2 अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष में जाने वाले आइएएफ स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा पहले भारतीय हैं। उन्हें भारत-सोवियत अंतरिक्ष मिशन (Indo-Soviet Space mission) के तहत दो अन्य रुसी साथियों के साथ अंतरिक्ष में भेजा गया था।
3 जनवरी 1949 को पंजाब के पटियाला में जन्मे राकेश शर्मा ने अपनी पढ़ाई हैदराबाद से पूरी की। अर्जुन चक्र से सम्मानित यह अफ़सर 1966 में केवल 18 साल की उम्र में भारतीय वायु सेना में शामिल हुए। इसके चार साल बाद, उन्हें भारतीय वायु सेना में टेस्ट पायलट के तौर पर नियुक्ति मिली। इसके बाद उनकी मेहनत और जुनून के चलते, समय-समय पर उन्हें पदोन्नति मिलती रही।
20 सितंबर 1982 को उन्हें भारत-सोवियत अंतरिक्ष मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्री के तौर पर चुना गया। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद साल 1984 में अंतरिक्ष पर जाने वाले वे 128वें व्यक्ति और पहले भारतीय बने। उनकी अंतरिक्ष यात्रा ने भारत को उन देशों की फ़ेहरिस्त में ला खड़ा किया, जिनके यहाँ से लोग अंतरिक्ष यात्रा पर गये थे।
लगभग 7 दिन, 21 घंटे और 40 मिनट उन्होंने अंतरिक्ष स्टेशन, सलयुत 7 पर बिताए। इस दौरान उन्होंने, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से विडियो कॉल पर भी बात की। उस समय, इंदिरा गाँधी ने उनसे पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है?
इस सवाल के जवाब में राकेश शर्मा ने गर्व से कहा था, “सारे जहाँ से अच्छा!”
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी: भारत कैसा दिखता है?
स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा: सारे जहाँ से अच्छा।Former Prime Minister Indira Gandhi speaks to India’s first astronaut, Squadron Leader Rakesh Sharma in space.#IndependenceDayIndia pic.twitter.com/oq4ZEdWzev
— Know Your Legacy (@INCHistory) August 15, 2018
अपने मिशन के बाद जैसे ही राकेश शर्मा वापिस पृथ्वी पर पहुँचे, तो रातों-रात वे सेलेब्रिटी बन गये। दिन-रात मीडिया से उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया जाने लगा। इसके अलावा, स्कूल-कॉलेज से भी उन्हें लेक्चर देने के निमंत्रण आने लगे। आज भी राकेश शर्मा का नाम सभी भारतीय बहुत ही आदर-सम्मान और गर्व के साथ लेते हैं।
उन्हें रूस ने ‘हीरो ऑफ़ सोवियत यूनियन’ सम्मान से नवाज़ा, तो भारत से उन्हें अर्जुन चक्र मिला। हालांकि, इस सबसे भी बढ़कर एक तोहफ़ा है, जो राकेश को पिछले लगभग 35 सालों से हर साल उनके जन्मदिन, नव वर्ष और अंतरिक्ष यात्रा की सालगिरह पर हर साल मिलता है।
दरअसल, राकेश के अंतरिक्ष से वापिस आने के एक साल बाद, उन्हें अहमदाबाद से एक ख़त आया, जिसे किशन सिंह चौहान ने लिखा था।
किशन सिंह, अहमदाबाद में पान की दूकान चलाते हैं। बचपन में, नील आर्मस्ट्रांग, विक्रम साराभाई के बारे में सुनकर बड़े हुए किशन सिंह को भी हमेशा से अंतरिक्ष विज्ञान में दिलचस्पी थी। लेकिन घर के आर्थिक हालातों के चलते, वे आगे पढ़ नहीं पाए। लेकिन उन्होंने रेडियो पर सुना कि एक भारतीय ने सफल अंतरिक्ष यात्रा की है, तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई और वे खुद को उन्हें पत्र लिखने से रोक नहीं पाए। किशन सिंह के पास उनका पता नहीं था, इसलिए उन्होंने ख़त भारतीय वायु सेना के मुख्य ऑफिस में भेजा था।
कुछ दिनों बाद, जब राकेश को यह ख़त मिला, तो उन्हें पता चला कि किशन सिंह उनके बहुत बड़े फैन हैं। उन्होंने तुरंत उनको ख़त का जवाब लिखकर उनकी बधाई के लिए धन्यवाद किया और साथ ही उन्हें समय-समय पर लिखते रहने के लिए प्रेरित किया।
इसके बाद से, हर साल किशन सिंह उन्हें साल में तीन बार ख़त भेजते हैं, एक उनके जन्मदिन पर, एक नववर्ष पर और एक उनकी अंतरिक्ष यात्रा की सालगिरह यानी कि 2 अप्रैल के लिए। राकेश भी उन्हें जवाब में ख़त लिखते हैं। ख़त लिखने का यह सिलसिला युहीं चलता रहा और साल 2010 में एक दिन अचानक, राकेश शर्मा ख़ास तौर पर किशन सिंह से मिलने अहमदाबाद आये।
किशन ने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें जवाब मिलेगा और इस बात का तो उन्हें सपने में भी ख्याल नहीं आया था कि राकेश शर्मा खुद उनकी पान की दुकान पर आकर उनसे मिलेंगें।
राकेश को अपने सामने देखकर किशन सिंह की आँखे नम हो गयीं। इस ऐतिहासिक मिलन के बावजूद, किशन सिंह ने राकेश को ख़त लिखना कभी नहीं छोड़ा और आज भी उनका ख़त राकेश शर्मा तक बिलकुल समय पर पहुँच जाता है!
किशन सिंह ने अहमदाबाद मिरर को बताया,
“मैं हमेशा 31 मार्च को उन्हें ख़त पोस्ट कर देता हूँ, ताकि उन तक समय पर पहुँच जाये। और आज तक उनका कोई ख़त देरी से नहीं पहुंचा।”
फोटो साभार: अहमदाबाद मिररराकेश के लिए भी यह मुलाक़ात यादगार रही। उन्होंने कहा कि, “और किसी को मेरे अंतरिक्ष यात्रा से आने की तारीख़ याद रहे न रहे, पर मुझे पता है कि यह दिन मुझे और किशन को हमेशा याद रहता है।”
इस तरह की अनमोल और अनोखी दोस्ती विरले ही देखने को मिलती है। राकेश और किशन सिंह का एक-दूसरे के प्रति यह प्यार और सम्मान का रिश्ता, हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है।
संपादन – मानबी कटोच
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