भारत हमेशा से ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयास करता रहा है। हालांकि यह तभी संभव है जब हम कोयले से उत्पादित होने वाली ऊर्जा से ज्यादा नवीकरणीय स्त्रोतों से मिलने वाली ऊर्जा पर निर्भर करें।
भारत सरकार का उद्देश्य है कि साल 2022 तक 175 गीगावाट ऊर्जा नवीकरणीय स्त्रोतों से मिलें, जिसमें से 100 गीगा वाट सोलर ऊर्जा का लक्ष्य है। अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा कई अहम कदम उठाए जा रहे हैं। कई राज्यों में छोटे-बड़े सोलर पार्क स्थापित किए गए हैं और इसके साथ ही रूफटॉप सोलर एनर्जी को बढ़ाने की कोशिशें जारी हैं।
इसी क्रम में एक और बड़े सोलर प्रोजेक्ट का नाम शामिल हुआ है और वह है ‘रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर पॉवर प्रोजेक्ट।’ 750 मेगावाट की क्षमता वाले इस प्रोजेक्ट से भारत ने कई अहम मुकाम हासिल किए हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि इस प्रोजेक्ट की सफलता ने भारत को सौर ऊर्जा के मामले में कई विकसित देशों के बीच ला खड़ा किया है। इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी सराहना मिली है।
इस प्रोजेक्ट के बारे में द बेटर इंडिया से बात करते हुए ‘रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड’ के चेयरमैन, आईएएस मनु श्रीवास्तव ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की वजह से साल 2022 के अंत तक मध्यप्रदेश देश की नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में लगभग 7% तक की हिस्सेदारी दे पाएगा।
उन्होंने आगे बताया, “देश के सामने सबसे बड़ी समस्या हमेशा से यही रही कि सौर ऊर्जा, कोयले से बनने वाली ऊर्जा के मामले में काफी महंगी पड़ती थी। साथ ही, सरकार का नियम है कि सोलर प्लांट से बनने वाली बिजली हर एक बिजली वितरण करने वाली कंपनियों को खरीदनी होती है। यह बिजली कोयले के मुकाबले कंपनियों को महँगी पड़ती है क्योंकि भारत में सोलर एनर्जी अब तक लगभग 5 रुपये प्रति यूनिट की दर से मिलती आई है। लेकिन रीवा के सोलर प्रोजेक्ट ने इस तस्वीर को अब बिल्कुल बड़ा दिया है। इसलिए ही यह देश के लिए बहुत अहम प्रोजेक्ट बनकर उभरा है।”
क्या है रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर पॉवर प्रोजेक्ट की खासियत:
1. एशिया के सबसे बड़े सोलर प्रोजेक्ट्स में से एक:
लगभग 1,590 एकड़ में फैला यह सोलर पार्क एशिया के सबसे बड़े सिंगल साईट यानी की एक ही जगह पर स्थित सोलर प्रोजेक्ट्स में से एक है। मनु श्रीवास्तव बताते हैं कि साल 2015 में इस प्रोजेक्ट के लिए कैबिनेट से मंजूरी मिली थी। इसके बाद, साल 2016 में ‘रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड’ का गठन हुआ था। मनु श्रीवास्तव को इस प्रोजेक्ट का चेयरमैन बनाया गया था।
इससे पहले, देश के किसी भी सोलर प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी नैशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन (NTPC) या फिर सोलर एनर्जी कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (SECI) कंपनी की होती थी। लेकिन रीवा प्रोजेक्ट के लिए इन दोनों कंपनियों के बीच एक जॉइंट वेंचर हुआ, जिसका नाम ‘रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड’ है। इस वेंचर की खासियत यह रही की बिना किसी इंफ्रास्ट्रक्चर और परमानेंट स्टाफ के उन्होंने प्रोजेक्ट पर काम किया और इसे सफल बनाया।
“हमने ऊर्जा क्षेत्र में कार्यरत अलग-अलग विभागों से लोग लेकर एक टीम बनाई और इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। सबसे पहले ज़मीन का चयन किया गया और फिर सोलर पार्क के इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया गया। हमारा उद्देश्य बहुत ही स्पष्ट था कि सरकार का खर्च बढ़ाये बिना, इन्वेस्टर की मदद से इस पूरे प्रोजेक्ट को करना, जिसमें हम सफल भी रहे,” उन्होंने आगे बताया।
2. पहली बार 3 रुपये प्रति यूनिट से कम हुआ टैरिफ:
श्रीवास्तव ने बताया कि इससे पहले जो भी सोलर प्लांट भारत में बने हैं, बहुत कोशिश करने पर भी उनका टैरिफ मुश्किल से 4. 50 रुपये प्रति यूनिट तक आया। लेकिन इस बार, बिडिंग की प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिक हुई और एकदम ट्रांसपेरेंट भी। 33 घंटे तक चली इस प्रक्रिया में 20 कंपनियों ने भाग लिया और पहली बार अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने भी किसी राज्य की बिडिंग प्रक्रिया में भाग लिया। अंत में, तीन कंपनियों ने बिडिंग जीती और इस प्लांट के लिए ऊर्जा का टैरिफ प्रति यूनिट मात्र 2. 97 रुपये रहा।
यह लगभग उतना ही है जितना कि कोयले से उत्पादित बिजली का होता है। देश में पहली बार सौर ऊर्जा का टेरिफ इतना कम आया और वह भी बिना किसी सब्सिडी के।
3. दिल्ली मेट्रो हुई ‘ग्रीन मेट्रो’
“पहले सोलर प्लांट से सिर्फ डिस्कॉम यानी की बिजली वितरण करने वाली कंपनियों को ही बिजली दी जाती थीं। लेकिन पहली बार, रीवा सोलर प्लांट से दिल्ली मेट्रो को बिजली सप्लाई की जा रही है। साल 2019 से ही दिल्ली मेट्रो को रीवा सोलर प्लांट बिजली सप्लाई कर रहा है,” उन्होंने आगे कहा।
रीवा सोलर प्लांट में उत्पादित बिजली का 24% दिल्ली मेट्रो और बाकी 76% मध्य प्रदेश उर्जा विकास निगम लिमिटेड को मिल रहा है। दिल्ली मेट्रो की लगभग 60% ऊर्जा की खपत की आपूर्ति सौर ऊर्जा से हो रही है। इसका मतलब है दिल्ली मेट्रो की 290 ट्रेन सौर ऊर्जा से चल रही हैं। इससे दिल्ली की न सिर्फ कोयले पर निर्भरता कम हुई है बल्कि आने वाले 25 सालों में दिल्ली मेट्रो अपने बिजली बिल में लगभग 793 करोड़ रुपये की बचत करने में भी सफल रहेगी।
सबसे अच्छी बात यह है कि ऊर्जा की शेड्यूलिंग इस तरह से की गई है कि अगर कभी मौसम की वजह से सोलर पार्क में ज्यादा बिजली उत्पादन न भी हो तब भी दिल्ली मेट्रो को बिजली मिलती रहेगी। दिल्ली मेट्रो के अलावा, रीवा सोलर प्लांट से बिजली खरीदने वाली डिस्कॉम कंपनियों को भी आने वाले सालों में लगभग 4600 करोड़ रुपये की बचत होगी।
4. वर्ल्ड बैंक का मिला साथ:
750 मेगा वाट का यह प्लांट वर्ल्ड बैंक से मिले लोन और क्लीन टेक्नोलॉजी फंड की मदद से पूरा हुआ है। भारत में यह पहला प्रोजेक्ट है जिसे क्लीन टेक्नोलॉजी फंड मिला है और वर्ल्ड बैंक द्वारा सपोर्ट किए जाने वाला भी यह भारत का पहला सोलर पार्क है। इस प्रोजेक्ट के लिए वर्ल्ड बैंक की टास्क टीम लीडर और सीनियर एनर्जी स्पेशलिस्ट सुरभि गोयल ने कहा कि रीवा सोलर प्रोजेक्ट में वर्ल्ड बैंक की फंडिंग से बाज़ार का भारत के सोलर सेक्टर में इन्वेस्ट करने का आत्मविश्वास बढ़ा है। इस सोलर पार्क ने कमर्शियल फंडिंग को बढ़ाया और इससे सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के लक्ष्य को बल भी मिला है।
रीवा सोलर प्रोजेक्ट को वर्ल्ड बैंक ग्रुप के प्रेसिडेंट अवॉर्ड से नवाज़ा गया है और अब वर्ल्ड बैंक मध्य-प्रदेश और ओडिशा में भी इस तरह के दूसरे प्रोजेक्ट्स को सपोर्ट करने के लिए तैयार है।
5. पर्यावरण के लिए अहम कदम:
जब भी हम सोलर की बात करते हैं तो पर्यावरण का ख्याल अपने आप आ जाता है। सबसे अच्छी बात यही है कि सोलर एनर्जी के ज़रिए हम अर्थव्यवस्था और पर्यावरण, दोनों को आमने-सामने नहीं बल्कि साथ में रखकर आगे बढ़ सकते हैं। श्रीवास्तव कहते हैं कि रीवा प्रोजेक्ट की वजह से हर साल ग्रीनहाउस गैस एमिशन लगभग 1. 32 मिलियन टन तक कम होगा। इसके साथ ही, इस एक प्रोजेक्ट ने मध्यप्रदेश राज्य की सौर क्षमता को दुगुना कर दिया है।
भारत की अब तक कुल सौर ऊर्जा क्षमता में इस प्रोजेक्ट से लगभग 2. 5% तक का इजाफा हुआ है।
इस तरह से रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर पॉवर प्रोजेक्ट न सिर्फ भारत के लिए बल्कि दूसरे देशों के लिए भी एक उदाहरण बन चुका है। इस प्रोजेक्ट के बारे में मनु श्रीवास्तव अंत में बस इतना कहते हैं, “हम दो बातों पर चलते हैं, एक कोई चीज़ हमारे दिल के करीब हो और दूसरा, इससे हमारी आजीविका चलती रहे। अब अगर आप यह कहें कि हमें सिर्फ पर्यावरण के बारे में सोचना चाहिए तो अर्थव्यवस्था पर असर होगा और अगर हम अर्थव्यवस्था के चक्कर में पर्यावरण को भूल जाएं तो हमारा अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। लेकिन सोलर ऐसी चीज़ है, जो हमारे मूल्यों और हमारी अर्थव्यवस्था, दोनों के लिए सही है। इसलिए कोशिश यही है कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़े।”
रीवा सोलर प्रोजेक्ट ने देश के लिए एक मिसाल कायम की है और उम्मीद है कि भावी सोलर पॉवर प्रोजेक्ट्स को भी इसी तर्ज पर आगे बढ़ाया जाएगा।
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