हमारे देश में बहुत से महान राजा हुए हैं, जिन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन महान शासकों का इतिहास ईसा पूर्व युग से शुरू होकर आधुनिक भारत तक आता है। इन राजाओं को न सिर्फ भारत में बल्कि दूसरे देशों में भी उनकी वीरता और कौशल के लिए जाना जाता है।
कोई दुश्मनों को मात देने वाला महान योद्धा था तो कोई कुशल शासक, जिसके राज में देश ने आर्थिक उन्नति की। अलग-अलग काल में, अलग-अलग राजाओं और उनके वंशजों का राज भारत पर रहा। सबने अपने युग में राष्ट्र निर्माण के लिए काम किया। आज हम आपको भारतीय इतिहास के ऐसे 10 महान शासकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका नाम न सिर्फ भारत में बल्कि दूसरे देशों में भी जाना जाता है।
1. सम्राट अशोक

सम्राट अशोक का नाम हम सब बचपन से सुनते आये हैं। वह भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। कहा जाता है कि उनका राज्य अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक और कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक फैला हुआ था। उनकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। उनका नाम हमेशा से महान राजाओं की सूची में शामिल रहा है। मौर्य वंश के तीसरे शासक, अशोक को उनकी कठोरता और दयालुता, दोनों के लिए जाना जाता है। इतिहासकारों के मुताबिक, अशोक एक महान योद्धा थे और अपने राज्य को बढ़ाने के लिए उन्होंने बहुत से युद्ध किए और जीते। लेकिन कलिंग के युद्ध के बाद उन्होंने ‘बौद्ध धर्म’ को अपनाते हुए शांति के मार्ग पर चलने का फैसला किया।
बौद्ध धर्म को देश-दुनिया में फैलाने का श्रेय सम्राट अशोक को ही जाता है। कहते हैं कि समय के साथ अशोक महान सम्राट और विचारक के रूप में उभरे। दिग्विजय की जगह धम्म विजय को अपनाया। उन्होंने ‘आम लोगों का सम्राट’ बनने पर जोर दिया और इसमें सफल भी रहे। उनके शासन काल में ही कई प्रमुख विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी, जिसमे तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय प्रमुख हैं।
तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया मध्य प्रदेश में साँची का स्तूप आज एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। अशोक स्तम्भ से लिए गए अशोक चक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में स्थान दिया गया है और चार शेर वाले चिन्ह को राष्ट्रीय चिन्ह (National emblem) का सम्मान दिया गया है।
2. सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य
इतिहास की चर्चा हो और सम्राट चन्द्रगुप्त का नाम न लिया जाए, ऐसा सम्भव नहीं। मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त को भारत का पहला सम्राट माना जाता है, जिसने लगभग पूरे भारत में अपना शासन फैलाया। चंद्रगुप्त के जन्म के बारे में कई कहानियां हैं लेकिन चाणक्य रुपी महान रणनीतिकार को गुरु के रूप में पाने के बाद, उन्होंने अपना अभियान शुरु किया। सबसे पहले उन्होंने मगध से नंद वंश को समाप्त कर अपना शासन स्थापित किया और फिर अलग-अलग खंडों में विभाजित भारत को ‘अखंड भारत’ बनाया।
इतिहासकारों के मुताबिक, चाणक्य को जब यह खबर मिली कि एलेक्जेंडर (सिकंदर) भारत पर आक्रमण करने की योजना बना रहा है। तब उन्होंने भारत के सभी राज्यों को एक साथ लाने के लिए योग्य राजा की तलाश शुरू कर दी। उनकी यह खोज चन्द्रगुप्त पर आकर खत्म हुई। चाणक्य के मार्गदर्शन में ही चंद्रगुप्त ने सिंकदर के सेनापति सेल्यूकस को युद्ध में हराया और उनके साथ संधि की कि वे कभी भारत पर आक्रमण नहीं करेंगे। चंद्रगुप्त ने अपने शासन काल में न सिर्फ अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाया बल्कि इसकी आर्थिक उन्नति पर भी ध्यान दिया।
3. छत्रपति शिवाजी महाराज

इस महान मराठा शासक के बारे में कौन नहीं जानता है। शिवाजी एक तरफ जहां वीर योद्धा थे वहीं दूसरी ओर बेहद दयालु शासक भी थे। बताया जाता है कि पुणे में जन्मे शिवाजी शाहजी भोंसले ने ही मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। बचपन से ही शिवाजी ने युद्ध शिक्षा ली। इन्हें गुरिल्ला युद्ध तकनीक का जनक भी कहा जाता है। क्योंकि मुगलों के खिलाफ इन्होंने इसी तकनीक का इस्तेमाल किया था। उनकी ‘गुरिल्ला युद्ध नीति’ के बारे में आज भी बात की जाती है। एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार होने के साथ-साथ, वह प्रगतिशील शासक भी थे।
शिवाजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे और उनके राज्य में सभी लोग बिना किसी भेदभाव के रहते थे। उनकी सेना में कई मुस्लिम योद्धा बड़े ओहदों पर आसीन थे। शिवाजी ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवनचरित से प्रेरणा लेकर स्वतंत्रता आंदोलन में अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया था।
4. महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप सिंह उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। महाराणा प्रताप को मुगल शासकों के सामने कभी न झुकने के लिए याद किया जाता है। कई वर्षों तक बादशाह अकबर के साथ युद्ध करने वाले महाराणा प्रताप का इतिहास एक प्रेरणा की तरह है। इन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्र, कुल और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया था। इसीलिए इतिहास में इनका नाम आज भी वीरता और दृढ़ प्रतिज्ञा के लिये अमर है।
ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप तब 72 किलो का कवच पहनकर 81 किलो का भाला अपने हाथ में रखते थे। भाला, कवच और ढाल-तलवार का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था। राणा 208 किलो वजन के साथ युद्ध के मैदान में उतरते थे। मेवाड़ को जीतने के लिए मुगलों ने कई प्रयास किए। लेकिन अजमेर को अपना केंद्र बनाकर अकबर ने उनके विरुद्ध सैनिक अभियान शुरू कर दिया। महाराणा प्रताप ने कई वर्षों तक मुगलों की सेना के साथ संघर्ष किया। उनकी वीरता ऐसी थी कि उनके दुश्मन भी उनके युद्ध-कौशल के कायल थे।
महाराणा प्रताप और उनके प्यारे घोड़े ‘चेतक’ की वीरता की गाथाएं आज भी आपको राजस्थान के कण-कण में मिल जाएगी। वह ऐसे महान राजा थे, जिन्होंने कई वर्ष जंगलों में बिताए। घास की बनी रोटियां खाई और एक बार फिर अपनी सेना खड़ी की। लेकिन कभी भी दुश्मनों के सामने घुटने नहीं टेके।
5. मुग़ल बादशाह अकबर

बादशाह अकबर मुग़ल वंश के तीसरे शासक थे। जिन्हें अपने पिता हुमायूँ के देहांत के बाद कम उम्र में ही सल्तनत मिल गयी थी। उन्होंने अपनी सीमायें बढ़ाने के लिए कई बार जंग लड़ी और जीती भी। उनके शासनकाल में सभी धर्मों के हितों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाई गयी थी। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया ताकि उनके शासन में लोगों के बीच सद्भाव और शांति रहे। उनका वास्तविक नाम ‘जलालुद्दीन मोहम्मद’ था। लेकिन बाद में प्रजा द्वारा ‘अकबर’ नाम मिलने पर, उन्हें सभी जगह अकबर के नाम से जाना जाने लगा।
उनके शासन काल के दौरान अलग-अलग कलाओं को बढ़ावा मिला। उनके अपने राज दरबार में तानसेन जैसे महान गायक शामिल थे। अकबर ने चित्रकला, लेखन और वास्तुकला को भी बढ़ावा दिया। उन्होंने फतेहपुर सिकरी का निर्माण कराया, जो आज भी मशहूर पर्यटक स्थल है।
6. सम्राट पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान को भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट माना जाता है। उन्हें राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है। अजमेर के साथ-साथ दिल्ली के साम्राज्य पर भी राज करने वाले पृथ्वी राज चौहान अपनी युद्ध कुशलता के लिए जाने जाते हैं। अजमेर का शासन उन्हें अपने पिता सोमेश्वर चौहान की मृत्यु के बाद मिला था। लेकिन दिल्ली का उत्तराधिकारी उन्हें उनके नाना और उस समय दिल्ली के शासन अनंगपाल ने घोषित किया। पृथ्वी राज की जीवनी को उनके दोस्त और राज्य के महान कवि चन्दर बरदाई ने ‘पृथ्वी राज रासो’ में वर्णित किया है।
कहते हैं कि उन्होंने गौर शासक मोहम्मद गौरी को पहली बार युद्ध में हराया था और हर बार जीवनदान दिया। लेकिन दूसरी बार पृथ्वी राज को बंदी बना लिया गया और गौरी ने उनकी आँखें भी निकलवा दी थीं। लेकिन अपने दोस्त चंद्रबरदाई की मदद से उन्होंने खुद प्राण त्यागने से पहले मोहम्मद गौरी को खत्म किया।
7. महाराजा रंजीत सिंह

शेर-ए-पंजाब के नाम से विख्यात महाराजा रंजीत सिंह को सिख साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। बताया जाता है कि उन्होंने ही 19 वीं सदी में सिख शासन की शुरुआत की थी। बचपन में चेचक की बीमारी में अपनी एक आंख गंवाने वाले रंजीत सिंह एक कुशल शासक थे। उन्होंने दस साल की उम्र से ही युद्ध लड़ने शुरू कर दिए थे ताकि अपनी सीमाओं को सुरक्षित रख सकें। उन्होंने पूरे पंजाब को एक किया और सिख राज्य की स्थापना की। महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। कहते हैं ऐसा पहली बार हुआ था कि पश्तूनो पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया हो।
उन्होंने अपनी सेना को लड़ाई की खास तकनीकें जैसे मार्शल आर्ट्स सिखवाई और सिख खालसा सेना तैयार की। कहा जाता है कि सिंहासन पर बैठने के बाद भी उन्होंने कभी राज मुकुट नहीं पहना, क्योंकि सिख धर्म में भगवान के सामने सबको एक बराबर माना जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि दुनिया का नायाब कोहिनूर हीरा, कभी महाराज रंजीत सिंह के खजाने का हिस्सा हुआ करता था। लाहौर में अपनी आखिरी सांस लेने वाले इस महान शासक ने अपने जीते-जी अंग्रेजों को पंजाब पर कब्जा नहीं करने दिया था।
8. राजा कृष्णदेव राय

दक्षिण के महान राजा कृष्णदेव राय विजयनगर के शासक थे। कृष्णदेव राय तुलुव वंश के तीसरे शासक थे। कहते हैं कि राजा कृष्णदेव राय कूटनीति में माहिर थे। उन्होंने अपनी बुद्धिमानी से आन्तरिक विद्रोहों को शांत कर बहमनी के राज्यों पर अधिकार हासिल किया था। उन्होंने राज संभालने के बाद अपने साम्राज्य का विस्तार अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक कर लिया था। जिसमें आज के कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, गोवा और ओडिशा प्रदेश आते हैं। राजा कृष्णदेव ने कला और साहित्य को भी प्रोत्साहित किया। वह तेलुगु साहित्य के महान विद्वान थे।
कृष्ण देवराय के दरबार में तेलुगु साहित्य के 8 सर्वश्रेष्ठ कवि हुआ करते थे। जिन्हें ‘अष्ट दिग्गज’ कहा गया है। ये ‘अष्ट दिग्गज’ मंत्रिपरिषद में शामिल थे और समाज कल्याण के कामों पर नज़र रखते थे। उन्हें ‘आंध्रभोज’ भी कहा जाता है। कहते हैं कि उनका शासन जिस भी जगह तक फैला, वहां पर आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए मंदिरों का निर्माण उन्होंने कराया। उन्होंने विजयनगर में भव्य राम मंदिर और हजार खम्भों वाले मंदिर का भी निर्माण करवाया था।
9. राजा समुद्रगुप्त

राजा समुद्रगुत्प गुप्त राजवंश के दूसरे शासक थे। कहते हैं कि उनके काल में देश का काफी विकास हुआ था। उनकी युद्ध निपुणता और राजनैतिक कौशल के कारण उन्हें ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। उन्होंने न सिर्फ कई विदेशी शक्तियों को पराजित कर अपनी शक्ति का लोहा मनवाया, बल्कि अपने बेटे विक्रमादित्य के साथ मिलकर भारत के स्वर्ण युग की शुरुआत की। अपने शासन के साथ-साथ उन्होंने कला और संस्कृति को भी बढ़ावा दिया। वह अपने राज्य को उत्तर में हिमालय, दक्षिण में नर्मदा नदी, पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी और पश्चिम में यमुना नदी तक फैलाने में सफल रहे थे।
भारत में मुद्रा के चलन में भी समुद्रगुप्त की भूमिका को अहम माना जाता है। उन्होंने शुद्ध स्वर्ण की मुद्राओं तथा उच्चकोटि की ताम्र मुद्राओं का प्रचलन करवाया था। अपने शासनकाल में उन्होंने मुख्यत: सात प्रकार के सिक्कों को बनवाना शुरू किया, जो आगे चलकर आर्चर, बैकल एक्स, अश्वमेघ, टाइगर स्लेयर, राजा और रानी एवं लयरिस्ट नामों से जाने गए। उन्होंने भले ही बहुत से राज्यों को जीता लेकिन सब तरफ शांति बनाकर रखी। अपने समय में उनके पास सबसे विशाल सेना थी और इस कारण कोई भी उनसे युद्ध करने में घबराता था।
10. राजाराज चोल प्रथम

दक्षिण भारत के राजाराज चोल प्रथम उन शासकों में से एक हैं, जिन्हें हजारों साल बाद भी याद किया जाता है। चोल साम्राज्य के वास्तविक संस्थापक परांतक द्वितीय (सुन्दर चोल) के पुत्र अरिमोलवर्मन, राजाराज चोल प्रथम के नाम से गद्दी पर बैठे थे। कहते हैं कि उनक शासनकाल चोल साम्राज्य का सर्वाधिक गौरवशाली युग है।
वह साम्राज्यवादी शासक थे और अपने अनेक विजयों के परिणामस्वरूप उन्होंने लघुकाय चोल राज्य को एक विशालकाय साम्राज्य में बदल दिया था। उन्होंने न सिर्फ अपने साम्राज्य को बढ़ाया बल्कि उनके शासन काल में बहुत से मंदिरों का भी निर्माण हुआ। उन्होंने दक्षिण में अपना शासन बनाया और अपना प्रभाव श्रीलंका तक फैलाया। हिन्द महासागर के व्यावसायिक समुद्र मार्गों पर चोला वंश का प्रभाव साफ़ तौर पर था और उनकी अनुमति के बिना यहां कोई व्यापार नहीं कर सकता था। उन्होंने 100 से ज्यादा मंदिर बनवाये जिनमें से सबसे उत्तम और ऐतिहासिक है- तंजोर का शिव मंदिर जो UNESCO द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया जा चुका है।
संपादन- जी एन झा
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