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चेन्नई के रहनेवाले 82 वर्षीय इंदुकांत रागडे एक पर्यावरणविद् हैं। जब हमने उनसे बगीचे के पौधों के लिए ग्रे-वाटर ट्रीटमेंट के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने हमें बीच में ही ये कहते हुए रोक दिया कि ऐसी किसी ट्रीटमेंट की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि ग्रे-वाटर यानी हमारे घरों में इस्तेमाल होने वाले पानी को बगीचे के पौधों में डाला जा सकता है और इसके लिए हमें पानी को उपचारित करने की ज़रूरत नहीं है।
इंदुकांत रागडे बताते हैं कि आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि रसोई और बाथरूम में इस्तेमाल हुए पानी को अगर सीधा पौधों में डाला जाए तो उसमें मौजूद केमिकल पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है।
यहां ग्रे-वाटर का मतलब बाथरूम, वाशिंग मशीन और रसोई घर से निकलने वाले पानी से है।
रागडे कहते हैं कि अगर बगीचे में ग्रे-वाटर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो वहां विशेष रूप से पानी में उगने वाले पौधे, जैसे कि कैनना इंडिका, जिंजर लिली, हेलिकोनियम, साइपरस, कोलोसिया या केला लगा सकते हैं।
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दरअसल, डिटर्जेंट में मौजूद फॉस्फेट की मध्यम मात्रा पौधों के बढ़ने खाद का काम करती है। ये पौधे प्राकृतिक रूप से पानी को काफी हद तक शुद्ध करने में भी मदद करते हैं।
वह शहरी बागवानों को सजावटी और विदेशी पौधों के बारे में भी आगाह करते हैं कि ऐसे पौधों के लिए पानी, मिट्टी, और अन्य संसाधनों की ज़्यादा ज़रूरत होती है और शायद ये ग्रे-वाटर के साथ अच्छी तरह से बढ़ ना पाएं।
“ग्रे-वाटर पौधों को बढ़ने में मदद करता है”
इस बारे में रागडे कहते हैं, “आप गणना करें। एक महीने में, एक व्यक्ति, 100 ग्राम के टॉयलेट सोप बार (साबुन ) का उपयोग करता है। हर दिन,अगर एक व्यक्ति स्नान के लिए लगभग 15 लीटर पानी का इस्तेमाल करता है, तो महीने का कुल पानी का उपयोग स्नान के लिए 450 लीटर तक आ जाएगा। मात्रा को ग्राम में देखा जाए तो बाथरूम से हरेक लीटर ग्रे-वाटर में एक ग्राम से भी कम साबुन मौजूद होगा।”
रागडे कहते हैं, "साबुन, डिटर्जेंट या अन्य प्रसाधनों में ज्यादातर कार्बनिक घटक होते हैं, इसलिए घर के बाथरूम से निकलने वाला ग्रे-वाटर बारिश के पानी से भी ज्यादा शुद्ध हो सकता है।"
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वह आगे विस्तार से बताते हैं, "टॉयलेट सोप में पाए जाने वाले अधिकांश केमिकल कार्बनिक यौगिक होते हैं, जैसे फैटी एसिड, ग्लिसरॉल आदि, जो तकनीकी रूप से कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बने होते हैं।”
ये कार्बनिक अर्क पौधों को पनपने में मदद करते हैं, विशेष रूप से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में, जहां बगीचे के पौधों को पानी देना अक्सर एक मुश्किल काम होता है।
आपका गार्डन एक प्राकृतिक जल उपचार सयंत्र यानी नैचुरल वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट हो सकता है
रागडे एक पूर्व आर्गेनिक केमिस्ट हैं। उन्होंने द बेटर इंडिया को विस्तार से बताया कि किस तरह शहर के हरेक घर में किचन और बाथरूम से निकलने वाले ग्रे-वाटर का इस्तेमाल बगीचे में किया जा सकता है।
रागडे बताते हैं कि पुराने समय में, पारंपरिक घरों की रसोई में इस्तेमाल होने वाले पानी को केले के पौधों के उगाने में इस्तेमाल किया जाता था और सारा पानी उस स्थान की ओर रीडायरेक्ट किया जाता था। नहाने और कपड़े धोने के पानी से आमतौर पर बगीचे के पौधों को सींचा जाता था।
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हालांकि, शहरों में जगह की कमी के कारण, ऊपर दिए तरीके को नहीं अपनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, बाथरूम ग्रे-वाटर की तुलना में रसोई ग्रे-वाटर में ज़्यादा ऑर्गेनिक्स होते हैं और पूरी तरह से एक छोटे बगीचे की तरफ रीडायरेक्ट नहीं किया जा सकता है।
रागडे का सुझाव है कि केवल बाथरूम और वॉशिंग मशीन से निकलने वाले पानी को बगीचे के पौधों में डालना चाहिए और रसोई घर के पानी को बाथरूम के टॉयलेट फ्लश के लिए रीडायेक्ट करना चाहिए।
दूसरी तरफ ऐसी व्यवस्था भी करनी चाहिए कि रसोईघर का पानी सीधा मिट्टी में रिसे, जहां इसके आगे बढ़ने से पहले मिट्टी की परतें अपने आप इसे साफ करेंगी और यह साफ़ भूजल के रूप में जमा होगा, जिसे फिर से निकाला जा सकता है।
रागडे कहते हैं, “मूल रूप से, आपका बगीचा एक नेचुरल वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की तरह काम कर सकता है। ग्रे-वाटर मिट्टी में रिसता रहता है, मिट्टी की परतों से छन जाता है और ताजा भूजल में बदल जाता है। पारंपरिक घरों में, इसलिए बगीचे के पास गड्ढ़े या कुआं खोदा जाता था।”
प्रति व्यक्ति केवल 2.5 वर्ग फुट गार्डन स्पेस की जरूरत है
बागवानी के लिए ग्रे-वाटर के इस्तेमाल के बारे में बताते हुए रागडे कहते हैं कि प्रति व्यक्ति केवल 2.5 वर्ग फुट की बागवानी की जगह की ज़रूरत होती है। इसलिए, अगर किसी परिवार में चार सदस्य हैं, तो वे अपने ग्रे-वाटर को 10 वर्ग फुट के बगीचे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल, एक 2.5 वर्ग फीट गार्डन स्पेस 50-60 लीटर ग्रे-वाटर सोख सकता है। शहर के अपार्टमेंट्स में भी इस तरह के सिस्टम को अपनाया जा सकता है।
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ग्रे-वाटर गार्डनिंग - पानी बचाने का एक स्थायी तरीका
विशेषज्ञ इकोलॉजिस्ट रागडे बताते हैं कि आमतौर पर एक घर में पानी के तीन आउटलेट होते हैं - रसोई, बाथरूम और सीवेज।
वह बताते हैं, " रसोई और बाथरूम के पानी को बागवानी या अन्य उद्देश्यों के लिए फिर से उपयोग करने से पहले किसी भी तरह के ट्रीटमेंट की ज़रूरत नहीं है।"
दूसरी ओर, सीवेज के पानी में रोग पैदा करने वाले जीव होते हैं जिनका किसी भी काम के लिए फिर से इस्तेमाल किए जाने से पहले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में उपचारित किया जाना चाहिए।
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रागडे कहते हैं, “अपार्टमेंट परिसरों द्वारा एसटीपी के दौरान की गई एक बड़ी गलती 70 प्रतिशत ग्रे-वाटर के साथ लगभग 30 प्रतिशत सीवेज के पानी को मिलाना है, जो जहरीला होता है। इससे पानी की पूरी मात्रा दूषित हो जाती है। जब पानी के इस मिश्रण का उपचार किया जाता है, तो उपचारित पानी का इस्तेमाल सिर्फ एक ही काम के लिए किया जा सकता है और वह है टॉयलेट फ्लश।”
वह उम्मीद करते हैं कि शहरी समुदाय अपने घरेलू ग्रे-वाटर का इस्तेमाल बागवानी के लिए करेंगे और एसटीपी में सीवेज उपचारित करेंगे। इस तरह, एसटीपी की बिजली की खपत भी कम हो जाएगी, जिससे लोगों को बिजली के बिल में राहत मिलेगी।
रागडे का मानना है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स पर दबाव को कम करने के लिए ग्रे-वाटर गार्डनिंग एक प्रभावी उपाय है। वह संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए सभी को अपने घरों में इसे अपनाने की सलाह देते है।
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मूल लेख - SAYANTANI NATH
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