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शादी में खाने की बर्बादी होते देख रात भर सो नहीं पाया यह शख़्स, शुरू की अनोखी पहल!

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शादी में खाने की बर्बादी होते देख रात भर सो नहीं पाया यह शख़्स, शुरू की अनोखी पहल!

म सब जानते हैं कि जहाँ एक तरफ़ न जाने कितने लोगों को भरपेट दो वक़्त का खाना भी नहीं मिलता वहीं दूसरी तरफ़ किसी पार्टी या फिर विवाह-उत्सव में न जाने कितने टन खाना बर्बाद होता है। यह समस्या भारत में सदियों से चली आ रही है। इसके लिए कई अभियान भी चल रहे हैं पर फिर भी हम खाना फेंकने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।

पर हरियाणा के इस एक शख़्स ने इस बारे में इतना सोचा कि वह रातों को सो नहीं पाया। उसे तब तक चैन नहीं मिला जब तक उसने इस समस्या को हल करने के लिए एक पहल शुरू न कर दी।

शुरूआत में वह अकेले थे मगर अब उनके साथ पूरा कारवां जुड़ चुका है। भोजन के दाने-दाने की अहमियत को समझने वाले इस वकील की पहल ऐसी रंग लाई की अब हरियाणा के सिरसा शहर में शायद ही कोई भूखा सोता हो। हम बात कर रहे हैं एड्वोकेट भुवन भास्कर खेमका की।

उन्होंने एक साक्षात्कार के दौरान बताया, "मैं निजी पैलेस में आयोजित शादी समारोह में गया था। शादी में आए लोग प्लेट भरकर पकवान ले रहे थे। इसके बाद आधे पकवान प्लेट में बचे होने के बाद भी डस्टबिन में डाल रहे थे। शादी से लौटने के बाद ऐसे समारोहों में होने वाली भोजन की बर्बादी की घटना ने रातभर मुझे सोने नहीं दिया। इसके बाद मैंने लोगों को जागरूक करने का फैसला लिया।"

उन्होंने साल 2010 में इसके लिए श्री राम भोजन बचाओ संस्था' शुरू की। धीरे-धीरे इस संस्था से अन्य लोगों को जोड़ा गया और जो भी इससे जुड़ता उससे पांच रुपये लिए जाते। जिसे संस्था द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिए खर्च किया जाता रहा। फिर राशि बढ़ाकर सदस्यों से 50, 100, 200, 500 व 1000 रुपये प्रतिमाह एकत्रित करने लगे।

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उन्होंने लोगों से जुड़कर उन्हें जागरूक करना शुरू किया। अब लोग भी उन्हें अपने यहाँ उत्सव या किसी कार्यक्रम की जानकारी पहले से दे देते हैं।

आज इस संस्था में लगभग 300 सदस्य हैं, जो किसी भी उत्सव के बाद वहां बचा हुआ खाना इकट्ठा करने पहुंच जाते हैं। इस खाने को जरुरतमंदों में बाँट दिया जाता है। संस्था के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी है कि एक आदमी को अवश्य जागरूक करें। इसकी सफलता इसी में है कि इस अभियान की शुरुआत घर से करें।

खेमका कहते हैं कि लाखों रुपये का अन्न प्रतिदिन बर्बाद होता है, जिसको बचाकर हम कई घरों में चूल्हा जला सकते हैं, लाखों बच्चों को पढ़ा सकते हैं, गरीबों का इलाज करा सकते हैं, नेत्रों में ज्योति प्रदान कर सकते हैं।

उनका और उनकी संस्था का नारा है, 'उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाये नाली में'! इस नारे के साथ उनके सन्देश के पोस्टर आपको शहर भर में लगे दिखेंगे।


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