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कोच विनोद अपने छात्रों के साथ
हरियाणा हमेशा से खेलों में आगे रहा है। लेकिन हम अभी भी हरियाणा को फुटबॉल का हब नहीं कह सकते। पर अब लगने लगा है कि हरियाणा के एक गांव सादलपुर की आठ लड़कियों की कहानी शायद इस तथ्य को बदल दे।
दरअसल, भूटान में दक्षिण एशियाई फुटबॉल फेडरेशन (एसएएफएफ) द्वारा आयोजित महिला कप का अंडर-15 टूर्नामेंट 9 अगस्त से शुरू होने वाला है। भारत से इस टूर्नामेंट के लिए जाने वाली टीम में इन आठ लड़कियों ने भी अपनी जगह बनाई है।
इन आठ लड़कियों के नाम हैं- मनीषा, अंजू, रितु, कविता, पूनम, किरण, निशा और वर्षा। एक विश्वविद्यालय-स्तरीय पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी विनोद लॉयल ने कहा, "पिछले दो सालों से, हमारी लड़कियां भारत टीम में जगह बना रही हैं, लेकिन एक ही गांव से इतने खिलाड़ियों का मिलना बड़ी उपलब्धि है।"
विनोद ही इन लड़कियों के कोच भी हैं। इस टीम की अंजू के पिता एक ड्राइवर हैं। अंजू स्ट्राइकर है और पिछले महीने सब-जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में उसने 18 गोल किये थे। गोलकीपर मनीषा के पिता मजदूर हैं और कविता के पिता की मौत बहुत पहले हो गयी थी। इसलिए उसकी माँ ही खेतों में मजदूरी करके घर चलाती हैं।
बाकी लड़कियां भी किसान परिवारों से हैं। अंजू बताती हैं, "घर की आर्थिक स्थिति की वजह से मेरे पिता नहीं चाहते थे कि मैं खेलूं और मेरे दोनों भाई भी फुटबॉल खेलते हैं। लेकिन विनोद सर के कहने पर उन्होंने मेरा खेल जारी रखा।"
पिछले साल तक सादलपुर के कब्रिस्तान में विनोद इन लड़कियों को ट्रेनिंग देते थे। जिस दिन किसी की मौत हो जाती, तो ट्रेनिंग नहीं होती। सादलपुर गांव में बिश्नोई समाज के लोग हैं। उनके यहां किसीकी मौत होने पर उसे दफनाया जाता है।
विनोद के लिए गांव की लड़कियों को फुटबॉल सिखाना आसान नहीं रहा। उन्हें लगभग 1 साल लगा गांव के लोगों को मनाने में ताकी वे अपनी बेटियों को फुटबॉल खेलने दें।
लेकिन जब से इन सभी लड़कियों ने खेल में अपनी पहचान बनाना शुरू किया है तो गांववाले भी लड़कियों और इनके खेल की कदर करने लगे हैं। साल 2014 में पंचायत ने विनोद को ट्रेनिंग के लिए एक जगह भी दे दी। जहां पिछले साल उन्होंने अपना सेंटर खोला।
लेकिन यह सेंटर सादलपुर गांव से लगभग 13 किलोमीटर दूर है। पर फिर भी इन लड़कियों के हौंसले में कोई कमी नहीं आयी। वे हर रोज लगभग 26 किलोमीटर साइकिल चलाकर ट्रेनिंग के लिए आती-जाती हैं।
शुरू-शुरू में गांववालों को लड़कियों के टी-शर्ट और निक्कर पहनकर खेलने से आपत्ति थी। बहुत से परिवार इसके लिए तैयार नहीं थे। लेकिन जब से इन्होने अंडर-14 नेशनल स्कूल चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज़ मेडल जीता है तब से गांव में भी लोग इनका समर्थन करने लगे हैं।
अब जब भी ये लड़कियां कोई खेल जीतकर वापिस जाती हैं, तो सभी गांववाले पुरे जोश और उत्साह से इनका स्वागत करते हैं। हमें उम्मीद हैं कि ये लड़कियां भूटान में भी जीत का परचम लहरा कर आएँगी।
संपादन - मानबी कटोच