मोती की चमक और बनावट हर किसी को आकर्षित करती है। यह एक कीमती रत्न है जिसकी दुनिया भर में भारी मांग है।
प्राकृतिक रूप से मोती, सीप के कोमल टिश्यू के बीच पैदा होते हैं। बिल्कुल ऐसी ही प्रक्रिया कृत्रिम रूप से निर्मित वातावरण में भी की जाती है। इसके लिए मछुआरों से सीप खरीदकर उसके टिश्यू ग्राफ्ट को निकालकर दूसरे सीप में डाला जाता है। इससे मोती की थैली का निर्माण होता है जिसमें टिश्यू कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में जम जाता है।
इस प्रक्रिया को पर्ल कल्चरिंग कहा जाता है और यह दुनिया भर में एक फलता-फूलता व्यवसाय है।
लेकिन क्या आपने हरियाणा के गुरुग्राम में मोती की खेती के बारे में सुना है ?
गुरुग्राम के रहने वाले विनोद यादव ने अपने घर के पिछले हिस्से में खाली जगह का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए वहाँ तालाब बनाया। फिर उन्होंने अपने गृहनगर जमालपुर में एक बीघा (1/5 एकड़) जमीन पर मोती की खेती की। ऐसा माना जा रहा है कि सैटेलाइट सिटी में मोती की खेती करने वाले वह एकमात्र किसान हैं।
पेशे से इंजीनियर विनोद ने शुरू में 20×20 फीट के तालाब में मछली पालन के बारे में सोचा था। यहाँ तक कि इसके बारे में अधिक जानकारी जुटाने के लिए वह अपने चाचा सुरेश कुमार के साथ 2016 में जिले के मत्स्य विभाग भी गए थे। दुर्भाग्य से विरासत में मिली जमीन के छोटे से हिस्से में यूनिट लगाने में परेशानी के कारण उन्हें अपना फैसला बदलना पड़ा।
गुरुग्राम के डिप्टी कमिश्नर विनय प्रताप सिंह ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “जिला मत्स्य अधिकारी धर्मेंद्र सिंह ने उन्हें समझाया कि एक बार वह मोती की खेती करके देखें। उन्होंने विनोद को पर्ल कल्चर में एक महीने की ट्रेनिंग के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर भुवनेश्वर भेजा।”
आज मोती की खेती से विनोद को हर साल 4 लाख रूपए से भी अधिक का मुनाफा हो रहा है। इससे अन्य लोग भी आकर्षित हो रहे हैं!
धर्मेंद्र सिंह बताते हैं कि गुरुग्राम राज्य का पहला जिला है जहाँ मोती की खेती की शुरूआत हुई है। खेती की सफलता को देखकर दूसरे जिले के लोग भी इस क्षेत्र में निवेश के लिए सोच रहे हैं।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट में विनोद ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को बताया, “मत्स्य विभाग मोती की खेती करने वाले किसानों को सब्सिडी भी देता है।”
गौरतलब है कि मोती की खेती के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर लगाने में लगभग 40,000 रुपये का खर्च आता है और खेती में 8 से दस महीनों का समय लगता है।
मूल लेख- LEKSHMI PRIYA S
फीचर फोटो – source
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