम करते थे, इसलिए वह भी पति के साथ वहां रहने लगीं। आशा सिंह, छुट्टियों में ससुरालवालों के पास पटना आया-जाया करती थीं। उनका जीवन अपने परिवार और दोनों बच्चों की परवरिश में गुज़र रहा था। तभी 47 की उम्र में,  एक दुर्घटना के कारण उन्होंने अपने पति को खो दिया। वह बताती हैं, “वह बड़ा कठिन दौर था। जब आप किसी पर निर्भर रहते हैं और ऐसे में उसका साथ छूट जाए, तो जीवन मुश्किल लगने लगता है।” 

इस हादसे के बाद, वह पटना के अपने पुश्तैनी घर में रहने लगीं और समय-समय पर अपने बेटे और बेटी के घर आया-जाया करती थीं। उनकी बेटी शिल्पी, गुड़गांव में एक Homestay Business चलाती हैं। आशा सिंह को शिल्पी के होमस्टे में नए-नए लोगों से मिलने और  उनसे बातें करने में बहुत मज़ा आता था। तभी उनके मन में ख्याल आया कि उनकी बहन अरुणा का एक घर वाराणसी में कई सालों से बंद पड़ा है। अगर उसे भी होमस्टे में तब्दील किया जाए तो? उन्होंने अपना आईडिया अपनी बेटी और बहन से साझा किया।

Asha and Shilpi

शिल्पी बताती हैं, “चूँकि हममें से कोई भी पहले वाराणसी में नहीं रहा था, इसलिए शुरुआत में तो हम काफी झिझक रहे थे। लेकिन माँ का जज़्बा देखकर हमने उनका साथ देने का फैसला किया। हमने उस पुराने टूटे-फूटे घर को ठीक कराया और उसे एक सूंदर घर की तरह सजाया।” 

चूँकि वह घर आशा की बहन का था, इसलिए वह उन्हें किराया देते थे। उनकी बहन भी समय-समय पर Granny’s Inn में रहने और आशा की मदद करने आया करती थीं। 

इस तरह आशा की सोच और उनकी बहन के साथ से, दिसंबर 2013 में Granny’s Inn की शुरुआत हुई। 

आशा बताती हैं, “छह कमरों वाले हमारे गेस्ट हाउस में जो भी आता, मुझे ग्रैनी कहकर ही बुलाता और मुझे अच्छा भी लगता था। हर मेहमान का स्वागत, मैं घर में आए मेहमान जैसे ही करती थी, न की ग्राहक या टूरिस्ट की तरह।”

Asha and her sister Aruna with guests

Granny’s Inn की सफलता 

शिल्पी बताती हैं, “माँ को लोगों से घुलने-मिलने में ज्यादा समय नहीं लगता। वह जब गृहिणी थीं, तब भी आस-पास के लोगों के साथ मिलकर कुछ नया करने, किसी की समस्या को सुलझाने और अन्य सामाजिक कामों में रुचि लेती रहती थीं। माँ के इसी स्वाभाव के कारण, बड़े कम समय में Granny’s Inn वाराणसी में मशहूर हो गया।”

अभिनेत्री दिया मिर्ज़ा से लकेर 50 देशों से कई लोग Granny’s Inn में रहने आ चुके हैं। सबके साथ आशा, एक माँ की तरह ही पेश आती थीं। अपने एक मेहमान को याद करते हुए वह कहती हैं, “2020 फरवरी में, कोविड के ठीक पहले अमेरिका से एक लड़का वाराणसी में तबला सीखने आया था और तक़रीबन छह महीने तक मेरे साथ ही रुका था। वह मुझे कई चीजें सिखाता और खूब बातें भी करता था।” 

इस homestay business को छोटी-सी एक टीम चलाती थी। सभी एक दूसरे के काम में मदद करते थे। आशा कहती हैं कि कई बार अगर कुक बीमार हो, तो मैं खाना पकाने लगती। वहीं, ऑनलाइन गेस्ट हैंडलिंग और सोशल मिडिया मार्केटिंग का काम शिल्पी और उनके पति संभाल लेते थे। 

Team Granny’s Inn

कोविड ब्रेक का सही इस्तेमाल 

शिल्पी बताती हैं, “पिछले साल मार्च में हमें Granny’s Inn बंद करना पड़ा, जो माँ की उम्र को देखते हुए बहुत ज़रूरी था। हालांकि, वह वाराणसी से जाना नहीं चाहती थीं, क्योंकि इस जगह ने उन्हें एक नई पहचान दिलाई है।”

आशा का ज्यादातर बचपन गांव में ही बिता है और होमस्टे चलाते हुए उन्हें एहसास हुआ कि लोग ऑर्गेनिक और हेल्दी खाने को लेकर कितने सजग हैं। ऐसे में, अगर गांव की महिलाओं को खेती के साथ-साथ कुछ ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग और सही प्लेटफॉर्म मिले, तो वह अपने उत्पाद सीधे ग्राहकों तक पहुंचा सकेंगी।

आशा बताती हैं, “मेरे भाई के बेटे और शिल्पी के साथ मिलकर हम एक ऐसी ऑनलाइन कम्युनिटी बनाने पर काम कर रहे हैं,  जिसमें महिलाएं अचार और चने से बने सत्तू जैसे कुछ प्रोडक्ट्स गांव में बनाएं और हम ऑनलाइन उसे शहरों तक पहुंचा सकें।”

लोगों के बीच ग्रैनी बनकर रहने वाली आशा के साथ-साथ हमें भी Granny’s Inn के दुबारा खुलने का बेसब्री से इंतजार रहेगा। 

हमें आशा है कि आपको आशा की कहानी सुनकर जरूर प्रेरणा मिली होगी। 

संपादन -अर्चना दुबे

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