किसी भी महिला के लिए आर्थिक रूप से निर्भर होना गर्व की बात होती है। लेकिन यह चीज़ और भी अहम तब हो जाती है, जब वह महिला किसी कारण से अकेली अपने बच्चों की परवरिश कर रही होती है। सतारा (महाराष्ट्र) में रहनेवाली सरवत गुलामकादर के लिए साल 2004 में कुछ ऐसे हालात बने कि उन्हें खुद को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करना बेहद ज़रूरी हो गया और तब उन्होंने बेकरी बिज़नेस की शुरुआत की।
सरवत ने इंटर तक की पढ़ाई की है, जिसके बाद उनकी शादी कर दी गई थी। लेकिन कुछ कारणों से साल 2004 में उन्होंने अपने पति से तलाक़ लेने का फैसला किया, जिसके बाद वह अपने माता-पिता के घर आकर रहने लगीं। उस समय, सरवत के ऊपर अपनी छह महीने की बेटी की जिम्मेदारी थी। इसके साथ ही उन्हें खुद की एक पहचान भी बनानी थी।
ऐसे में उन्होंने अपने हुनर का सहारा लिया और घर से ही नान खटाई और रोट जैसी बेकरी आइटम्स बनाकर बेचना शुरू किया। सालों की मेहनत के बाद, आख़िरकार 2019 में वह खुद की एक दुकान खोल पाईं और आज शहर में वह एक सफल बेकरी बिज़नेस चला रही हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए सरवत कहती हैं, “यह सफर बिल्कुल आसान नहीं था। लेकिन मैंने हिम्मत कभी नहीं हारी और काम करती रही। हर तकलीफ का सामना मैंने बिना डरे किया और सिर्फ अपने काम पर ही ध्यान दिया।”
नाना के बेकरी बिज़नेस से मिली प्रेरणा
सरवत ने बताया, “हम सिर्फ तीन बहनें हैं और सबकी शादी हो गई है, इसलिए मेरे माता-पिता अकेले ही रहते थे। उनसे मुझे शुरुआती सहारा भी मिला।” सरवत के पूर्व पति अहमदनगर की एक प्रसिद्ध बेकरी की एजेंसी का काम करते थे। सरवत कहती हैं, “वह एजेंसी मेरे जीजाजी ने ही उन्हें दी थी। इसलिए तलाक़ के बाद उन्होंने उस बेकरी की एजेंसी का काम करने से भी मना कर दिया, जिसके बाद मैंने अपने पिता के साथ उस काम को संभालने का फैसला किया।”
सरवत ने अहमदनगर की बेकरी की एजेंसी के लिए प्रोडक्ट बेचना शुरू किया। लेकिन तभी उनके मामा ने उन्हें एजेंसी का काम छोड़, खुद का बेकरी बिज़नेस शुरू करने की सलाह दी। दरअसल, उनके नाना और मामा बेकरी का बिज़नेस ही करते हैं। सरवत कहती हैं, “बचपन में अपने नाना के घर में गर्म-गर्म नान खटाई तो मैंने खूब खाई थी, लेकिन मुझे कभी अंदाजा भी नहीं था कि एक दिन मैं भी यही बिज़नेस करूंगी।”
अपने मामा की सलाह के बाद, सरवत ने अपने मामा के पास से ही नान खटाई बनाना सीखा और घर से ही काम करने की शुरुआत कर दी। वह नान खटाई के साथ-साथ मुहर्रम के समय खूब खाए जाने वाले रोट भी बनाया करती थीं। उन्होंने रोट को अलग-अलग फ्लेवर्स में बनाना शुरू किया। यह बिस्किट का ही एक रूप है, जिसे रवा, रागी जैसे अलग-अलग हेल्दी तरीकों से बनाया जाता है। उन्होंने करीबन 10 सालों तक शहर की 12 से 13 दुकानों में घूम-घूमकर अपने प्रोडक्ट्स बेचे।
विदेश तक जाती हैं सरवत की नान खटाई
समय के साथ उनकी नान खटाई और रोट ही उनकी पहचान बन गई। उन्होंने साल 2016 में अपने माता-पिता के पुराने घर में ‘मरिया बेकरी एंड फूड्स’ के नाम से बेकरी बिज़नेस की शुरुआत की थी। लेकिन उनकी दुकान ज्यादा फैंसी नहीं थी, इसलिए उन्होंने दूसरे काउंटर्स पर जाकर प्रोडक्ट्स बेचना जारी रखा।
उन्होंने बताया, “साल 2019 में मैंने अपनी दुकान को बेहतर तरीके से बनाया। साथ ही मैंने शहर की एक NGO की मदद से बेकरी के लिए कुछ ऑटोमेटिक मशीनें भी खरीदीं, जिसके बाद मैंने यहीं से कई नए प्रोडक्ट्स जैसे पफ़, केक, डोनट्स आदि बेचना शुरू किया। लेकिन आज भी मेरा सबसे ज्यादा बिकने वाला आइटम नान-खटाई और रोट ही हैं। लोग दूर-दूर से मेरी नान खटाई के लिए यहां आते हैं।”
बेकरी बिज़नेस से मिली आर्थिक आज़ादी और आत्मनिर्भरता
इसी बिज़नेस ने उन्हें अपनी बेटी की परवरिश करने में मदद की है। आज उनकी बेटी होम्योपैथी की पढ़ाई कर रही हैं। कठिन समय में सरवत के माता-पिता ने उनका हर कदम पर साथ दिया। लेकिन चार साल पहले पिता की मृत्यु के बाद, आज वह अपनी माँ की जिम्मेदारी भी इसी बिज़नेस के सहारे उठा पा रही हैं। सतारा के कई लोग उनसे नान खटाई खरीदकर दुबई और कनाडा भी लेकर जाते हैं।
फ़िलहाल वह अपने बेकरी बिज़नेस से करीबन 60 से 70 हजार रुपये कमा रही हैं। उनका सपना है कि वह आने वाले समय में अपने ‘मरिया बेकर्स’ ब्रांड के अंतर्गत अपने नाना के नाम से Nana’s नान खटाई को दुनिया भर में पहुंचाएं।
सरवत की कहानी हमें सिखाती है कि रास्ते कितने भी मुश्किल क्यों न हों, हम मेहनत से अपने भविष्य को बेहतर बना सकते हैं। साथ ही यह कहानी इस बात का भी बेहतरीन उदाहरण है कि हमारे लिए आर्थिक आज़ादी और आत्मनिर्भरता कितनी ज़रूरी है!
संपादन-अर्चना दुबे
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