नोएडा में महज़ आठ सेकेंड के अंदर ट्विन टावर ढहा दिया गया। 32 और 29 मंजिला दोनों इमारतें- एपेक्स और सेयान अब पूरी तरह से मलबे में तब्दील हो गई हैं। भ्रष्टाचार के इन ट्विन टॉवर्स को गिराने के पीछे थी 4 वरिष्ठ नागरिकों के एक समूह की न्याय पाने की ज़िद। इन लोगों ने उम्र, भाग-दौड़ और फंड की कमी जैसी परेशानियों को न्याय की अपनी इस लड़ाई के आड़े नहीं आने दिया।
यह कहानी 23 नंवबर 2004 से शुरू हुई। जब नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए के प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया। आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल तक मकान बनाने की अनुमति मिली। दो साल बाद 29 दिसंबर 2006 को अनुमति में संशोधन कर दिया गया। नोएडा अथॉरिटी ने संशोधन करके सुपरटेक को नौ की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दे दी।
इसके बाद अथॉरिटी ने टावर बनने की संख्या में भी इजाफा कर दिया। पहले 14 टावर बनने थे, जिन्हें बढ़ाकर पहले 15 फिर 16 कर दिया गया। 2009 में इसमें फिर से इजाफा किया गया और अथॉरिटी ने 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया। दो मार्च 2012 को टावर 16 और 17 के लिए फिर बदलाव किया गया।
ट्विन टावर पर विवाद कहां से हुआ शुरू?
इस संशोधन के बाद इन दोनों टावर को 40 मंजिल तक करने की अनुमति मिल गई, जिसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। दोनों टावर्स के बीच की दूरी महज़ नौ मीटर रखी गई। जबकि, नियम के मुताबिक दो टावरों के बीच की दूरी कम से कम 16 मीटर होनी चाहिए।
बात यहीं नहीं रुकी, पुराने प्लान के मुताबिक जिस जगह पर ग्रीन पार्क और चिल्ड्रेन पार्क बनना था, वहां फ्लैट्स बेचकर, ज़्यादा मुनाफा कमाने के लिए ट्विन टॉवर्स का निर्माण किया गया। जब फ्लैट खरीददारों ने यहां आना-जाना शुरू किया, तो उन्हें पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है और बस यहीं से शुरू हुई यह लड़ाई।
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चार बुज़ुर्गों, उदय भान सिंह तेवतिया (80), एस के शर्मा (74), रवि बजाज (65) और स्वर्गीय एम.के. जैन (59) ने सुपरटेक द्वारा ट्विन टावर के निर्माण के नियमों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज़ उठाई और निर्माणकर्ता Supertech के खिलाफ Allahabad High Court में याचिका दाखिल की।
और सुना दिया गया ट्विन टावर के विध्वंस का फरमान
प्लैट खरीददारों और सुपरटेक के बीच चली लंबी लड़ाई के बाद, 2014 में Allahabad High Court ने इसे गिराने का ऑर्डर दिया। लेकिन Supertech ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चैलेंज किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में भी सुपरटेक को मुंह की खानी पड़ी।
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों के अधिकारों और गैरकानूनी तरीके से हुए निर्माण को मद्दे नज़र रखते हुए इन टॉवर्स को गिराने का आदेश जारी किया, जिसका सारा खर्च सुपरटेक कंपनी को उठाना पड़ा। साथ ही, नागरिकों को हुई परेशानियों के लिए Supertech कंपनी को Resident Welfare Fund में 2 करोड़ रुपए जमा करने का भी आदेश दिया गया। कोर्ट का यह फैसला नागरिकों के अधिकारों की जीत थी।
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