“साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।।”
संत कबीर के इस दोहे का अर्थ है कि मुझे बस इतना चाहिए जिसमें मेरा और मेरे परिवार का निर्वाह हो जाए। साथ ही, अगर कोई मेरे दर पर आए तो मैं उसे भी खाना खिला सकूँ।
नासिक के एक किसान ने मुझसे कुछ ऐसा कहा कि मुझे यह दोहा याद आ गया। उन्होंने कहा, “मेरे पास एक रोटी है और मैं किसी ज़रूरतमंद को अगर आधी रोटी दे दूँ तो क्या हर्ज है। थोड़ी ही सही उसकी कुछ मदद तो हो जाएगी।”
यह किसान है 41 वर्षीय दत्ता राम राव पाटिल, जिन्होंने कुछ दिन पहले अपने गाँव के पास रहने वाली गरीब महिलाओं को अनाज बांटा है।
नासिक में निफाड तालुका स्थित सुकेणा कस्बे के निवासी दत्ता राम के परिवार में उनके माता-पिता, पत्नी और दो बच्चे हैं। भाई नासिक में रहकर नौकरी करते हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी तीन एकड़ ज़मीन है, जिस पर वह खेती करते हैं।
“मैंने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की है। लेकिन मेरे पिताजी की तबीयत ठीक नहीं रहती थी और उनकी बाईपास सर्जरी हुई थी। इसलिए मैंने खेती करना शुरू किया और अपनी इस तीन एकड़ ज़मीन पर मैं अब गेहूं और सोयाबीन जैसी फसलें उगाता हूँ,” उन्होंने कहा।
इस बार भी उन्होंने गेहूं की अच्छी फसल अपने खेतों से ली थी और कुछ दिन पहले कटाई भी हो गई थी। इंतज़ार था तो बस इसे मंडी पहुंचाने का। दत्ता राम को अपने खेतों के लिए ट्रैक्टर की ज़रूरत थी और उन्होंने सोचा था कि फसल को बेचने से जो पैसे मिलेंगे, उसे वह ट्रैक्टर खरीदने में लगाएंगे।
लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था।
वह आगे बताते हैं, “एक दिन गाँव के पास ही कच्ची बस्तियों में रहने वाली एक महिला हमारे यहाँ आई। उन्हें कहीं काम नहीं मिल रहा था। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं उन्हें अपने घर का कुछ बचा हुआ खाना दे सकता हूँ क्या? इससे उनके बच्चों का पेट भर जाएगा।”
दत्ता को यह सुनकर बहुत ही बुरा लगा कि एक तरफ हम कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ देश के न जाने कितने लोगों के लिए दो वक़्त का खाना जुटा पाना भी ज़िंदगी और मौत का सवाल हो जाता है। उन्होंने उस महिला से पूछा कि उनके यहाँ बस्तियों में कितने लोग रहते हैं।
“उसने बताया कि लगभग 150 परिवार होंगे और किसी के पास अभी कोई काम नहीं है। सबके हालात बुरे हैं। मैंने सोचा कि हम अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं? मेरे सामने उस समय मेरे खेतों में पड़ा हुआ अनाज ही था। इसलिए मेरे दिमाग में आया कि शायद हम गेहूं देकर इनकी कुछ मदद कर पाएं,” उन्होंने आगे कहा।
दत्ता राम ने जब इस बारे में अपने माता-पिता से पूछा तो उन्होंने तुरंत हाँ कर दी। उनके पिता ने कहा कि हम और दो साल बाद ट्रैक्टर ले लेंगे। फ़िलहाल, ज़रूरी यह है कि किसी को खाने के दो निवाले मिलें।
दूसरे ही दिन, दत्ता राम और उनकी पत्नी ने इन महिलाओं को अनाज बांटना शुरू कर दिया। उन्होंने तय किया कि वह अपनी एक एकड़ ज़मीन का अनाज बांटेंगे। उन्होंने किसी को 5 किलो तो किसी को 7 किलो अनाज दिया। वह बताते हैं कि जिनके घर की स्थिति बहुत ही खराब है, उन महिलाओं को उन्होंने ज्यादा अनाज दिया।
“बहुत सी महिलाएं विधवा हैं तो किसी के घर में मरीज़ हैं। जिनकी देखभाल उन्हें करनी पड़ती है। हमने सबकी ज़रूरत के हिसाब से उनकी मदद करने की कोशिश की,” उन्होंने कहा।
दत्ता राम की इस पहल के बारे में जैसे ही खबर छपी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ऑफिस से लेकर बहुत से आम लोगों ने उनकी सराहना की। वह बताते हैं कि इसके बाद उन्हें मदद के लिए भी बहुत से फ़ोन आए।
“मुझे अमेरिका से अरुण नाम के एक व्यक्ति का फ़ोन आया। वह पैसे देना चाह रहे थे लेकिन मैंने उनसे कहा कि पैसों से वे सरकार की मदद कर सकते हैं। मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है। इसी तरह एक एनजीओ ने भी संपर्क किया था लेकिन मैंने उन्हें कहा कि मुझे पैसे देने की बजाय आप इन लोगों की सीधा मदद करें।”
दत्ता राम की इस कोशिश ने पूरे देशवासियों का दिल जीत लिया है। किसी ने सही ही कहा है कि इंसान पैसे से नहीं बल्कि दिल से अमीर या गरीब होता है। उनके अपने घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है लेकिन फिर भी उन्होंने अपने हित से बढ़कर सोचा।
यह भी पढ़ें: कोरोना हीरोज़: गाड़ी को एम्बुलेंस बना, गाँवों के मरीज़ों को अस्पताल पहुँचा रहा है यह शख्स!
“अभी भी मुझे दूसरी जगहों से फ़ोन आ रहे हैं कि और भी लोगों को मदद की ज़रूरत है। अभी भी अगर कोई खेत पर आ रहा है तो हम उसे एक-दो किलो गेंहूं दे रहें हैं। मैं उन्हें मना नहीं करना चाहता लेकिन मेरी क्षमता इतनी ही है। अंत में मैं लोगों से यही कह सकता हूँ कि डरे नहीं, एक-दूसरे की मदद करें और अपना व अपने परिवार का ख्याल रखें,” उन्होंने कहा।
अगर दत्ता राम राव पाटिल की इस नेकदिल कदम ने आपके मन को भी छुआ है तो आप भी अपने आस-पास किसी ज़रूरतमंद की मदद करें। उनसे संपर्क करने के लिए आप 9765213560 पर कॉल कर सकते हैं!
संपादन – अर्चना गुप्ता