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सम्राट अशोक: पुराने इतिहासकार मानते थे साधारण शासक, जानिए कैसे दूर हुई गलतफहमी

सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) को कलिंग जीतने से पहले चंडाशोक और कालाशोक जैसे नामों से जाना जाता था। लेकिन, इस युद्ध ने उनके हृदय को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। आगे उन्होंने अपनी धम्म नीति के तहत दुनिया को जो सीख दी, आज वह हमारी सबसे बड़ी पहचान है। पढ़िए यह प्रेरक कहानी!

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Emperor Ashoka

सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) की गिनती इतिहास के सबसे महान शासकों में होती है। वह चंद्र गुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मौर्य वंश के तीसरे राजा थे। उन्होंने 272 ईसा पूर्व, अपने पिता बिंदुसार की मृत्यु के बाद सत्ता संभाली।

प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर अपनी किताब ‘भारत का इतिहास’ में लिखती हैं, “चंद्रगुप्त मौर्य के बाद, उनका बेटा बिंदुसार 298 ईसा पूर्व सिंहासन पर बैठा। यूनानी उन्हें अमिट्रोचेट्स बुलाते थे, जिसका अर्थ है - शत्रुओं का नाश करने वाला। बिंदुसार ने अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के बीच का सारा क्षेत्र जीत लिया था और उपमहाद्वीप में सिर्फ पूर्वी तट पर स्थित कलिंग (अब ओडिशा) को जीतना बाकी रह गया था। इस पर फतह हासिल करना उनके बेटे अशोक का काम था और उन्होंने इसे किया।”

अपने आरंभिक जीवन में अशोक () एक क्रूर राजा थे और उन्हें चंडाशोक और कालाशोक जैसे नामों से जाना जाता था। लेकिन, कलिंग युद्ध के बाद अशोक पश्चाताप की आग में जल रहे थे और उन्होंने युद्ध के भयावह परिणामों को देखते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया।

इतिहासकार समझते थे साधारण राजा (King Ashoka)

पुराने इतिहासकार सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) को मौर्य वंश का एक साधारण राजा समझते थे। लेकिन रोमिला थापर अपनी किताब में लिखती हैं, “1837 में ब्रिटिश अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी में लिखा हुआ एक शिलालेख पढ़ा, जिस पर देवानांपिय पियदस्सी (देवताओं के प्रिय, प्रियदर्शी) नाम के राजा का जिक्र था। यह नाम इतिहास के किसी भी स्रोत से मेल नहीं खाता था और वर्षों तक एक रहस्य बना रहा।” 

Emperor Ashok The Great King With His  Queens
अपने रानियों के साथ सम्राट अशोक

वह आगे लिखती हैं, “फिर, श्रीलंका में बौद्ध विवरणों की जांच के बाद पता चला कि एक महान और उदार मौर्य राजा का जिक्र प्रियदर्शी नाम से किया गया है। इसके बाद, 1915 में एक और शिलालेख मिला, जिसमें लेखक ने खुद को सम्राट अशोक प्रियदर्शी के नाम से अभिव्यक्त किया। इससे साफ हो गया कि यह सम्राट अशोक (Ashoka The Great) का दूसरा नाम था।”

बिंदुसार नहीं करते थे पसंद

अशोक के पास अद्वितीय सैन्य और प्रशासनिक क्षमताएं थी। लेकिन वह महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे। इसी वजह से बिंदुसार उन्हें पसंद नहीं करते थे और उन्हें सत्ता से दूर रखना चाहते थे। 

बिंदुसार, अशोक (Ashoka Dynasty) के बड़े और सौतेले भाई सुसीम को राजा बनाना चाहते थे। लेकिन, सत्ता के लोभ में, अशोक (Emperor Ashoka) ने बिंदुसार के गुजरने के बाद, रास्ते में आने वाले अपने सभी भाइयों की हत्या कर दी। 

कलिंग से युद्ध

कलिंग के पास विशाल सेना थी, लेकिन सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) इसे हर हाल में जीतना चाहते थे। रोमिला थापर बताती हैं कि जमीन और समुद्र, दक्षिण की ओर जाने वाले दोनों रास्तों पर कलिंग का नियंत्रण था। इसलिए मौर्य शासन (Maurya Dynasty) के लिए उसे अपना अंग बनाना जरूरी हो गया। इसीके तहत, अशोक (King Ashoka) ने 260 ईसा पूर्व, कलिंग पर आक्रमण कर दिया। 

इस युद्ध में लाखों लोगों की जान गई। लेकिन, इस युद्ध ने अशोक के हृदय को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया और उन्होंने ‘धम्म’ की नीति अपनाई। 

हालांकि, रोमिला थापर का कहना है कि अशोक ने बौद्ध धर्म (Ashoka Religion) को रातोंरात भले ही अपना लिया हो, लेकिन उनके एक शिलालेख के मुताबिक उन्हें सच्चा अनुयायी बनने में करीब ढाई साल लगे। 

इस विचार के तहत, उन्होंने अहिंसा का मार्ग अपनाया और युद्धों को त्याग दिया (Ashoka History)। 

क्या है धम्म

सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) की धम्म नीति किसी धार्मिक आस्था या व्यवहार के लिए मनमानी नीति नहीं थी। उन्होंने इसे अपनी प्रजा के नैतिक विकास और सामाजिक व्यवस्थाओं को मजबूत करने के लिए अपनाया था। इसके तहत उपदेश दिया गया कि लोग अपने माता-पिता की बात मानें, ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं का सम्मान करें और दासों और सेवक के प्रति दयाभाव दिखाएं। 

इसमें न तो किसी पत्थर पूजा की जरूरत थी और न ही किसी और कर्मकांड की। अशोक ने एक पिता की तरह लोगों को अच्छे व्यवहार को अपनाने के लिए प्रेरित किया। इस नीति को महिला समेत, समाज के सभी हिस्सों में बढ़ावा देने के लिए उन्होंने ‘धम्म समाज’ की शुरुआत की।

सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) ने धम्म के प्रचार के लिए कई शिलालेखों और स्तंभलेखों का निर्माण करवाया। जो पढ़ नहीं सकते थे, उन्हें पढ़कर सुनाने का आदेश दिया गया। इसके अलावा, मध्य एशियाई देशों और श्रीलंका में दूत भी भेजे गए। 

अशोक ने अधिकांश शिलालेखों को ब्राह्मी लिपि में बनवाया। लेकिन भौगोलिक स्थिति को देखते हुए, उन्होंने खरोष्ठी और आरमाहक लिपि का भी प्रयोग किया। 

धम्म नीति

जानकारों का मानना है कि अशोक की धम्म नीति सफल नहीं हुई। कई यह भी मानते हैं कि इस अहिंसावादी नीति ने अशोक की सेना को कायर बना दिया था, जिससे बाहरी शक्तियों के लिए आक्रमण करना आसान हो गया। 

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स्त्रोत

लेकिन, सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) ने धम्म के जरिए मध्य एशिया, यूनान लेकर श्रीलंका तक अपने राजनीतिक प्रभाव को स्थापित किया और गंगा के मैदान और दूसरे क्षेत्रों को एक सूत्र में पिरोया। वहीं, मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण कुछ और था। 

दरअसल, सैनिकों और अधिकारियों के लिए रहन-सहन और नई बस्तियां बसाने के कारण मौर्य साम्राज्य पर आर्थिक संकट काफी बढ़ गया था और खेती से हासिल राजस्व के जरिए राज्य की जरूरतों को पूरा करना आसान नहीं था। नतीजन, शासन-प्रणाली कमजोर होने लगा। 

सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) ने 37 वर्षों तक शासन किया और 232 ईसा पूर्व उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मौत के 50 वर्षों के बाद, उत्तर-पश्चिम क्षेत्र पर यूनानियों ने कब्जा कर लिया। नतीजन, 180 ईसा पूर्व भारत में साम्राज्यवादी शासन का पहला प्रयोग खत्म हो गया।

सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में बनवाए गए स्तंभ को भारत का राष्ट्रीय प्रतीक (National Emblem Of India) माना गया है। अशोक स्तंभ में चार शेर हैं, जो चारों दिशाओं में देख रहे हैं। इसमें एक चक्र (Ashoka Chakra) है, जो संकेत देता है कि धर्म का पहिया लगातार चलता रहे। वहीं, शेर को बुद्ध (Gautam Buddha) का प्रतीक माना गया है। 

सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) ने तलवार के दम पर पूरे भारत को जीता, लेकिन अपने धम्म के जरिए, अपना विजय पताका दूसरे देशों में भी लहराया। उन्होंने हजारों साल पहले, जिस धर्मनिरपेक्ष राज्य की नींव रखी, आज वह हमारे संविधान की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। 

संपादन- जी एन झा

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