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गोबर बना गांव की 25 महिलाओं के रोजगार का जरिया, घर बैठे बनाती हैं इससे दीये और गमले

आज भी गांव-घर में महिलाएं खेतों में काम तो करती हैं लेकिन पैसे के लिए घर के पुरूष सदस्यों पर निर्भर रहतीं हैं। मेहनत के बाद भी उनके पास हाथ में खर्च करने के लिए पैसे नहीं होते हैं। ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से सबल बनाने की सबसे अधिक जरूरत है। ऐसी ही महिलाओं के लिए उत्तर प्रदेश के एक गांव में एक दंपति ने अनोखी पहल की है।

बागपत जिला स्थित रामनगर गांव में पिछले एक साल से महिलाएं गोबर से दीये और जेर्मिनेशन पॉट बनाकर अपने लिए पॉकेट मनी कमा रही हैं। ये सारी महिलाएं ‘प्रेम कृषि उद्योग’ के साथ जुड़कर यह काम कर रही हैं जिसकी शुरुआत दिल्ली के अनीश और अल्का शर्मा ने की थी।

पुरानी दिल्ली के बिज़नेस परिवार से ताल्लुक रखने वाले अनीश की पत्नी अल्का रामनगर गांव से ही हैं।

2018 में अनीश ने बिज़नेस के साथ इसी गांव में कम्पोस्ट का काम करना शुरू किया था। इसके लिए उन्होंने तक़रीबन सात बीघा जमीन अपने ससुराल वालों से किराए पर ली थी। यहां वह 70 पैसे प्रति किलो के हिसाब से गांव के किसानों से गोबर खरीदते थे। जिसके बाद वह ऑनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से ऑर्गेनिक खाद दिल्ली- एनसीआर में बेचने लगे। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए अनीश कहते हैं, “गांव की महिलाएं कम्पोस्ट बनाने के लिए अपने-अपने घर से गोबर लाकर देने लगीं। हम उन महिलाओं को हफ्ते या महीने के अंत में पैसे देते थे।”

लेकिन पिछले साल लॉकडाउन के दौरान जब अल्का गांव में थीं तब उन्होंने देखा कि गांव की महिलाओं की हालत बेहद ख़राब है। 

Alka And Anish Sharma

अल्का कहती हैं, “मैं बचपन से यहां रही हूं। गांव की महिलाएं अपनी हर छोटी-छोटी जरूरतों के लिए पुरुषों पर निर्भर रहती हैं। कई महिलाएं गोबर देने हमारे पास आती थी और हमसे काम मांगती रहती थीं। तभी मैंने सोचा कि इन महिलाओं के लिए ऐसा क्या किया जाए कि इन्हें घर से ही रोजगार मिले।”

महिलाओं से सीखा गोबर से दीये बनाना 

महिलाओं को काम देने के उदेश्य से उन्होंने 2020 में PKU CARE FOUNDATION नाम से एक एनजीओ रजिस्टर करवाया। पिछले साल अल्का ने दिवाली से पहले इंटरनेट से गोबर से दीये और पॉट बनाना सीखा और इन महिलाओं को भी सिखाया। जिसके बाद गांव की 25 महिलाओं से उन्होंने तकरीबन 38 हजार दीये बनवाए। दीये बनाने के लिए उन्होंने महिलाओं को मोल्ड, रंग,  भीमसेनी कपूर, गोबर का पाउडर और बाकि का सामान मुहैया कराया। इस सेंटर में महिलाओं को प्रति दीये एक रुपये मेकिंग चार्ज दिया जाता है।  

Women Making Diya From Cow Dung

महिलाओं से दीये लेकर इसकी पैकिंग और कूरियर आदि का काम भी ‘प्रेम कृषि उद्योग’ के माध्यम से ही होता है। अनीश ने बताया कि गोबर से बने पंचग्वय दीयों का ऑनलाइन इतना अच्छा रिस्पांस मिला कि सारे दीये बिक गए। जिसके बाद अल्का ने महिलाओं को गोबर से जर्मिनेशन पॉट बनाना सिखाया। इस पॉट को गोबर, वर्मीकम्पोस्ट, मिट्टी, भूसी को मिलाकर तैयार किया गया। 

Germination Pots And Diyas

अल्का चाहती थी कि सिर्फ दिवाली तक ही नहीं बल्कि पुरे साल महिलाएं कुछ काम करती रहें। दिल्ली में इन जर्मिनेशन पॉट को शादियों में रिटर्न गिफ्ट के तौर पर कई लोगों ने ख़रीदा। आने वाले दिनों में अल्का इन महिलाओं को टेराकोटा ज्वेलरी बनाना भी सीखाने वाली हैं। 

NGO के माध्यम से महिलाओं और बच्चों की करती है सहायता

अनीश और अल्का अपने एनजीओ PKU CARE FOUNDATION के माध्यम से गांव की महिलाओं और बच्चों को दूसरी वोकेशनल ट्रेनिंग से जोड़ रहे हैं। एनजीओ का एक सेंटर सेंटर गांव में हैं जबकि दूसरा गाजियाबाद में है। गांव की एनजीओ में दीये बनाने वाली महिलाओं के 30 बच्चे पढ़ने भी आ रहे हैं। सेंटर पर महिलाओं को हर महीने सेनटेरी पेड भी दिए जाते हैं। जबकि दिल्ली सेंटर में स्लम की महिलाओं और बच्चों को कंप्यूटर ट्रेनिंग और सिलाई ट्रेनिंग दी जाती है।

Alka with Vilaage Women

एनजीओ के काम में अल्का और अनीश के साथ उनकी दोस्त पूजा पूरी भी जुड़ी हुई हैं। पेशे से वकील पूजा कहती हैं, “मैं अपने स्तर पर जरूरतमंदों की मदद करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन जब मुझे अल्का और अनीश के बारे पता चला तो मैं उनके साथ जुड़ गई। कुछ जान पहचान के लोगों ने हमें कंप्यूटर और सिलाई मशीन दी हैं। जबकि गांव में बच्चों को पढ़ाने और कंप्यूटर सिखाने के लिए आने वाले शिक्षकों की तनख्वाह का खर्च हम खुद ही उठा रहे हैं।”

रामनगर गांव की एक महिला प्रीति कहती हैं, “मेरे पति खेती करते हैं हमारे पास चार गाय भी हैं। हमने पहले प्रेम कृषि उद्योग में प्रतिदिन 30 से 40 किलो गोबर बेचना शुरू किया। फिर अल्का जी से मैंने दीये और गमला बनाना सीखा। पिछले साल दिवाली के समय दीये बनाकर मैंने तक़रीबन 2000 रुपये कमाए थे।”

वहीं गांव की चार महिलाओं को एनजीओ ने काम पर भी रखा है। जो प्रोडक्ट्स बनाने के लिए जरूरी सामान तैयार करके महिलाओं तक पहुंचाने का काम करती हैं। इन महिलाओं को संस्था की ओर से हर महीने चार हजार रुपये दिए जाते हैं। ऐसी ही एक महिला हैं उमा। उन्होंने बताया, “पति के गुजर जाने के बाद मैं अपने ससुरालवालों के साथ रहती थी। मेरे ऊपर मेरे दो बच्चों की जिम्मेदारी भी है। पिछले साल मैंने प्रेम कृषि उद्योग में काम करना शुरू किया। मैंने अपनी पहली तनख्वाह से अपने लिए जरूरी सामान और एक नई चादर खरीदी।”

Uma And Priti

इस साल प्रेम कृषि उद्योग इन महिलाओं से तक़रीबन एक लाख दीये बनवा रहा हैं। पिछले साल की तरह इस साल भी उन्हें सारे दीये बिक जाने की उम्मीद है।  

यदि आप भी इन महिलाओं से बनाएं गोबर के दीये और दूसरे प्रोडक्ट्स  खरीदना चाहते हैं या फिर उसके बारे में जानना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें। आप अनीश शर्मा को 99536 19864 पर कॉल भी कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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