राज राजा प्रथम (Emperor Raj Raja I) को सबसे शक्तिशाली चोल शासक माना जाता है। उनकी शक्ति सिर्फ अपनी सेना तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनके शासनकाल में तमिल संस्कृति का सही रूप सामने आया।
बात चाहे सामाजिक संस्थाओं की हो, धर्म और संस्कृति की, या फिर वास्तुकला की। उनके शासनकाल में जो मानक तय हुए, उनका असर दक्षिण भारतीय लोगों के जीवन में आज भी देखा जा सकता है। हलांकि चोलों को अपना महत्व साबित करने में सदियों लगे!
चोल वंश सत्ता में कैसे आया?
कावेरी नदी क्षेत्र में मुट्टियार नाम से मशहूर एक छोटे से परिवार की सत्ता थी। वे कांचीपुरम के पल्लव राजाओं के अधीन थे। फिर, 9वीं सदी के मध्य में उरइयार के चोल मुखिया विजयालय ने मुट्टियारों पर कब्जा कर लिया और वहां तंजौर शहर और निशुम्भसूदिनी देवी का मंदिर बनवाया।
वैसे तो एक तमिल सरदार के रूप में चोलों का शासन (Chola Empire) पहली सदी में ही शुरु हो गया था। लेकिन, विजयालय ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की और खुद को सूर्यवंशी बताते हुए, अपनी शक्ति को बढ़ाना शुरू कर दिया। फिर, 907 में, परान्तक प्रथम, चोल राजा बने और करीब 50 वर्षों तक राज किया। उन्होंने पांड्यों पर आक्रमण कर, मदुरई पर कब्जा जमा लिया और अपनी दक्षिणी सीमा को बिल्कुल सुरक्षित कर लिया।
पांड्यों के श्रीलंका के साथ काफी अच्छे संबंध थे। नतीजन, श्रीलंका और तमिलनाडु के बीच सदियों तक दुश्मनी चलती रही। परान्तक को अपने आखिरी दिनों में राष्ट्रकूटों से हार का सामना करना पड़ा और राष्ट्रकूटों ने चोल राज्य के उन उत्तरी क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, जो कुछ समय पहले ही चोल राज्य में शामिल हुए थे। फिर, धीरे-धीरे चोलों की शक्ति कमजोर होती गई।
राज राजा प्रथम (Emperor Raj Raja I) का उदय कब और कैसे हुआ?
सन् 985 में राज राजा प्रथम (Emperor Raj Raja I), राजा बने और उन्होंने सन् 1014 तक सत्ता संभाली। उन्होंने 29 वर्षों के अपने शासनकाल में चोल राजवंश (Chola Dynasty) को फिर से मजबूत किया और केरल, श्रीलंका और पांड्यों के खिलाफ आक्रमण करते हुए, पश्चिमी तट पर इन राज्यों के वर्चस्व को चुनौती दी।

तब तक अरबों ने व्यापारी के रूप में पश्चिमी तट पर अपने पैर जमा लिए थे और उन्हें केरल के राजाओं की मदद मिल रही थी। लेकिन, राज राजा प्रथम दक्षिण-पूर्व एशिया में अरबों के व्यापार से परिचित थे और उन्होंने मालाबार पर कब्जा करते हुए, इस व्यापार के मूल पर ही समुद्र के जरिए आक्रमण करने का प्रयास किया। यही कारण है कि उनमें 700 साल पहले पाटलिपुत्र की बागडोर संभालने वाले महान शासक समुद्रगुप्त की झलक देखने को मिलती है।
हालांकि, राज राजा प्रथम दक्षिण का वह चोल शासक, जिसमें दिखती है समुद्रगुप्त की छवि! अरबों के व्यापार पर सीधा आक्रमण नहीं कर सके, लेकिन उन्होंने श्रीलंका में भारी तबाही मचाते हुए, राजधानी अनुराधापुर को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। फिर, चोलों और चालुक्यों के बीच वेंगी के धनी इलाकों पर कब्जा करने के लिए भी युद्ध हुए। इस युद्ध ने पल्लव-चालुक्य संघर्ष की पुरानी यादों को ताजा कर दिया।
मूर्तिकला को दिया बढ़ावा
राज राजा प्रथम (Emperor Raj Raja Chola I) ने अपने शासनकाल में सौ से अधिक मंदिरों को बनवाया। उन्होंने तंजौर में जिस शिव मंदिर (बृहदेश्वर मंदिर) को बनवाया, वह मूर्तिकला और वास्तुकला के लिहाज से आज भी एक उदाहरण है। इसे यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी घोषित किया जा चुका है।
उनके द्वारा बनवाए गए मंदिर, आस-पास की बस्तियों के केन्द्र बन गए। दूसरे शब्दों में कहां तो, ये मंदिर सिर्फ पूजा-पाठ के ही नहीं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के केन्द्र भी थे। यहां पुरोहित, माली से लेकर संगीतकार और नर्तक तक को एक बेहतर जीवन मिल रहा था।
इतना ही नहीं, उनके द्वारा बनवाई गईं कांस्य प्रतिमाएं, दुनिया की सबसे बेहतरीन कांस्य प्रतिमाओं में गिनी जाती हैं। वैसे तो अधिकांश प्रतिमाएं देवी-देवताओं की होती थीं, लेकिन कुछ प्रतिमाएं भक्तों को लेकर भी बनाई गई थीं।
जब राज राजा प्रथम (Emperor Raj Raja Chola I) के बेटे ने संभाली विरासत
राज राजा प्रथम (Emperor Raj Raja Chola I) के बेटे का नाम राजेन्द्र प्रथम था। राजेन्द्र ने अपने पिता के साथ दो वर्षों तक सत्ता संभाली और 1014 में खुद राजा बन गए। सत्ता संभालते ही उन्होंने चालुक्यों के दक्षिणी प्रांत (अब हैदराबाद) को अपने राज्य में शामिल कर लिया। इतना ही नहीं, उन्होंने श्रीलंका और केरल पर भी फिर से हमला किया।
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राजेन्द्र का मनोबल इतना बढ़ गया था कि उन्होंने उत्तर में उड़ीसा होते हुए गंगा घाटी की ओर भी सैनिक अभियान को अंजाम दे दिया। कहा जाता है कि गंगा के पवित्र पानी को वह अपनी राजधानी में लाए। लेकिन, उत्तर में उनका अधिकार ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया।
अब तक भारत और चीन के बीच, व्यापारिक रिश्ते काफी मजबूत हो चुके थे और राजेन्द्र ने अपने हितों की रक्षा के लिए श्रीविजय राजवंश (अब इंडोनेशिया) के खिलाफ अपनी थल और जल सेना द्वारा हमला कर दिया।
श्रीविजय राज्य भारत-चीन के समुद्री रास्ते में था और कहा जाता है कि वहां के शासक माल को रोक कर अपनी मनमानी करते थे और वहां रहनेवाले भारतीय व्यापारियों को धमकाते थे।
यह देख, राजेन्द्र का गुस्सा भड़क उठा और उन्होंने श्रीविजय पर हमला कर दिया। नतीजन, यह रास्ता भारत के लिए बिल्कुल सुरक्षित हो गया।
चोलों ने खेती को दी मजबूती
चोल राजाओं को अपने राज्य में खेती (Agricultural Developments In The Chola Empire) को नया आयाम देने के लिए भी जाना जाता है। चोल नरेशों ने बाढ़ को रोकने के लिए, डेल्टा क्षेत्रों में कई तटबंध बनवाए। उन्होंने खेतों तक पानी ले जाने के लिए, कई नहरें भी बनवाईं।
कई जगहों पर बारिश के पानी को जमा करने के लिए संसाधनों की जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने कई बड़े तालाब और कुएं बनवाए। नतीजन, तमिलनाडु में एक साल में दो फसलों की खेती होने लगी और लोगों का जीवन स्तर ऊंचा होने लगा।
आज तमिल इतिहास में चोलों के शासन को ‘स्वर्ण युग’ का दर्जा दिया जाता है और राज राजा प्रथम (Emperor Raj Raja Chola I) ने का नाम इसमें सबसे ऊंचा है।
संपादन- जी एन झा
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