हर सुबह, एक हाथ में प्लास्टिक में लिपटे हुए बड़े करीने से व्यवस्थित किताबों और दूसरे हाथ में एक छाता लिए हुए आठ साल के गणेश सनस महाराष्ट्र के सातारा में अपने स्कूल तक पहुँचने के लिए बारिश की बौछारों को मात देते हुए रोज लगभग तीन किलोमीटर पैदल चलते हैं। एक बार स्कूल के अंदर जाने के बाद वह कक्षा में घूमते हैं और अपने पैरो से फर्श को छू कर अपनी किताबों को रखने और बैठने के लिए एक सूखे कोने की तलाश करते हैं। कभी-कभी वह सबसे अच्छा स्थान पाने के लिए जल्दी भी आ जाते हैं।
गणेश के साथ भारत के ग्रामीण हिस्सों में हजारों बच्चों के लिए डेस्क पर किताबों के साथ एक कुर्सी पर बैठ कर पढ़ाई करना किसी सपने से कम नहीं है। जबकि आप और हमारे लिए यह आसानी से उपलब्ध होने वाली चीज है।
Source: Marji Lang/Flickr
ग्रामीण भारत के ज़रूरतमंद स्कूली बच्चों के इस दर्द को शोभा मूर्ति ने समझा। शोभा ने ‘आरम्भ’ नाम का एक एनजीओ शुरू किया। जिसके जरिये वह इन स्कूली बच्चों को हेल्प डेस्क उपलब्ध करा रही है। यह हेल्प डेस्क रीसाइकल किये हुए कार्डबोर्ड से बनी एक पोर्टेबल मल्टी-फंक्शनल डेस्क है। इसे लिखने की डेस्क और स्कूल के बैग दोनों ही तरह उपयोग किया जा सकता है।
शोभा कहती हैं, चीजें जो हम नज़रअंदाज़ करते हैं। वह अक्सर सबसे महत्वपूर्ण होती हैं। डेस्क, कुर्सी या ब्लैक बोर्ड किसी भी स्कूल की सबसे बेसिक ज़रूरत होती है। लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण भारत के सैकड़ों स्कूलों में यह सुविधा नहीं है। इस छोटी सी परेशानी को दूर करने और एक स्थायी समाधान लाने के लिए यह हमारा प्रयास है जो मात्र 10 रुपये के डेस्क से मुमकिन हो रहा है।
शोभा पिछले 22 वर्षों से शिक्षा क्षेत्र में काम कर रही है। उनका फोकस विशेष रूप से ग्रामीण भारत के सैकड़ों वंचित स्कूलों पर है। शोभा के प्रयासों के चलते शहरी झुग्गी, बस्तियों और महाराष्ट्र के दूर-दराज़ क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर सुधरा है। ज़रूरतमंद बच्चों को स्कूल में सुविधाएँ मिलने लगी है। हेल्प डेस्क इसी कड़ी में उनका नया प्रयास है जो कारगर सिद्ध हो रहा है।
शोभा बताती हैं कि, फर्श पर बैठ कर लम्बे समय तक लिखने से बच्चों को परेशानी होती है। उनको झुकने के साथ ही आँखों पर दबाव भी डालना पड़ता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ऐसे में बच्चों की इस परेशानी को दूर करने के लिए इसका एक स्थायी समाधान खोजने की आवश्यकता थी। ऐसे में उन्होंने हेल्प डेस्क के रूप में इसका समाधान ढूंढा।
कार्ड बोर्ड के बक्सों से बनाए गए डेस्क
यह इनोवेटिव हेल्प डेस्क 2017 में महाराष्ट्र के सातारा जिले के कई स्कूलों में लॉन्च किए गए। यह रेफ्रिजरेटर के बक्सों और कार के स्पेयर-पार्ट्स से बने हुए थे। इसको बनाने के लिए स्टैंसिल डिजाइन के आधार पर कार्डबोर्ड कटआउट बनाए गए और बाद में उसे स्कूल डेस्क की तरह बदला गया।
इस प्रक्रिया को और सरल बनाने के लिए एक लेज़र कटिंग मशीन का उपयोग किया गया। रीसाइकल्ड कार्डबोर्ड से एक डेस्क बनाने में 10 से 12 रुपए के बीच खर्च आता है। ऐसे में एनजीओ उन्हें मुफ्त में वितरित करने में सक्षम होते हैं। डेस्क के उपयोग का नतीजा यह था कि बच्चे आराम से बैठ सकते थे और लम्बे समय तक स्कूल में पढ़ सकते थे।
आरंभ का बनाया हेल्प डेस्क न केवल एक सस्ता विकल्प है बल्कि वजन में हल्का और पोर्टेबल भी है। कक्षा खत्म होने पर बच्चे उन्हें एक कॉम्पेक्ट ब्रीफकेस या ज़रूरत पड़ने पर बैग की तरह पैक कर रख सकते हैं। अब तक आरम्भ पश्चिमी महाराष्ट्र में इस डेस्क की मदद से 2 हजार बच्चों के जीवन को बदलने में सफल हो चुका है।
शोभा कहती है, “हमें उम्मीद नहीं थी कि यह इतना हिट होगा। अब कई और स्कूल भी इसके लिए पूछ रहे हैं। अब यह न केवल महाराष्ट्र में बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी अपनी पहचान बना चुका है। आरम्भ की कोशिश है कि इसे वॉटरप्रूफ और मजबूत बनाया जाए ताकि बारिश के दिनों में भी इसका उपयोग हो सके। आरंभ इस प्रोजेक्ट को रोज़गार के साधन के रूप में विस्तारित करने की योजना बना रहा है। ग्रामीणों को हेल्प डेस्क बनाने और उससे कमाई के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं। इसके लिए परिवहन लागत, मशीनरी और प्रोजक्ट के लिए करीब 14 लाख रुपए की आवश्यकता पड़ेगी। हमारे पास अब तक 6 लाख रुपए फंड इकट्ठा हो चुका है।”
आरंभ का हेल्प डेस्क एक ऐसा प्रोजेक्ट है,जो बड़े पैमाने पर लोगों की आजीविका और बच्चों की पढ़ाई पर अच्छा प्रभाव ला सकता है। यह उन बच्चों की पढ़ाई के स्तर को बढ़ा सकता है जिन्हें स्कूल में डेस्क जैसी सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं। आप अधिक जानकारी के लिए और आरम्भ की इस क्रांति में मदद करने के लिए उनके फेसबुक पेज या ऑफिशियल वेबसाइट पर संपर्क करें।