“मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ! हम सबको हमेशा से मेहनत करना और अपने घर को चलाना सिखाया गया था। मैंने खुद भी कॉलेज में पढ़ते हुए ही कमाना शुरू कर दिया था – मैं सुबह कॉलेज जाती और शाम को ट्यूशन पढ़ाती। 1961 में ग्रेजुएशन ख़त्म करने के बाद मुझे टाटा स्टील कंपनी में नौकरी मिल गयी। पहले तो मैं टेम्पररी थी, लेकिन 6 महीने में ही मुझे पर्मानेंट कर लिया गया। इसके कुछ समय बाद मेरी शादी हो गयी, लेकिन मेरे लिए कुछ नहीं बदला, उल्टा मैंने और भी बहुत कुछ करने का फ़ैसला लिया।
मैंने वकालक का एक कोर्स शुरू किया, इसलिए जब मेरा बेटा पैदा हुआ तो मुझे काम, घर और पढ़ाई के बीच दौड़-भाग करके सबकुछ मैनेज करना पड़ता था। मेरी कड़ी मेहनत और नयी डीग्री की बदौलत मुझे प्रमोशन मिल गयी और मैंने बहुत ही उम्दा लोगों के साथ काम किया। इन सब चीजों के बीच संतुलन बिठा पाना कभी भी आसान नहीं था- बहुत बार मैं काम के प्रेशर से थक कर बाथरूम में जाकर रोती थी- लेकिन इन सभी चुनौतियों ने मुझे और भी मजबूत बनाया।
साल 1970 के अंत तक, मैं तीन बच्चों की माँ बन गयी थी – एक दिन मुझे बॉम्बे हाउस के ‘चौथे फ्लोर’ से फ़ोन आया जिसने मेरी ज़िन्दगी बदल दी – वे चाहते थे कि मैं श्री. जेआरडी टाटा की सेक्रेटरी के तौर पर काम करूँ! मुझे इस पर विश्वास ही नहीं हुआ– जब मैं युवा थी तो मेरी एक पड़ोसन ने मुझे उनकी फोटो दिखाई थी और हम दोनों इस बात पर हैरान थे कि मिस्टर टाटा इतने हैंडसम थे और अब मैं उनके साथ काम करने वाली थी।
उनके लिए मुझे मेरा पहला डिक्टेशन अभी भी याद है– मेरे हाथों में पसीने आ रहे थे क्योंकि मैं बहुत नर्वस थी! उन्होंने तुरंत इस बात को भांप लिया और मुझे अच्छा महसूस करवाने के लिए बहुत ही आराम से मुझसे बात थी– वे ऐसे ही थे— हमेशा सबकी परवाह करने वाले।
न केवल काम के लिए उनकी सिद्दत बल्कि वे बहुत ही नरम और दयालु स्वाभाव के बॉस थे। अपने माली के बच्चों के लिए विदेश से चॉकलेट लाने जैसी छोटी चीजों से लेकर मेरे परिवार की परवाह करने तक, उन्होंने सभी की देखभाल की। एक बार मेरे पति को पैराटाइफोइड हो गया तो मैंने मिस्टर टाटा को बताया कि अपनी दवाइयों की वजह से उन्हें बहुत पसीना आता है। उन्होंने तुरंत ताज में फ़ोन लगाया और मेरे पति के लिए एक बाथरोब ऑर्डर किया ताकि वे गर्म रह सकें।
वे बहुत ही सौम्य और विनम्र थे– जिन भी लोगों की वे परवाह करते थे उनके लिए वे कभी भी व्यस्त नहीं रहते थे। मुझे अभी भी याद है, एक बार मेरे जन्मदिन पर वे उझे और मेरे परिवार को द ओबेरॉय के एक फ्रांसीसी रेस्त्रां में डिनर पर लेकर गये। उन्होंने जब बिल माँगा तो मेनेजर ने उन्हें बताया कि उन्हें भुगतान करने की कोई जरूरत नहीं है। इस पर मिस्टर टाटा ने मजाक करते हुए कहा, ”ओह, आपको मुझे यह पहले बताना चाहिए था – मैं और भी ऑर्डर करता!”
उन्होंने मुझे हर दिन प्रेरित किया- ईमानदार रहने के लिए, कड़ी-मेहनत और दूसरों की मदद करने के लिए। और वे खुद एक उदाहरण थे- मैंने उन्हें न जाने कितनी बार बिना एक बार सोचे भी अनगिनत लोगों की मदद करते देखा था। लोग उनके बिजनेस के बारे में बात करते हैं लेकिन व्यक्तिगत तौर पर भी…. वे एक हीरा थे; जिसे आज के समय में ढूंढना मुश्किल है। यह मेरी ज़िन्दगी का सौभाग्य था कि 15 सालों तक मैंने उनके लिए काम किया… जे. आर. डी टाटा सर, आप बहुत खास हैं और इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है!”