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इंजीनयरिंग छोड़ बने किसान, बिजली की समस्या हल कर, बदल दी पूरे गाँव की तस्वीर

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हम अपने जीवन में अक्सर सुनते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है और इसे वास्तव में चरितार्थ किया है पुणे के न्हावरे गाँव के रहने वाले 49 वर्षीय गीताराम कदम ने। 

गीताराम का गाँव कभी बिजली की भीषण समस्या से जूझ रहा था और यहाँ सिर्फ रात के 11 बजे से लेकर सुबह के 7 बजे तक बिजली रहती थी। इससे करीब 7,500 आबादी वाले इस गाँव में खेती करना लगभग नामुमकिन हो गया।

लेकिन, पेशे से एक मैकेनिकल इंजीनियर गीताराम ने इस चुनौती से निपटने की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाया और वह इस भीषण समस्या के लिए अभिनव उपाय कर के ही माने।

किसानों की दुर्दशा

गीताराम ने जैविक खेती करने की उम्मीद के साथ, साल 2016 में यहाँ 12 एकड़ जमीन खरीदी। लेकिन, खराब बिजली की आपूर्ति ने उनके सपनों को तोड़ दिया।

लोगों को अपने उपकरणों के बारे में जानकारी देते गीताराम

इस कड़ी में उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “यहाँ 8 घंटे बिजली का वादा किया गया था। इसके बावजूद यहाँ केवल 230 वोल्ट के साथ एक फेज बिजली दिया गया था। जबकि, दूसरा फेज 105 वोल्ट तक सीमित था। इससे मोटर पंप को काफी नुकसान होता है।”

पूर्व में यूएस के एक विंडमिल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के प्रोजेक्ट हेड रह चुके गीताराम कहते हैं, “कोई किसान रातों को जागकर खेती कैसे कर सकता है? इस विषय में मैंने क्षेत्र के कई किसानों से बात किया। सभी एक ही चुनौती का सामना कर रहे थे। इससे कई उम्रदराज किसानों का सेहत भी खराब रहने लगा और अधिकांश युवा बेहतर मौके की तलाश में शहरों की ओर बढ़ने लगे।”

वह कहते हैं कि क्षेत्र में जलसंकट के कारण, यहाँ खेती आसान नहीं है। यदि यहाँ धनिया, मेथी या प्याज लगाए जाते हैं, तो बिना पानी या बेमौसम बारिश के कारण, फसल खराब हो जाते हैं।

अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल

इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए गीताराम ने बिजली में सुधार के लिए संबंधित विभाग से कोई उम्मीद न रखते हुए, कुछ अभिनव प्रयास करने का फैसला किया और इसमें उन्हें अपने 26 वर्षों के कार्य अनुभव से काफी मदद मिली।

वह कहते हैं, “मैंने विंडमिल के साथ सोलर प्लांट लगाने का भी फैसला किया। क्योंकि, यहाँ मई और अक्टूबर के बीच काफी अच्छी हवा चलती है, जबकि बाकि के महीनों में तेज धूप होती है। इस तरह हमें सालों भर बिजली की अबाध आपूर्ति सुनिश्चिचत हुई।”

वह आगे कहते हैं, “मेरे एक अमेरिकी दोस्त हैं, जॉर्ज। उन्होंने इसके लिए मुझसे तकनीकी ज्ञान साझा किया। हमने मैग्नेट, तांबा और अन्य सभी संसाधनों को जुटाकर इसे मूर्त रूप दिया। इस दौरान मुझे उनका पूरा साथ मिला।”

इसके अलावा, उन्होंने औरंगाबाद, पुणे, बीड और कोल्हापुर के इंजीनियरिंग कॉलेजों से कई छात्रों को भी अपने पास बुलाया और परियोजना पर काम शुरू करने से पहले उन्हें 10 दिनों की ट्रेनिंग दी।

इस तरह, एक हफ्ते में गीताराम का 3 केबी का विंडमिल तैयार हो गया। इसमें उन्हें 3.5 लाख रुपये की लागत आई।

इसके कुछ हफ्तों के बाद, उन्होंने 2.5 लाख रुपए की लागत से अपना 2 केबी का सोलर पैनल भी स्थापित कर लिया।

इस कड़ी में वह कहते हैं, “इस प्लांट की सबसे खास बात यह कि ऊर्जा को संग्रहित करने के लिए इसमें कोई बैटरी नहीं लगाई गई है। इस तरह, विंडमिल और सोलर प्लांट से हमें सीधे अल्टरनेटिंग करंट मिलता है।”

अपने दो प्रयासों को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद, गीताराम अब एक संतुष्ट और स्वतंत्र किसान हैं। फिलहाल वह फल और सब्जी की खेती करते हैं और उसे प्रोसेस कर बाजार में बेहतर दाम पर बेचते हैं।

गीताराम कहते हैं कि उनके लिए अक्षय ऊर्जा को अपनाना एकमात्र विकल्प था।

“डीजल जेनरेटर का इस्तेमाल करने से काफी प्रदूषण होता है और यह खर्चीला भी होता है। जबकि, अक्षय ऊर्जा को लेकर अपने देश में अपार संभावनाएं हैं। किसानों को इस दिशा में तेजी से बढ़ना चाहिए। इससे जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से भी लड़ने में मदद मिलेगी,”  वह कहते हैं।

गीताराम अभी तक क्षेत्र के छह और किसानों को विंडमिल लगाने में मदद कर चुके हैं।

वह कहते हैं, “फिलहाल, हम इन संयंत्रों की दक्षता का परीक्षण कर रहे हैं। साथ ही, किसानों की आर्थिक मदद के लिए सरकारी अनुदान का लाभ लेने की तैयारी चल रही है।”

दूसरे किसानों की मदद के लिए छोड़ी नौकरी

एक नए आगाज के लिए दिसंबर, 2020 में अपनी नौकरी छोड़ने वाले किसान कहते हैं, “मैंने अपनी नौकरी ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए छोड़ी। मैं लहसुन, अदरक, मेथी, हल्दी, धनिया और मोरिंगा की खेती करता हूँ। हम इन्हें कच्चा बेचने के बजाय, इसे सूखा कर बेचते हैं, जिससे हमें बेहतर दाम मिलते हैं।

अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल कर, पूरे गाँव को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ गीताराम ने अपने गाँव की 450 महिलाओं को भी खुद की तरह, खेती करने की सीख दी है।

वह कहते हैं, “ये महिलाएं कंपनी की जरूरत के हिसाब से अपने 70 प्रतिशत उत्पादों को सूखाते हैं। जिससे उन्हें 40 प्रतिशत तक अधिक लाभ होता है। इस तरह, मैं किसानों को आत्मनिर्भर बना रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि किसान खेती के नए तरीकों को आत्मसात कर, अपने उत्पादों को मूल्यवर्धित करें। इस तरह किसान, अधिक से अधिक लाभ कमा सकते हैं और दूसरों के समक्ष एक उदाहरण पेश कर सकते हैं।”

वीडियो देखें – 

मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE

संपादन: जी. एन. झा

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