अहमदाबाद की CEPT यूनिवर्सिटी इलाके में पिछले 21 सालों से कुलदीप एंथोनी फर्नांडीज अपना फ़ूड बिज़नेस चला रही हैं। हर रोज़ यहां हज़ारों स्टूडेंट्स अपनी प्यारी आंटी के हाथ का खाना खाने आते हैं और यहां आने की वजह सिर्फ कुलदीप के हाथों का स्वाद नहीं है, लोगों को उनका जज़्बा भी उतना ही पसंद है।
जिस जोश के साथ 67 साल की कुलदीप गरमा-गर्म पराठा और सब्जी बनाती हैं, उतनी ही मज़ेदार है उनके इस बिज़नेस के शुरुआत की कहानी भी।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस काम की शुरुआत एक छोटे सी चुनौती के साथ हुई थी। 21 साल पहले कुलदीप ने मज़ाक में अपने पति को कहा कि कभी जल्दी घर आ जाया करो? उस दौरान उनके पति मार्केटिंग का काम करते थे।
उनके पति ने भी मज़ाक में कह दिया कि जिस दिन तुम 2000 रुपये कमाओगी उस दिन मैं घर जल्दी आ जाया करूँगा। हालांकि, कुलदीप उस समय टीचर की नौकरी करती थीं, लेकिन महीने के आखिर में उन्हें कुछ फिक्स पैसे ही मिलते थे। ऐसे में पति की यह बात उन्हें ऐसी चुभी कि उसी दिन कुलदीप ने ठान लिया कि अब तो पैसे भी कमाऊंगी और अपनी पहचान भी बनाऊंगी।
कुलदीप को कुछ ऐसा काम करना था, जिसमें वह घर भी संभाल सकें और पैसे भी कमा सकें। तब उन्होंने अपने खाना बनाने के हुनर का इस्तेमाल किया और एक छोटा से ठेला शुरू किया। उन्हें उस समय अंदाज़ा भी नहीं था कि ‘आंटी ढाबा’ नाम से की गई एक शुरुआत, एक दिन उनकी पहचान बन जाएगी।
मेहनत और लगन से बनी बिज़नेसवुमन
कुलदीप ने गुजरात में देसी पंजाबी खाने का स्वाद ऐसा परोसा कि जल्द ही कई लोग उनके नियमित ग्राहक बन गए। उन्होंने एक स्टाफ को मदद के लिए रखा और उसके साथ अकेले ही ठेला लेकर जाया करती थीं। समय के साथ वह ठेला एक छोटे टेम्पू में बदला और आज वह एक बड़े से टेम्पू में अपना ढाबा लगाती हैं।
यहां हर दिन 200 से 250 लोग आते हैं। कुलदीप ने अपना उस चैलेंज को कई साल पहले ही जीत लिया था। लेकिन आज वह खुशी से बताती हैं कि पति के उस एक वाक्य ने मुझे मेरी पहचान बनाने के लिए प्रेरित किया।
वह आज न सिर्फ अपने परिवार बल्कि आस-पास की कई महिलाओं के लिए मिसाल बन चुकी हैं।
वह कहती हैं कि अगर जीवन में कोई चुनौती दे, तो उस बात से नाराज़ होने के बजाए, उसे चुनौती को पूरा करने के बारे में सोचिए।
तो अगली बार जब कोई आपको इस तरह का चैलेंज करे, तो उससे रूठने के बजाय आप उन्हें Thank You बोलिए, क्योंकि शायद उनका चैलेंज ही आपकी प्रेरणा बन जाए, जैसा कि कुलदीप के साथ हुआ।
संपादन- अर्चना दुबे
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