किसी ने बिल्कुल सही ही कहा है कि उम्र महज़ एक संख्या है। अब आप 89 साल की उम्र में अपना खुद का ऑनलाइन बिजनेस शुरू करने वाली लतिका चक्रबर्ती की बात करें या फिर 72 साल की उम्र में बस्ता टांगकर फिर से स्कूल जाने वाले मुकुंद चारी की!
ऐसे और भी बहुत से नाम हैं जिनके बारे में आप द बेटर इंडिया पर पढ़ सकते हैं। आज इसी क्रम में एक और नाम जुड़ने जा रहा है और वह है 89 वर्षीय शरणबासवराज बिसराहल्ली का।
कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले शरणबासवराज बिसराहल्ली ने हाल ही में पीएचडी में दाखिला लेने के लिए प्रवेश परीक्षा दी है। जी हाँ, साल 1929 में जन्में और एक स्वतंत्रता सेनानी रहे शरणबासवराज को हमेशा से ही पढ़ने का शौक रहा है।
द न्यूज़ मिनट के मुताबिक उन्होंने 15 किताबें लिखी हैं। इसके अलावा उन्होंने कानून की पढ़ाई में डिग्री हासिल की और कर्णाटक यूनिवर्सिटी (धारवाड़) और हम्पी कन्नड़ यूनिवर्सिटी से दो बार मास्टर्स की डिग्री की है। उनका हमेशा से सपना रहा कि वे कन्नड़ साहित्य में अपनी पीएचडी की पढ़ाई पूरी करें।
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शरणबासवराज आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्में, लेकिन उनकी माँ पढ़ाई में आगे बढ़ने के लिए हमेशा उनका प्रेरणास्त्रोत रहीं। वे कहते हैं, “पूर्ण नम्रता के साथ, मेरा मानना है कि मेरे जीवन का उद्देश्य हमेशा एक छात्र बने रहना है और ज्ञान अर्जित करना है। उम्र चाहे जो भी हो, लेकिन कभी भी किसी को सीखने से नहीं रुकना चाहिए।”
अपने गांव के स्कूल में प्राइमरी शिक्षक के तौर पर काम करते हुए उन्होंने अपनी डिग्री पूरी कीं। इसके अलावा 6 बच्चों के पिता शरणबासवराज ने यह निश्चित किया कि उनके बच्चे अच्छे से पढ़े-लिखें। आज उनके सभी बच्चे अच्छी जगहों पर काम कर रहे हैं। अपने बच्चों के अलावा उन्होंने पिछड़ी जाति के तीन बच्चों के जीवन को भी संवारा। आज ये तीनों बच्चे सरकारी पदों पर नौकरी कर रहे हैं।
जब शरणबासवराज से पूछा गया कि उन्होंने पहले ही पीएचडी की डिग्री क्यों नहीं कर ली तो उन्होंने कहा, “उस वक़्त मुझे पर निजी जिम्मेदारियां थीं और पीएचडी के लिए आपको बहुत समर्पण की जरूरत होती है।”
शरणबासवराज को मिलने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन और सेवानिवृत्त शिक्षक की पेंशन, दोनों को ही वे सामाजिक कल्याण के कामों के लिए दान कर देते हैं। उन्होंने पिछले साल भी प्रवेश परीक्षा दी थी, जिसमें वे पास नहीं हुए। हालांकि, इस बार उन्हें भरोसा है कि वे परीक्षा पास कर लेंगें।