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Bodhi Tree: पीपल की वे टहनियां, जिनके जरिए सम्राट अशोक ने दुनिया में किया ‘धम्म' का प्रचार

बोधि वृक्ष वही पेड़ है, जिसके नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतीत में इस पेड़ को मिटाने की कई कोशिशें हुईं, लेकिन 2500 से अधिक वर्षों से यह इंसानी सभ्यता को एक नया अर्थ दे रही है।

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Bodhi Tree

दुनिया में 700 से अधिक तरह के अंजीर के पेड़ (Fig Tree) पाए जाते हैं। अनेकता में एकता के प्रतीक, इस असाधारण पेड़ को इंडोनेशिया और बारबाडोस जैसे देशों में तो राष्ट्रीय चिन्ह का भी हिस्सा माना गया है। हालांकि, इसने सभ्यता की शुरुआत के साथ ही इंसानी सोच को प्रभावित किया है। हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म में इसकी शुरू से ही पूजा होती रही है। बिहार के गया में “बोधि वृक्ष” (Bodhi tree) ऐसा ही एक पेड़ है। बोधि वृक्ष एक पीपल का पेड़ (Sacred Fig) है, जो भारतीय अंजीर प्रजाति में से ही एक है। भारतीय इतिहास में इस पेड़ को काफी पवित्र माना गया है।

बोधि वृक्ष (Bodhi Tree) वही पेड़ है, जिसके नीचे बैठकर 531 ईसा पूर्व सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वे आगे महात्मा बुद्ध के रूप में जाने गए। इतिहास में इस पेड़ को कई बार मिटाने की कोशिश की गई। लेकिन 2500 वर्षों से यह पेड़ दुनिया को शांति और अहिंसा का संदेश दे रहा है।

Bodhi Tree in Bodh Gaya
गया का बोधि वृक्ष (Bodhi tree)

माना जाता है कि बोधि वृक्ष (Bodhi tree) को काटने की सबसे पहली कोशिश सम्राट अशोक की पत्नी तिष्यरक्षिता ने की थी। तिष्यरक्षिता बौद्ध धर्म के खिलाफ थीं और जब सम्राट अशोक दूसरे राज्यों की यात्रा पर थे, तो उन्होंने धोखे से बोधि वृक्ष को कटवा दिया। लेकिन, उनकी यह कोशिश कामयाब नहीं हो पाई और बोधि वृक्ष फिर से उठ खड़ा हुआ।

यह वही बोधि वृक्ष है, जिसकी टहनियों को सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेन्द्र और बेटी संघमित्रा को सौंप कर उन्हें बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा। उन टहनियों को उन्होंने श्रीलंका के अनुराधापुरा में लगाया था, जिससे दुनिया को एक और बोधि वृक्ष मिला। यह पेड़ आज भी वहां मौजूद है और दुनिया को शांति और अहिंसा का पैगाम दे रहा है। 

फिर, करीब 800 वर्षों के बाद, बंगाल के राजा शशांक ने बोधि वृक्ष (Bodhi Tree) को जड़ से खत्म करने की कोशिश की और उसमें आग लगवा दिया। लेकिन वह भी इसे मिटाने में कामयाब न हो सके और कुछ वर्षों के बाद, तीसरी पीढ़ी का बोधिवृक्ष तैयार हो गया।

तीसरी पीढ़ी का बोधि वृक्ष करीब 1250 वर्षों तक रहा है, लेकिन 1876 में आई प्राकृतिक आपदा के दौरान यह नष्ट हो गया। इससे बौद्ध धर्म के अनुयायी काफी निराश थे। लेकिन उन्हें एक अंग्रेज अधिकारी का साथ मिला और बोधि वृक्ष ने फिर से अंगड़ाई ली।

Bodhi tree of Anuradhapura, Sri Lanka
श्रीलंका के अनुराधापुर का बोधि वृक्ष

कहा जाता है कि ब्रिटिश सेना में एक इंजीनियर के रूप में काम कर रहे अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1880 में बोधि वृक्ष को फिर से जीवित करने के लिए, श्रीलंका के अनुराधापुरा से उसी बोधि वृक्ष (Bodhi Tree) की शाखाएं मंगवाई, जिसे संघमित्रा और महेन्द्र ने लगाया था।

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फिर, इस कहानी की सच्चाई को पता लगाने के लिए, 2007 में गया और अनुराधापुरा के बोधि वृक्ष का डीएनए टेस्ट किया गया। इससे यह साबित हो गया कि अनुराधापुरा का वृक्ष, गया के उसी वृक्ष के मूल से निकला है, जिसके नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान हासिल हुआ था। इस तरह, गया में फिलहाल चौथी पीढ़ी का बोधि वृक्ष है।

5वीं सदी में बौद्ध भिक्षु महानाम ने “महावंश” महाकाव्य की रचना बोधि वृक्ष के इर्द-गिर्द ही की है। इस तरह, बोधि वृक्ष (Bodhi Tree) हजारों वर्षों से दुनिया को एक नया अर्थ दे रहा है।

वहीं, बरगद अंजीर प्रजाति का एक अन्य पेड़ है। इसकी उम्र हजारों साल होती है और यह भारतीय संस्कृति और दर्शन का अभिन्न अंग है। बरगद के पेड़ (Banyan Tree) काफी विशाल होते हैं और इंसानी सभ्यता के विकास के साथ इसे जीवन और उन्नति का प्रतीक माना जाने लगा।

Thimmamma Marrimanu Banyan Tree
बरगद का पेड़

बरगद के पेड़ को हिन्दू, बौद्ध और अन्य धर्मों में काफी पवित्र माना गया है। मिथकों में इसे “इच्छा पूर्ति का पेड़” माना गया है। इतना ही नहीं, सदियों से बरगद का पेड़ भारत के गांव-देहात में बसे समुदायों के लिए केंद्र बिन्दु रहा है। 

यह काफी फैलता है और बड़ा हो जाने के बाद, अपने आप में एक जंगल की तरह होता है। बरगद की छांव न सिर्फ राहगीरों को राहत देती है, बल्कि इसके नीचे ग्राम सभाएं भी लगती हैं। यही कारण है कि इसे देश का राष्ट्रीय वृक्ष (Indian National Tree) माना गया है।

संपादन- जी एन झा

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