सम्राट अशोक के शब्दों वाली शिलालेखों पर उनके नाम की जगह, क्यों लिखा था ‘पियादसी’?

Ashoka The Great

अगर सम्राट अशोक (Ashoka The Great) के इन शिलालेखों की खोज नहीं की गई होती, तो उनके दूरदर्शी मूल्य और प्रशासनिक प्रतिभा के बारे में लोग कभी नहीं जान पाते।

“इतिहास के पन्नों में हजारों राजाओं के नामों के बीच सम्राट अशोक (Ashoka The Great) का नाम अलग ही चमकता है। एक सितारा, जो लगभग अकेला चमकता है।” – एचजी वेल्स, अंग्रेजी उपन्यासकार, पत्रकार, समाजशास्त्री और इतिहासकार ने ये शब्द सम्राट अशोक के लिए कहे थे।

पाकिस्तान की खैबर घाटी में भी एक बड़े से शिलाखंड पर, आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ शब्द खुदे हुए हैं: ‘अच्छे काम करना कठिन है – अच्छा काम शुरू करना और भी कठिन है।’

ये शब्द मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट अशोक (Ashoka The Great) के हैं, जिन्होंने दक्षिण एशिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक पर शासन किया। अपने विशाल साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं का विस्तार करने और अपने इस साम्राज्य में सहिष्णुता के संदेश को फैलाने के लिए, सालों से उन्हें विश्व इतिहास में सबसे अनुकरणीय शासकों में से एक के रूप में याद किया जाता है।

अगर 19वीं शताब्दी में अशोक के शिलालेखों की खोज नहीं की गई होती, तो अशोक (Ashoka The Great) के ये दूरदर्शी मूल्य, मानवीय नैतिकता, यहां तक ​​​​कि सम्राट अशोक की प्रशासनिक प्रतिभा भी सामने नहीं आ पाती। 

अशोक (Ashoka The Great) ही थे पियादसी

Emperor Ashoka Inscription at Dhauli, Odisha
The Ashoka Rock Inscription at Dhauli, Odisha (Source: Exciting India)

सन् 1837 में जब तक ओरिएंटलिस्ट विद्वान जेम्स प्रिंसेप ने इन शिलालेखों को पढ़ना शुरू नहीं किया था, तब तक अशोक अन्य शासकों की तरह सिर्फ एक प्राचीन भारतीय सम्राट थे। लेकिन उनके शिलालेखों को समझने के बाद, सब कुछ बदल गया। वह सिर्फ एक सम्राट नहीं रहे, बल्कि चक्रवर्ती सम्राट अशोक (Ashoka The Great) बन गए।

पहले कोई नहीं जानता था कि इन शिलालेखों को लिखने वाला कौन है या किसने इन्हें लिखवाया है। क्योंकि शुरू के शिलालेखों में कहीं भी सम्राट अशोक (Ashoka The Great) का उल्लेख नहीं था। इसमें ‘पियादसी’ (देवताओं के प्रिय) का जिक्र था। दुनिया को यह समझने में सात दशक से अधिक समय लगा कि अशोक ही पियादसी थे। यह जानकारी सन् 1915 में एक अन्य शिलालेख की खोज के बाद सामने आ पाई। इस शिलालेख में सम्राट ने खुद को ‘अशोक पियादसी’ के रूप में संबोधित किया था।

खैबर दर्रे से लेकर दक्षिण भारत तक फैले मौर्य साम्राज्य की सीमाओं के उल्लेख के साथ, अशोक के संदेश अभी भी पूरे भारत में चट्टानों पर अंकित मिल जाएंगे। हालांकि, इस तरह की कई चट्टानें नष्ट भी हो चुकी हैं।

बदलाव के पीछे की अविश्वसनीय कहानी 

अशोक के संदेशों को समझने के लिए, हमें अशोक (Ashoka The Great) के जीवन में आए बदलाव के पीछे की अविश्वसनीय कहानी के बारे में जानना होगा। वह कहानी, जो अशोक के सत्ता में आने के आठ साल बाद 270 ईसा पूर्व में शुरू होती है। राजतिलक के बाद, अपने पहले युद्ध में, अशोक ने पूर्वी तट पर स्थित एक स्वतंत्र सामंती साम्राज्य कलिंग पर आक्रमण किया (वर्तमान में ओडिशा और उत्तरी आंध्र प्रदेश को कवर करता हुआ)। 

इस जीत ने उन्हें एक बड़े साम्राज्य का सम्राट बना दिया। उन्होंने वह कर दिखाया था, जो उनके पूर्वज सदियों से नहीं कर पाए थे।। लेकिन इस जीत की कलिंग को काफी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, कलिंग की लड़ाई, भारतीय इतिहास की सबसे घातक लड़ाइयों में से एक थी, जिसमें एक से तीन लाख लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था। 

खून-खराबे और युद्ध से लोगों को मिली पीड़ा ने अशोक (Ashoka The Great) पर जबरदस्त भावनात्मक असर डाला। सैन्य विजय और हिंसा का त्याग करते हुए, दुखी सम्राट ने रॉक एडिक्ट 13 में लिखा था, “वह एक अजेय देश को जीतने के लिए की गई हत्या, मौतों और युद्ध बंदियों के देश निकाले से बहुत दुखी थे।”

तब उन्होंने, उस समय की मौर्य साम्राज्य की खास, हिंसक विदेश नीति को त्यागते हुए, इसे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति के साथ बदल दिया। चौथे शिलालेख पर अंकित अपने स्वयं के यादगार शब्दों में, अशोक कहते हैं कि उनके शासनकाल में युद्ध के ढोल की आवाज़ की जगह, अब नैतिकता की आवाज़ ने ले ली है।

आधिकारिक भाषा में क्यों नहीं लिखे गए संदेश?

Emperor Ashoka The Great Inscription of battle ground
Emperor Ashoka Inscription (Source: Wikipedia)

पूरी तरह से बदल चुके अशोक (Ashoka The Great) ने कुछ समय बाद, अपने नए दृष्टिकोण को साझा करने का निर्णय लिया। वह साम्राज्य के चारों ओर, व्यस्त व्यापार मार्गों पर स्थित चट्टानों व विशाल पत्थर के स्तंभों पर संदेश लिखवाने लगे। वह चाहते थे कि उनके शब्द पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को प्रेरित करते रहें।

पांचवें शिलालेख के अंत में अशोक कहते हैं, “नैतिकता के ये अभिलेख, पत्थर पर लिखे गए हैं, ताकि ये लंबे समय तक बने रहें और मेरे वंशज इसके अनुरूप कार्य कर सकें।”

अशोक चाहते थे कि ये शिलालेख विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के लोगों को प्रेरित करें। इसलिए उनके संदेश किसी एक भाषा विशेष और किसी एक जगह तक सीमित नहीं थे। अशोक (Ashoka The Great) के संदेश संस्कृत (आधिकारिक भाषा) में नहीं, बल्कि ब्राह्मी और खरोष्ठी जैसी स्थानीय बोलियों में लिखे गए थे, ताकि उन्हें व्यापक रूप से समझा जा सके।

अफगानिस्तान में आधुनिक कंधार के पास अशोक का एक शिलालेख ग्रीक और अरामी भाषा में लिखा गया है। यह क्षेत्र कभी सिकंदर के नियंत्रण में था। अशोक ने अपने शिलालेखों के माध्यम से, अलग-अलग धर्मों के लोगों के लिए परस्पर सम्मान और सहिष्णुता की नीति को भी बढ़ावा दिया। अपने सातवें संस्करण में वह कहते हैं, “राजा की इच्छा है कि सभी परंपराएं हर जगह मौजूद रहें।”

साम्राज्य का कुशलतापूर्वक प्रबंधन 

अपने ग्याहरवें शिलालेख में, अशोक (Ashoka The Great) ने घोषणा की, कि अच्छे कार्यों में, सामाजिक रूप से हमारे नीचे और समान स्तर पर जीवन यापन करने वाले लोगों के प्रति कर्तव्य भी शामिल है। वह कहते हैं, “हमें दासों व सेवकों का सम्मान और मित्रों व परिचितों के प्रति उदारता रखनी चाहिए। 

बारहवें फरमान में उन्होंने कहा, “हर किसी को दूसरों के बताए गए सभी सिद्धांतों को सुनना और उनका सम्मान करना चाहिए। राजा चाहते हैं कि सभी लोग अन्य परंपराओं के अच्छे सिद्धांतों को अच्छी तरह से याद रखें।”

हालांकि, अशोक (Ashoka The Great) ऐसे शासक नहीं थे, जो सिर्फ आध्यात्मिक और परोपकारी नैतिकता की ही बात करते हों। उन्होंने पाटलिपुत्र में मौर्यकालीन राजधानी से केंद्रीकृत सरकार के जरिए साम्राज्य का कुशलतापूर्वक प्रबंधन किया। उन्होंने समझाया कि सार्वजनिक बुनियादी ढांचा और शासन भी नैतिक चिंताएं हो सकती हैं।

अशोक द्वारा किए गए सार्वजनिक कार्यों में प्रमुख व्यापार केंद्रों को जोड़ने के लिए बेहतरीन सड़कों का निर्माण, सड़कों के किनारे छायादार पेड़ लगाना, वनस्पति औषधालय, विश्राम गृहों और यहां तक ​​​​कि मनुष्यों और जानवरों के लिए अस्पताल बनाना भी शामिल है। इन सभी कार्यों का निरीक्षण करने के लिए, सम्राट अशोक (Ashoka The Great) खुद दौरे पर जाते थे और उम्मीद करते थे कि उनके नौकरशाह भी ऐसा ही करेंगे।

पशुओं के शिकार पर लगाया प्रतिबंध

A 1st century BC relief from Sanchi, showing Ashoka The greart on his chariot
A  1st century BC relief from Sanchi, showing Ashoka on his chariot
(Source: Wikipedia)

कलिंग के बाद, वह वन और वन्यजीव संरक्षण के प्रबल समर्थक भी बन गए। दूसरे और सातवें स्तंभ के शिलालेखों पर लिखा है:

“जहां पर भी मनुष्यों या जानवरों के लिए सही चिकित्सा और जड़ी-बूटियां उपलब्ध नहीं हैं, मैंने उन्हें वहां आयात किया और उगाया है। मैंने आम के बाग लगाए हैं और हर आठ किलोमीटर पर तालाब खुदवाए, सड़कों के किनारे आश्रय बनाए हैं।इंसानों और जानवरों को छाया देने के लिए सड़कों पर बरगद के पेड़ लगाए हैं। हर जगह मनुष्य और पशुओं के पीने के पानी की व्यवस्था के लिए कुएं खुदवाए हैं।”

प्राचीन भारत में जब जंगली जानवरों को राजा की संपत्ति माना जाता था, अशोक (Ashoka The Great) ने ऐसे समय में शाही शिकार करने और पशु बलि पर प्रतिबंध लगा दिया था और फिर वन व वन्यजीव अभ्यारण्य की स्थापना की गई। उनके शासन काल में घरेलू पशुओं के प्रति क्रूरता करने की भी सख्त मनाही थी। 

इस दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाते हुए, अशोक ने मुफ्त पशु चिकित्सालय और औषधालयों की स्थापना की। चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान, भारत आए चीनी यात्री फा ह्यान ने पाटलिपुत्र में पशु चिकित्सालयों का जिक्र किया है, शायद दुनिया में पहली बार यह हुआ था, जब कहीं इस तरह की सुविधाएं दी गई थीं।

तिरंगे में अशोक चक्र (Ashoka Chakra)

सहिष्णुता, दयालुता और जिम्मेदार राज्य की उनकी विरासत, आज भी भारत की चट्टानों पर संदेशों के रूप में अंकित हैं, जो बताते हैं कि सम्राट अशोक, क्यों एक महान सम्राट थे? एक ऐसा सम्राट जिसने शस्त्रों के जरिए विजय पताका फहरानी शुरू की थी। लेकिन आखिर में उन्होंने दिलों को जीतना शुरू कर दिया।

अशोक की महानता और उनके आदर्श विचारों से प्रभावित होकर, स्वतंत्र भारत ने अपने नए ध्वज के लिए सम्राट अशोक (Ashoka The Great) के प्रतीक-अशोक चक्र को अपनाया। आधुनिक भारत को इस प्राचीन भारतीय सम्राट के मूल्यों और उनके विचारों का अुनकरण करना चाहिए।

मूल लेखः संचारी पाल

संपादनः अर्चना दुबे

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