अजीत मलकर्णेकर और उनकी पत्नी डोरिस को शुरू से ही प्रकृति से बेहद लगाव था। वह हमेशा से प्रकृति के करीब आत्मनिर्भर जीवन जीना चाहते थे। इसलिए जर्मनी में लंबा समय बिताने के बाद, वे 1984 में भारत वापस आ गए और मोल्लेम नेशनल पार्क में 50 एकड़ बंजर ज़मीन खरीदकर, गोवा में फार्म स्टे बनाया।
अजीत का जन्म यहीं हुआ था। लेकिन जब उन्होंने यह ज़मीन खरीदी तो, वहां न तो बिजली थी और ना ही पानी था। इसके अलावा, लापरवाह ढंग से वनों की कटाई का प्रभाव भी ज़मीन पर साफ-साफ दिखाई दे रहा था। यहीं से शुरू हुई अजीत और डोरिस की कठिन यात्रा।
इन दोनों ने दूधसागर बागान कहे जाने वाले इस बंजर ज़मीन को एक ऐसी जगह में बदल दिया, जो आज किसी स्वर्ग से कम नहीं लगती। अजीत और डोरिस के पास कम बारिश वाली जगह पर काम करने का थोड़ा अनुभव पहले से ही था। उन्होंने महाराष्ट्र के चंद्रपुर में बाबा आमटे के आनंदवन (कुष्ठ रोगियों के लिए रीहबिलटैशन) गांव में काम किया था।
दरअसल, अजीत और डोरिस पहली बार यहीं मिले थे। बाद में उन्हें प्यार हुआ और फिर वे जीवनसाथी बने। लेकिन यह कहानी फिर कभी…
फिलहाल बात करते हैं उनके इस फार्म स्टे तक के सफर की। गोवा में उन्होंने अपनी ज़मीन पर एक खेत बनाने का फैसला किया और पहले कुछ महीने बंजर ज़मीन को खेती के लिए तैयार करने में बिताया।
करना पड़ा काफी मुश्किलों का सामना
अजीत और डोरिस को घर, बिजली, पानी और रसोई गैस की ज़रूरत थी और वे वहां पेड़ लगाना चाहते थे। लेकिन इन सब के रास्ते में कई बाधाएं थीं। वहां किसी तरह का पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं था। हालांकि उन्होंने एक कार ऑर्डर की थी, लेकिन उस मॉडल को आने में एक साल का वक्त था। इसलिए उन्हें पानी और बिजली बोर्ड के कई चक्कर पैदल ही लगाने पड़ते थे।
इसके बाद, एक सिंचाई का कुंआ खोदा गया और ज़मीन पर बीज बोने से पहले खेती के लायक मिट्टी और संरक्षण उपायों को लागू करने की एक लंबी प्रक्रिया शुरू हुई। वहां हरियाली के नाम पर पहले तो केवल एक बरगद का पेड़ था, जिसने धीरे-धीरे अपने चारों ओर हरियाली को बढ़ते देखा।
इस खेत और बागान की देख-रेख अब अजीत और डोरिस के बेटे, अशोक मलकर्णेकर करते हैं। अशोक बताते हैं, “मिट्टी को फिर से खेती योग्य बनाना, काफी धीमी प्रक्रिया थी, जिसमें बहुत धैर्य की ज़रूरत थी। हमने नाइट्रोजन को मिट्टी में वापस लाने के लिए कड़ी मेहनत की, खाद के लिए खेत पर पशु लेकर आए, ग्राउंडवॉटर रिचार्ज के लिए मिट्टी के बांध बनाए, वॉटर रिटेंशन क्षमता में सुधार के लिए ऑनसाइट मल्चिंग की और खाद व ऊर्जा प्रदान करने के लिए एक बायोगैस प्लांट भी लगाया।”
कैसे हुई गोवा में फार्म स्टे की शुरुआत?
यहां के इको-सिस्टम को ठीक करने में मदद करने के लिए बड़े पैमाने पर खेती के पारंपरिक और जैविक तरीकों का इस्तेमाल किया गया था। कई तरह की सब्जियों, फलों, मसालों और जड़ी-बूटियों के अलावा, यहां नारियल, काजू, काली मिर्च और सुपारी आदि उगाई जाने लगी।
धीरे-धीरे यहां पूरी ज़मीन में से केवल 25 एकड़ में खेती होने लगी और बाकी के हिस्से को जंगल में विकसित होने के लिए छोड़ दिया गया था।
कुछ समय बाद, धीरे-धीरे चीजें बदलने लगीं। ज़मीन पर अच्छी खेती होने लगी। परिवार और दोस्तों का आना-जाना बढ़ने लगा। फिर यहां 1985 में पहला खपरैल की छत वाला कॉटेज बनाया गया। बाद में, 2014 में, ऐसे ही चार और कॉटेज बनाए गए और फार्म स्टे को आधिकारिक तौर पर बिज़नेस के लिए खोल दिया गया।
आज, दूधसागर प्लांटेशन में आने वाले मेहमान, पांच कॉटेज में से किसी में भी ठहर सकते हैं। यहां की एक बड़ी खासियत यह है कि हर एक कॉटेज की अपनी अलग थीम है। कॉटेज में एक बड़ा बेडरूम, ताजी हवा का मज़ा लेने के लिए एक बरामदा और एक बाथरूम है।
इस फार्म स्टे में ठहरने को थोड़ा और आरामदायक बनाने के लिए यहां एक नेचुरल ट्रेल बनाया गया है, जिस पर चलते हुए पत्तों की आवाज के साथ कई तरह के पक्षियों की चहचहाट सुनी जा सकती है। साथ ही यहां एक नेचुरल पूल की व्यवस्था भी है। इसके अलावा, आसपास के काली मिर्च और सब्जियों के बागानों, दूधसागर वॉटरफॉल और उसगालिमोल रॉक नक्काशियों तक आराम से पहुंचा जा सकता है।
यहां बनी फैनी आपके स्टे को बना देगी और भी यादगार
इस फार्म स्टे में ताजा खाने की सुविधा भी है। खाना बनाने की सामग्री आसपास के खेतों से ही मिल जाती है। यहां मिलने वाला शाकाहारी और ऑर्गेनिक खाना कोंकणी स्टाइल में पकाया जाता है, जो आत्मा को संतुष्ट करने वाला होता है। यहां तक कि कॉकटेल भी बढ़िया मिलते हैं – खासतौर पर वे जो इन-हाउस डिस्टिल्ड फेनी और लाइम से बनाए जाते हैं।
अशोक बताते हैं, “हम प्लांटेशन पर एक हेरिटेज डिस्टिलरी चलाते हैं, जहां हम फेनी बनाते हैं। हाल ही में, हमने एक स्वादिष्ट मसालेदार फेनी भी बनाना शुरू किया, जिसे कमर्शिअल रूप से भी बेचा जा रहा है।”
यह जगह उन लोगों के लिए नहीं, जो रिसॉर्ट या रोमांच व पार्टियों की तलाश कर रहे हैं। बल्कि उन लोगों के लिए है, जो जंगल में समय का आनंद लेते हैं और प्रकृति से जुड़ना चाहते हैं। मानसून के मौसम में, दूधसागर प्लांटेशन में ठहरना निश्चित तौर पर एक यादगार अनुभव देगा।
डाबोलिम हवाई अड्डे से फार्म स्टे 1 घंटा 25 मिनट की दूरी पर है। दूधसागर प्लांटेशन की वेबसाइट पर जाकर आप कॉटेज बुक कर सकते हैं। यहां का कॉस्ट 3,000 रुपये/रात से शुरू होता है और इसमें नाश्ता भी शामिल है।
मूल लेखः हिमानी खत्रेजा
संपादनः अर्चना दुबे
यह भी पढ़ेंः मुंबई से लौटे नासिक, पारंपरिक तरीके से बनाया अपने सपनों का इको-फ्रेंडली फार्म स्टे