MDH मसाले के रंगीन पैकेट, देश के लाखों लोगों की रसोई का सालों से हिस्सा रहे हैं। MDH यानी ‘महाशियान दी हट्टी’ की स्थापना करीब एक सदी पहले, 1919 में अविभाजित भारत के सियालकोट क्षेत्र में चुन्नी लाल गुलाटी (MDH Masala King) द्वारा की गई थी।
साल-दर-साल, छोटे से परिवार के व्यवसाय को करोड़ों की कंपनी में तब्दील करने में गुलाटी ने काफी मेहनत की है। यह व्यवसाय सिर्फ एक चीज का वादा करती है – सुगंधित भारतीय मसालों का एक सही मिश्रण।
President Kovind presents Padma Bhushan to Mahashay Dharampal Gulati for Trade & Industry. He is the Chairman of ‘Mahashian Di Hatti’ (MDH) and an icon in the Indian food industry pic.twitter.com/I109601WsI
— President of India (@rashtrapatibhvn) March 16, 2019
इस कंपनी के 64 प्रोडक्ट बाज़ार में हैं जिसमें मीट मसाला, कसूरी मेथी, गरम मसाला, राजमा मसाला, शाही पनीर मसाला, दाल मखनी मसाला, सब्ज़ी मसाला शामिल हैं। 64 प्रोडक्ट के साथ, इस FMCG कंपनी ने 2017 में 924 करोड़ रुपये का राजस्व कमाया। वे 100 से अधिक देशों में निर्यात करते हैं और 8 लाख खुदरा व्यापारी और 1,000 थोक व्यापारियों के पास इनका सामान जाता है।
गुलाटी ने सड़कों पर फेरी लगाने से लेकर आइने बेचने और बढ़ईगिरी करने तक का काम किया है। गुलाटी के लिए यह कहा जा सकता है कि वह अपने काम और मेहनत से सफल हुए और करोड़पति बने। उन्होंने देश की नब्ज को जल्दी पहचान लिया और तैयार मसालों के साथ एक गृहणी के जीवन को आसान बनाया।
पाँचवी में छोड़ दी पढ़ाई और शुरू हुआ जीवन संघर्ष
गुलाटी का जन्म 1923 में सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम महाशय चुन्नीलाल और माँ का नाम माता चनन देवी था। गुलाटी का बचपन स्कूल, नदी किनारे भैंस चराते, अखाड़ों में कुश्ती लड़ते व दूध बेचने में अपने पिता की मदद करते बीता।
पढ़ाई में उनकी शुरूआत से ही कुछ खास दिलचस्पी नहीं थी। पांचवी क्लास में पहुंचते-पहुंचते गुलाटी ने स्कूल छोड़ दिया और अपने पिता के बिजनेस में हाथ बटाने लगे। उनके पिता आइने बेचा करते थे। बाद में उन्होंने साबुन बेचने का भी काम किया। समय के साथ उन्होंने हार्डवेयर, कपड़े और राइस ट्रेडिंग जैसे अन्य उत्पादों में भी हाथ आजमाया।
किशोरावस्था में मिले इस अनुभव ने भविष्य में गुलाटी की उपभोक्ता-केंद्रित दृष्टि को आकार दिया।
कुछ समय के लिए, इस पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाशियान दी हट्टी के नाम से एक मसाले की दुकान भी खोली, और इसे ‘देगी मिर्च वाले’ के नाम से जाना गया। पर, विभाजन के दौरान, उन्हें अपना सारा सामान छोड़, रातोंरात दिल्ली आना पड़ा।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल से बात करते हुए गुलाटी ने बताया, “7 सितंबर, 1947 को मैं अपने परिवार के साथ अमृतसर के एक शरणार्थी शिविर में पहुंचा। मैं उस समय 23 साल का था। मैं अपने साले के साथ अमृतसर छोड़ कर काम की तलाश में दिल्ली आ गया। हमें लगा कि अमृतसर सीमा, दंगा क्षेत्र के बहुत करीब है। मैं पहले कई बार दिल्ली आया था और मुझे यह भी पता था कि यह पंजाब की तुलना में यह सस्ता था।”
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि जब गुलाटी दिल्ली पहुंचे तो उनकी जेब में केवल 1,500 रुपये थे। उन्होंने 650 रुपये में एक तांगा खरीदा और मात्र दो आना में लोगों को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बारा हिंदू राव तक पहुंचाने का काम करना शुरू किया।
लेकिन गुलाटी को कुछ और करना था। उन्हें यकीन था कि वह अपने मसाला व्यापार में अधिक कमाई कर सकते थे। यह एक ऐसा काम था जिसका उन्हें पहले से ही अनुभव था।
खुद पर यकीन रखते हुए, उन्होंने अपना तांगा बेच दिया और करोल बाग इलाके में अजमल खान रोड पर एक छोटा लकड़ी का खोखा (दुकान) खरीदा। और यहां सियालकोट के महाशियान दी हट्टी, देगी मिर्च वाले का बैनर, फिर से लग गया।
अगले कुछ वर्षों में, उन्होंने और उनके छोटे भाई सतपाल ने लोगों से और लोकल विज्ञापनों से नाम कमाया। भारत में मसालों की बाजार क्षमता का अनुमान लगाते हुए, भाइयों ने खारी बावली जैसे क्षेत्रों में और दुकानें खोलीं।
1953 में उन्होंने दिल्ली में पहला आधुनिक मसाला स्टोर भी खोला था। द हिंदुस्तान टाइम्स के साथ बात करते हुए उन्होंने बताया, “यह दिल्ली में पहला आधुनिक मसाला स्टोर था। दुकान का इंटीरियर प्लान करने के लिए मैं तीन बार बंबई गया।”
सदियों से ऐसी मान्यता चली आ रही थी कि घर पर बनाया जाने वाला मसाला ही शुद्ध होता है। एक ऐसे समय में जब कंज़्यूमरिज़्म शब्द आम नहीं था, ऐसी मान्यता को तोड़ना निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण था।
जैसे-जैसे बिजनेस बढ़ने लगा, गुलाटी ने अपने मसालों को बाकियों से अलग खड़ा करने की आवश्यकता महसूस की और विज्ञापन अभियान पर काफी जोर दिया। वह चाहते थे कि विज्ञापन काफी जीवंत और ऐसा हो जो लोगों का ध्यान आकर्षित कर सके।
उन्होंने कार्डबोर्ड पैकेजिंग का इस्तेमाल करना शुरू किया जिस पर ‘हाइजेनिक, फुल ऑफ़ फ्लेवर और टेस्टी’ शब्द लिखे होते थे। बिना डिग्री या मार्केटिंग टीम वाले व्यक्ति ने पैकेट पर अपना फोटो लगाया। दिलचस्प बात यह है कि आज भी, थोड़े-बहुत बदलाव के साथ पैकेजिंग लगभग वैसी ही है।
इस परोपकारी व्यक्ति ने कभी नहीं सोचा था कि एक सीधा और सरल अभियान इतना बड़ा हो जाएगा कि मूंछ वाले ’दादाजी’ एक ब्रांड बन जाएंगे।
विज्ञापन में अपनी तस्वीर को शामिल करने के पीछे उनकी एक मंशा थी। वह चाहते थे कि ग्राहकों को पता हो कि किससे मसाले खरीद रहे हैं और साथ ही ग्राहकों को साथ विशेष कनेक्शन भी बन सके। उनकी इस सोच ने काम किया।
चेन्नई की रहने वाली एक ग्राहक रोशनी मेहरा याद करते हुए कहती हैं कि बचपन में जब भी उनकी मां बाज़ार से राशन लाने कहती थीं तो वह दुकान पर ‘दादा जी वाला मसाला’ देने के लिए ही कहती थीं। वह बताती हैं आज सालों बाद भी जब सुपरमार्केट में खरीददारी करने जाती हैं तो पहले पैकेट पर फोटो देखती हैं और बाद में नाम।
वहीं, नोएडा के एक डिजिटल मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव सुनील शर्मा का मानना है कि उनके ज़मीन से जुड़े रहने के कारण कंपनी का आकर्षण बना रहा, यह उनके निर्माण के प्रति उनकी निष्ठा और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह कंपनी गुणवत्ता पर भरोसा करती है।
वह यह भी बताते हैं कि गुलाटी ने खुद पर भरोसा करके एक सुरक्षित खेल खेला जैसा कि “सेलिब्रेटी और विवाद साथ-साथ चलते हैं। और यह ब्रांड की छवि को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। उन्होंने खुद पर एक दांव लगाया।”
सालों से मसाले के विज्ञापन में कहा जाता आ रहा है, “असली मसाले सच सच” और वास्तव में निरंतर बेहतरीन गुणवत्ता और स्वाद के साथ इसने अपनी अलग पहचान बनाई है। जबकि गुलाटी ने तकनीकी प्रगति को अपनाया, उन्होंने सुनिश्चित किया कि मसालों का स्वाद और गुणवत्ता समान रहे।
निरंतरता बनाए रखने के लिए, अधिकांश कच्चा माल केरल, कर्नाटक और यहां तक कि अफगानिस्तान और ईरान से आयात किया जाता है।
मिर्च पाउडर, धनिया और कई मसाले ऑटोमेटिक मशीनों में पीसे जाते हैं (जो रोजाना 30 टन का निर्माण कर सकते हैं)। एमडीएच मैन्युफैक्चरिंग प्लांट भारत के कई हिस्सों में मौजूद हैं, जिनमें दिल्ली, नागपुर और अमृतसर शामिल हैं।
उनके पास गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाएं यानी क्वालिटी कंट्रोल लैबोरेट्री भी हैं जो गुणवत्ता मानकों की जांच करती हैं। उनके मसालों में आर्फिशिअल रंग और प्रिज़र्वटिव का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
मुंबई में रहने वाली गृहिणी स्वाति हरसोरा कहती हैं, “मैं पिछले 20 वर्षों से एमडीएच की प्रशंसक रही हूं। मैंने अन्य ब्रांड के मसाले भी इस्तेमाल किए है। अन्य मसाले खाना बनाते समय या धोते समय रंग बहाते हैं। लेकिन एमडीएच में ऐसा नहीं होता है। इसके अलावा, लौंग, सरसों, और करी पत्ते जैसी सामग्री पहले ही एमडीएच तैयार मिश्रण मसालों में मिला दी जाती है, इसलिए मुझे उन्हें अलग से नहीं डालना पड़ता है। ”
आमतौर पर, एक सदी तक कपनियां अपनी जगह बनाए नहीं रख पाती है, खास कर भारत जैसे देश में जहां हर दिन बाज़ार में एक नया प्रोडक्ट और सर्विस आता है।
स्वाद और बाजार की स्थिति को बनाए रखने का प्रयास
एक ऐसे शख्स के लिए जिसने कई क्षेत्रों में कारोबार किया, विभाजन के आघात से गुज़रा और गंभीर वित्तीय संकटों का सामना किया, उसके लिए बाजार में प्रासंगिकता और प्रतिस्पर्धियों से आगे रहना स्वाभाविक रूप से आया था।
भारत और विदेशों में प्रमुखता हासिल करने के बाद, अधिकांश कंपनियां अपने उत्पादों के लिए उच्च मूल्य निर्धारित करती हैं, लेकिन इसने ऐसा नहीं किया। यह अभी भी सस्ती कीमत के अपने मूल सिद्धांत से दूर नहीं हुआ है।
एमडीएच में कार्यकारी उपाध्यक्ष राजिंदर कुमार ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया, “हम बाजार में कीमतें तय करते हैं, जैसा कि प्रतिद्वंद्वी अपनी मूल्य निर्धारण रणनीति बनाने के लिए हमारा अनुसरण करते हैं। हम अपने व्यवसाय को कम मार्जिन पर रखना चाहते हैं और यह समग्र श्रेणी को बढ़ने में मदद करता है।”
उन्होंने आगे कहा कि बदलाव को स्वीकार करने से एमडीएच कभी पीछे नहीं हटा और अब एमडीएच चंकी चाट मसाला, बिरयानी मसाला, अमचूर पाउडर, दहीवाड़ा मसाला, एमडीएच मीट मसाला, रवा फ्राई भरवां सब्जी मसाला जैसे नए स्वाद के साथ बाज़ार में आ रहा है।
एमडीएच महाशय चुन्नी लाल चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के लिए भी प्रतिबद्ध है। इसने पश्चिम दिल्ली में एक 300 बिस्तरों वाला अस्पताल स्थापित किया है जो जरूरतमंदों का मुफ्त में इलाज करता है। इसके अलावा, वेबसाइट के अनुसार, ट्रस्ट छोटे बच्चों के लिए 20 मुफ्त स्कूल भी चलाता है।
वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शुरू किया गया एक छोटा सा काम धीरे-धीरे मसाले के एक बड़ा कारोबार में तब्दील हो गया है जिसके प्रशंसक केवल देश में ही नहीं विदेशों में भी हैं। इस स्वदेशी ब्रांड ने पिछले कुछ वर्षों में भारत के हर घर में प्रवेश किया है और हमारी रसोई में अपनी जगह बना ली है।
गुलाटी की ज़मीन से आसमान तक पहुंचने की कहानी हमारे दिलों में हमेशा ताज़ी रहेगी।
मूल लेख- GOPI KARELIA
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