गाड़ी पंचर होने पर आप क्या करते हैं? अब आप कहेंगे कि यह क्या सवाल है, पंचरवाले भईया के पास जाकर पंचर बनवाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी किसी बुजुर्ग महिला को पंचर बनाते देखा है? अगर नहीं तो आज हम आपको बता रहे हैं 55 वर्षीया लेडी मेकैनिक, कमला नेगी की कहानी।
कमला कोई एक दो नहीं, बल्कि पिछले करीब 15 सालों से बाइक, कार, ट्रक, बस आदि में पंचर लगाने का काम कर रही हैं। वह बाइक और कार की रिपेयरिंग व सर्विसिंग भी कर लेती हैं। नैनीताल जिले में रामगढ़-मुक्तेश्वर रोड पर उनकी दुकान है। आस-पास के लोगों ने उनके काम से प्रभावित होकर, उन्हें ‘टायर डॉक्टर’ का नाम दिया है।
टायर पंक्चर बनवाने, रिपेयरिंग, सर्विसिंग आदि के लिए लोग पूरे भरोसे के साथ अपने वाहन उनके पास लेकर आते हैं।
लेडी मेकैनिक कमला ने कैसे की इस काम की शुरुआत?
कमला नेगी ने द बेटर इंडिया को बताया, “वह साल 2004 का वक्त था। इलाके के छोटे-छोटे बच्चों को साइकिल सीखने में बहुत दिलचस्पी थी। इसी को देखते हुए मैंने बच्चों को साइकिल सिखाना शुरू कर दिया। तब सभी बच्चों के पास तो साइकिल नहीं होती थी। ऐसे में मैं उन्हें साइकिल किराए पर देती थी। फीस बेहद मामूली थी। एक घंटे के लिए केवल पांच रुपए। करीब 20-25 बच्चे साइकिल सीखने के लिए आते थे।”
उन्होंने आगे बताया, “बच्चों को साइकिल सिखाने के दौरान कई बार उनकी साइकिल पंचर हो जाती थी। ऐसे में मैं आराम से उनके पंचर लगा देती थी। मैंने अपने पति को पंचर बनाने का काम करते देखकर इतना तो सीख ही लिया था। धीरे-धीरे मैंने साइकिल के अलावा अन्य वाहनों के भी पंचर लगाने का काम सीखा। इसकी वजह यह थी कि कई बार पति के इधर-उधर जाने और काम पर न रहने पर दुकान बंद रहती थी। घर की आर्थिक स्थिति पर कोई फर्क न पड़े, इसे देखते हुए मुझे खुद इस काम को करना उचित लगा।”
कमला ने साल 2008 से व्यावसायिक रूप से कार, बस, ट्रक तक के पंचर बनाने शुरू कर दिए। यहां तक कि जेसीबी तक खराब होती, तो लोग उन पर भरोसा करते और फिर धीरे-धीरे उनके इस काम ने उन्हें क्षेत्र में बड़ी पहचान दिलाई।
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केवल एक कॉल पर मिल जाती है लोगों को मदद
लेडी मेकैनिक कमला का कहना है कि लोगों का भरोसा पाना बड़ी बात होती है। पहले उनकी दुकान के लगभग 25 किलोमीटर के दायरे में कोई टायर पंचर बनाने या रिपेयर आदि की कोई दुकान नहीं थी। ऐसे में किसी टूरिस्ट की गाड़ी का पंचर खराब होता, तो वह केवल एक कॉल पर लोगों की मदद कर देती थीं। उनका मोबाइल नंबर उनकी दुकान के बाहर ही लिखा है, जिस पर किसी भी वक्त कॉल करके कोई भी रिपेयर, पंचर के लिए आ सकता है।
अब एक और दुकान 25 किलोमीटर के दायरे में खुल गई है। लेकिन कमला दावा करती हैं कि अब भी लोग उनका नाम पूछकर पंचर लगवाने आते हैं। कमला नेगी ने रामगढ़ क्षेत्र में स्थित रीठा स्कूल से 8वीं कक्षा तक की पढ़ाई की है। इसके बाद, आस पास कोई स्कूल न होने की वजह से वह इच्छा के बावजूद, आगे नहीं पढ़ सकीं।
फिर 18 वर्ष की उम्र में हयात सिंह नेगी से उनका विवाह हो गया। नेगी की पंचर की दुकान थी। कमला ने घर गृहस्थी तो संभाल ली, लेकिन पति के काम में हाथ बंटाने को भी वह अपनी जिम्मेदारी समझती थीं। वह अक्सर उनके काम में दिलचस्पी दिखाती थीं।
ऐसे में हयात सिंह नेगी को देखकर उन्होंने साइकिल में पंचर लगाने, हवा भरने जैसे काम सीख लिए। धीरे-धीरे यही काम आगे की राह में उनका आधार बना। वह पति से सीखकर अन्य वाहनों के टायरों को रिपेयर करने व पंचर बनाने का काम करने लगीं।
“कभी-कभी महिलाएं ही महिलाओं पर नहीं करतीं भरोसा”- लेडी मेकैनिक
कमला बेशक एक ‘ऑड जॉब’ कर हर किसी की प्रशंसा पा रही हैं, लेकिन उन्हें महिलाओं से एक शिकायत भी है। कमला का कहना है, “एक बार एक कार में पंचर हो गया। ड्राइवर मेरे पास आया और टायर का पंचर बनाने का अनुरोध किया। लेकिन कार के भीतर एक मैडम थीं। उन्होंने ड्राइवर से कहा, यहां तो लेडी है, यह क्या पंचर लगाएगी, चलो आगे देख लेना।”
कमला नेगी ने बताया कि उस वक्त उन्हें उन मैडम की बात बहुत बुरी लगी। क्योंकि उन्होंने एक महिला होने के नाते उन पर विश्वास नहीं जताया। वह मानती हैं कि महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए महिलाओं के अधिक सहयोग व समर्थन की ज़रूरत है। महिलाओं को महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने की भी अधिक ज़रूरत है।
“बच्चों को शिक्षा देना और हर काम की महत्ता समझाना है ज़रूरी”
लेडी मेकैनिक कमला नेगी कहती हैं, “बहुत से लोगों में यह धारणा होती है कि टायर बनाने, पंचर लगाने जैसे काम छोटे होते हैं। इनमें कपड़े काले-पीले हो जाते हैं। लेकिन सच तो यह है कि काम कोई भी छोटा नहीं होता। जब मैंने अपना टायर पंचर जोड़ने का काम शुरू किया, तो लोगों ने न जाने क्या क्या कहा! लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी। मैंने जो सीखा था, उसे पूरे धैर्य और लगन से किया। आखिर जिस काम के बूते मैं अपने बच्चों को उनके पैरों पर खड़ा कर सकी और उन्हें किसी लायक बना सकी। वह छोटा कैसे हुआ? मैं चाहती थी कि मैं जो भी करूं, सबसे बेहतर करूं। यही वजह है कि लोग आज भी दूसरी दुकान छोड़ मुझसे पंचर लगवाने आते हैं।”
कमला नेगी अपने क्षेत्र में सम्मानित महिला हैं। उनके दो बच्चे हैं। उनका बेटा सीमा सुरक्षा बल यानी BSF में कार्यरत है और देश की सेवा में लगा हुआ है। दूसरी बेटी की शादी हो गई है।
वह मानती हैं कि जीवन में शिक्षा से बड़ा कोई तोहफा नहीं। हर माँ-बाप को अपने बच्चों को शिक्षित ज़रूर करना चाहिए। केवल यही उनके भविष्य में काम आने वाली ऐसी चीज़ है, जो कोई भी उनसे छीन या चुरा नहीं सकता। साथ ही बच्चों को काम की महत्ता बताना भी बेहद ज़रूरी है, ताकि वे प्रत्येक पेशे की इज्ज़त करें। किसी भी काम को हेय दृष्टि से न देखें।
संपादनः अर्चना दुबे
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