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शान-ए-अवध कहलाती हैं किवामी सेवइयाँ, जानिए रोचक इतिहास और रेसिपी भी!

ईद के दिन तरह-तरह के पकवान बनते हैं, खाने की ख़ुशबू से गली-मोहल्लों और बाज़ारों में खूब रौनक होती है। ईद का चाँद नज़र आते ही लोग एक दूसरे को बधाईयाँ देते हैं और फिर लग जाते हैं ईद की दावत की तैयारी में।

लोगों से मिलना जुलना इस त्योहार की सबसे ख़ास बात होती है, जहाँ एक ओर बड़ों से दुआएँ और ईदी मिलती है तो वहीं छोटों से मिलता है प्यार। नया ईद का जोड़ा पहन कर दोस्तों, रिश्तेदारों से मिलना और सबके घर पर बने पकवानों का लुत्फ़ उठाना पूरे साल भर याद रहता है और ख़ास तौर पर याद रहती है सेवइयों की मिठास।

सेवइयाँ वैसे तो तरह-तरह से पकाई जाती हैं पर शीर खुरमा भारत व पड़ोसी देश पाकिस्तान समेत कई देशों में काफ़ी लोकप्रिय है। शीर खुरमा दूध के साथ बारीक या मोटी सेवइयों को पकाकर और भरपूर मेवों से सजाकर परोसा जाता है।

लेकिन अवध की ख़ास क़िस्म की बारीक किवामी सेवइयों की बात कुछ अलग ही है, जिन्हें पारंगत ख़ानसामे काफ़ी मशक़्क़त से पकाते हैं।

किवामी सेवइयाँ भुने खोए के साथ पकाई जाती हैं फिर उनमें एक तार की चाशनी या किवाम डाल कर दम दिया जाता है। केसर की रंगत, मेवे और मखानों की लिज्जत से भरपूर जो किवामी सेवइयाँ तैयार होती हैं, उसे काफी शौक से परोसा जाता है और खाने वाले इसका स्वाद बरसों नहीं भूल पाते।

किवामी सेवइयों को पकाने का तरीका थोड़ा मुश्किल है इसलिए काफी लोग इस व्यंजन को बना नहीं पाते इसलिए आसानी से बनने वाली शीर खुरमा ज़्यादा लोकप्रिय है।

मज़े की बात तो यह है कि सेवइयाँ भले ही ईद का खास व्यंजन हैं और एक खास धार्मिक मान्यता वाले इन्हें अलग तरह से पकाते हैं, पर सेवइयाँ पूरे तौर पर हिन्दुस्तानी व्यंजन हैं।

मैंने बनारस में अपने दोस्तों के यहाँ ईद में कई बार किवामी सेवइयाँ खाईं हैं और उन्हीं से इस नायाब व्यंजन को बनाना भी सीखा है, पर इसके पहले कि मैं किवामी सेवइयों को बनाने की  विधि बताऊँ, एक छोटी सी चर्चा सेवइयों के रोचक इतिहास के बारे में भी कर लेते हैं ।

कैसे हुई थी भारत में सेवइयों की शुरुआत?

पहली बार सेवइयों का ज़िक्र लाल क़िले की एक शाही दावत में मिलता है जहाँ उन्नीसवीं सदी में ईद के दिन बहादुर शाह ज़फ़र को दूध के साथ सेवइयाँ परोसी गई थीं। इतिहासकार राना सफवी की किताब में इस किस्से का वर्णन मिलता है। हालाँकि उस वक़्त सेवइयाँ ईद के किसी विशेष व्यंजन के तौर पर विकसित नहीं हुई थी।

सुतरफेनी

चूँकि अवध और बनारस की सेवइयाँ बिल्कुल बालों के समान पतली होती हैं और मैदे से बनी होती हैं, ऐसे में ज़ाहिर है कि इस प्रकार की सेवइयाँ मशीनी युग के आगाज़ के बाद ही दुनिया में आई हैं। पर इसके पहले से ही हिंदुस्तान में अलग-अलग तरह की सेवइयाँ बनती थीं और उनके नाम भी अलग-अलग होते थे।

पंजाब और हरियाणा में हाथों की उंगलियों से चावल या जौ के आकार की सेवइयाँ बनाई जाती हैं जिन्हें जवें कहा जाता है।

महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी हाथों से चलाने वाले उपकरणों से ही सेवइयाँ बनाई जाती हैं और उन्हें शेविगे के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक में शेविगे चावल या रागी के आटे से बनाते हैं और महाराष्ट्र में गेहूँ के आटे से बने शेविगे शादियों में दुल्हन के दहेज के साथ भेजे जाते हैं। गुजरात में भी हाथों से काफी पतली और लंबी सेवइयाँ बनाई जाती हैं और उन्हें सुखा कर रखते हैं।

सबसे कमाल की सेवइयाँ सिंधी और राजस्थानी इलाकों में बनाई जाती हैं जो कि सैकड़ों सालों पुरानी परंपरा है। ऐसी सेवइयों को फेनी या फीनी के नाम से जाना जाता है, इन्हें हाथों से खींच-खींच कर बनाया जाता है और दूध में भिगो कर खाया जाता है।

बहरहाल, सिंधी, राजस्थानी, मराठी और गुजराती परम्पराओं में सुतरफेनी काफी लोकप्रिय रही है। वहीं बनारस में तो करवाचौथ के दिन सरगी में सुतरफेनी खाने का रिवाज़ है और कहीं ना कहीं ये रिवाज़ आपस में ऐसे उलझे हैं कि हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब का स्वाद इन्हीं व्यंजनों में मिल जाता है।

आइये अब जान लेते हैं किवामी सेवइयाँ बनाने की सामग्री-

  1. 500 ग्राम पतली सेवइयाँ
  2. 100 ग्राम घी
  3. 1/2 किलो दूध
  4. 400 ग्राम चीनी
  5. 1 कटोरी पानी
  6. 200 ग्राम भुना खोआ
  7. चुटकी भर केसर
  8. 1 कटोरी कटे हुए मेवे
  9. 1 कटोरी घी में तले हुए मखाने

विधि-

बनने के बाद कुछ इस तरह लगेगी आपकी किवामी सेवई

इन क़िवामी सेवइयों को गरम या ठंडा जैसे भी चाहें परोस सकते हैं। कुछ लोग तो क़िवाम की सेवइयों को मलाई के साथ भी खाना पसंद करते हैं।

किवामी सेवइयों की रेसिपी पढ़कर अब तक आपके मुँह में पानी तो ज़रूर आ गया होगा। तो देर किस बात की? इन्हें जल्दी बनायें और इनका स्वाद अपने मित्रों और परिवार के साथ उठाएँ।

संपादन- पार्थ निगम

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