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फोटो: Wikimedia Commons
आज जब भी किसी की शादी होती है तो हम सबसे पहले पूछते हैं कि कपड़े किससे डिज़ाइन करा रहे हो, कैटरिंग कौन देख रहा है या फिर हनीमून के लिए कहाँ जा रहे हो। आजकल डेस्टिनेशन शादियों का भी चलन है जिसमें लाखों रूपये खर्च हो जाते हैं पर फिर भी यह सब करके हमें संतुष्टि मिलती हैं क्योंकि हम सब अपनी ज़िन्दगी के इस ख़ास दिन को बहुत ख़ास तरीके से मनाना चाहते हैं।
पर कई ऐसे जोड़े हैं जिन्होंने अपनी शादी को ख़ास से भी बहुत ख़ास बनाया हैं पर लाखों रूपये खर्च करके नहीं बल्कि अपनी अलग सोच से लोगों की ज़िंदगियां बदलकर!
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अपनी ज़िन्दगी के सबसे ख़ूबसूरत पल को और भी ख़ूबसूरत बनाने ले लिए उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से ताल्लुक रखने वाले तपन पांडे ने जो किया वह वाकई काबिल-ए-तारीफ़ है। तपन ने अपनी पत्नी अंजलि मिश्रा के साथ अपने जीवन का नया अध्याय शुरू करने के मौके पर बहुत ही विशिष्ट अतिथियों को बुलाया। यह मेहमान और कोई नहीं बल्कि अनाथ और दिव्यांग बच्चे थे।
अपने विवाह के मौके पर तपन ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों के समक्ष अपने नेत्रदान की शपथ भी ली।
दहेज प्रथा की बंदिशों को तोड़ते हुए उन्होंने अपने ससुराल वालों को दहेज की जगह पाँच पौधे देने के लिए कहा।
अपने विवाह के मौके पर कुछ अलग कर उदाहरण बनाने वाले सिर्फ तपन नहीं हैं बल्कि और भी कई लोग हैं जिन्होंने अपनी शादी को न केवल अपने लिए बल्कि औरों के लिए भी ख़ास बनाया।
एक सिंगल पिता जिसने पहले एक दिव्यांग बच्चे को गोद लेने के लिए संघर्ष किया और फिर अपनी शादी में भी एक बदलाव की मुहीम शुरू की
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1 जून, 2016 को पुणे के आदित्य तिवारी भारत में बच्चा गोद लेने वाले सबसे कम उम्र के सिंगल पिता बने। उन्होंने बिन्नी नाम की एक बच्चे (जो की डाउन सिंड्रोम से ग्रसित है) को गोद लिया। भारत में बच्चा गोद लेने के कानून और नियमों में बदलाव लाने के लिए उन्होंने दो साल तक कठिन लड़ाई लड़ी। उनकी पूरी कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करे।
इसके बाद वो फिर एक बार अपनी शादी के लिए चर्चा में रहे। क्योंकि उनकी शादी के रिसेप्शन में मेहमान थें 10,000 बेघर, बुजुर्ग और अनाथ बच्चे थे। इसके अलावा आस-पास के लगभग 1000 जानवरों को भी खाना खिलाया गया। साथ ही लगभग 1000 पौधे भी उन्होंने लगाए।
एक मलयाली दुल्हन जिसने मेहर में केवल 50 किताबों की मांग की!
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पोलिटिकल साइंस में पोस्ट-ग्रेजुएशन कर चुकी केरल की सहला नेचियिल ने अपने निकाह में बहुत ही अलग तरीके से मेहर के रिवाज़ का अनुसरण किया। महंगे कपड़े-गहने या फिर पैसों की बजाय उन्होंने अपने पति से सिर्फ 50 किताबें मेहर के तौर पर मांगी।
एक पिता जिन्होंने अपने बेटे की शादी में 18,000 विधवाओं को न्यौता भेजा!
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सदियों से किसी भी ख़ुशी के मौके पर विधवाओं का आना अपशगुन माना जाता है। और शादी जैसे अवसर पर तो कोई इनका चेहरा भी देखना ठीक नहीं समझता। इस अंधविश्वास के चलते न जाने कितनी ही विधवा औरतों को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। पर एक व्यक्ति ने इस रूढ़िवादी विचारधारा को चुनौती देते हुए वो किया जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था।
गुजरात के व्यवसायी जितेंद्र पटेल ने अपने बेटे की शादी के अवसर पर 18,000 विधवाओं को निमंत्रित किया। इन औरतों ने उनके बेटे और बहु को आशीर्वाद के साथ-साथ बहुत सी शुभकामनायें भी दी। पटेल भाई ने इन औरतों को उपहार स्वरुप कम्बल और पौधे दिए। गरीब परिवारों से आनेवाली 500 से भी अधिक विधवाओं को दुधारू गाय प्रदान की गयी ताकि वे अपनी आजीविका कमा सके।
एक और पिता जिन्होंने अपने बेटे की शादी में पैसे बचाकर 100 लड़कियों के सामूहिक विवाह के लिए दान में दिए!
एक और गुजरती व्यवसायी ने धूम-धड़क वाली शादी छोड़ अपने बेटे का विवाह सामान्य तरीके से किया। गोपाल वस्तापारा ने अपने बेटे की शादी से बचाये सभी पैसों को गरीब परिवारों की 100 लड़कियों के सामूहिक विवाह में लगाया।
सामूहिक विवाह में सम्मिलित सभी जोड़ों ने न केवल कन्या भ्रूण की रक्षा का वचन लिया बल्कि अपने विवाह के अवसर पर पर्यावरण के लिए काम करने की भी शपथ ली।
सूरत के 258 दूल्हे अपनी शादी में साइकिल पर गए ताकि यातायात और प्रदूषण के लिए लोगों में जागरूकता फैलाएं
लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सूरत शहर के 258 दूल्हे अपने समुदाय और परिवार के लोगों के साथ कार या घोड़े पर बैठकर नहीं बल्कि साइकिल पर बरात लेकर गए। उनका उद्देश्य लोगों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न करना था।
वह आईआरएस जोड़ा जिन्होंने अपनी शादी के पैसे आत्महत्या करने वाले किसानों के बच्चों की पढ़ाई के लिए दान दिए
आईआरएस जोड़ा, अभय देवरे और प्रीति कुम्भारे ने अपनी शादी में खर्च होने वाले पैसों को आत्महत्या करने वाले किसानो के बच्चों की पढ़ाई में लगाया। यह ऐसे 10 किसान परिवार थें, जिनमें किसान पिता ही एकमात्र आजीविका का सहारा था और कर्ज के चलते जिसने आत्महत्या कर ली। प्रत्येक परिवार को इस जोड़े ने 20,000 रूपये दान में दिए। इसके अलावा इन्होनें अमरावती के पुस्तकालयों में भी लगभग 52,000 रूपये की किताबें दान में दी।
यह सभी लोग प्रेरणा हैं हमारे समाज और युवा पीढ़ी के लिए। यह छोटे पर मजबूत और अहम् कदम ही समाज में फैली कुरूतियों को खत्म करने में सहायक होंगे। हम उम्मीद करते हैं कि ये कहानियां और भी लोगों को प्रेरित करें समाज में परिवर्तन लाने के लिए।
( संपादन - मानबी कटोच )
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