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परंपरागत “जाली” तकनीक का इस्तेमाल कर बनाया ईको-फ्रेंडली हॉस्टल, करीब आधी हुई AC की जरुरत

Delhi Architect

दिल्ली स्थित जीरो एनर्जी डिज़ाइन लैब (जेडईडी लैब) के निदेशक और प्रिंसिपल आर्किटेक्ट सचिन रस्तोगी (Delhi Architect) का मानना है कि इमारतों को बनाने के दौरान सस्टेनेबल प्रैक्टिस को अपनाने के लिए किसी खास प्रयास को करने की कोई जरूरत नहीं है। 

सचिन के विचारों में, जीवन की गुणवत्ता में तभी सुधार होता है, जब सभी हितधारकों के साथ-साथ पर्यावरण को भी लाभ हो। उनका यह विचार, उनके आवासीय परियोजनाओं से लेकर व्यावसायिक परियोजनाओं में दिख जाता है।

सचिन रस्तोगी

सचिन ने अपने फर्म, जेडईडी लैब की स्थापना साल 2009 में की थी। जो, घरों में ऊर्जा की खपत को कम करने के लिए नवीनतम तकनीकों के आधार पर एनर्जी पैसिव संरचनाओं को बनाने में माहिर है।

लंदन स्थित आर्किटेक्चरल एसोसिएशन स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर के पूर्व छात्र सचिन ने द बेटर इंडिया बताया, “यदि हम अपने इतिहास पर गौर करें, तो हमें सामुदायिक जीवन पर वर्नाकुलर आर्किटेक्चर के प्रभावों के विषय में जानकारी मिलेगी। हम पर्यावरण के अनुकूल वास्तुकला की प्रासंगिकता को कूलिंग, वेंटिलेशन, डे लाइटिंग, आदि से संबंधित पर्यावरणीय मुद्दों की प्रतिक्रिया के तौर पर देखते हैं।”

वह आगे बताते हैं, “हमारा विचार है कि संरचना आरामदायक हो, लग्जीरियस नहीं। यदि हम अपनी वर्तमान जरूरतों के लिए अपनी परंपरागत प्रक्रियाओं को बचाने में सफल नहीं हुए, तो हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को जल्द ही नष्ट होते देखेंगे। हमें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और निरंतर उभरती जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीके ढूंढने होंगे, जिसके जिम्मेदार हम ही हैं।”

गुरुग्राम स्थित सेंट एंड्रयूज बॉयज हॉस्टल

सचिन द्वारा गुरुग्राम में निर्मित सेंट एंड्रयूज बॉयज हॉस्टल ऐसी ही सतत वास्तुकला का एक बेजोड़ उदाहरण है। 360 छात्रों वाले इस हॉस्टल को साल 2017 में बनाया गया था। इसमें पारंपरिक और आधुनिक वास्तुकला शैली, दोनों का इस्तेमाल किया गया है। 

इसमें नेचुरल वेंटिलेशन, लाइटिंग और स्टैक इफेक्ट जैसी तकनीकों  का इस्तेमाल करने के साथ ही, एक्सपोज्ड ब्रिकवर्क को अपनाया गया है। इस तरह, सचिन और उनकी टीम ने इमारत को बनाने से लेकर रखरखाव तक की लागत को कम किया।

सचिन बताते हैं, “सामान्यतः इस तरह की इमारतों को बनाने में प्रति वर्ग फीट 1800-2200 रुपये खर्च होते हैं। लेकिन, हमने इस प्रोजेक्ट को महज 1500 रुपए प्रति वर्ग फीट की दर पर पूरा कर दिया।”

एक लागत प्रभावी सतत भवन का निर्माण

इस इमारत का सबसे बड़ा आकर्षण सामने वाला हिस्सा है, जिसे जालीदार बनाया गया है। यह इमारत की सुंदरता को बढ़ाने के साथ ही, इसे थर्मल इन्सुलेशन और प्राकृतिक रोशनी प्रदान करता है।

जाली की रचना इस तरीके से की जाती है, जो प्रत्यक्ष धूप को 70 प्रतिशत तक कम कर देती है, इससे इमारत को ठंडा रखने में मदद मिलती है।

कैसे काम करती है यह तकनीक

जालीदार संरचना ने न सिर्फ इसके निर्माण लागत को कम किया, बल्कि इसे सस्टेनेबल भी बनाया। उदाहरण के तौर पर, स्थानीय स्तर पर ईंटों को उपलब्ध करके, टीम ने परिवहन लागत को कम किया और इससे कार्बन फुटप्रिंट को भी कम करने में मदद मिली।

सचिन बताते हैं, “हमने इसकी सहायक दीवार को स्टील की सलाखों के जरिए मजबूत किया, ताकि ब्रिक्लेइंग के लिए मोर्टार की आवश्यकता कम हो। स्लैब और कॉलम, दोनों के लिए रेडी-मिक्स कंक्रीट (आरएमसी) का इस्तेमाल किया गया है, जिससे ऑन-साइट कंक्रीट के अपव्यय को कम करने में मदद मिले।”

इसके अलावा, बालकनी में भी ब्रिकवर्क किया गया है, अंदरूनी और बाहरी हिस्से के बीच बफर जोन के रूप में कार्य करता है।

इस हॉस्टल की एक और खासियत एक भौतिक सिद्धांत है जिसे ‘स्टैक इफेक्ट’ कहा जाता है। इससे इमारत को प्राकृतिक रोशनी मिलती है।

यह सोलर चिमनी के रूप में भी काम करता है, जो स्टैक इफेक्ट के जरिए इमारत में वेंटिलेशन की सुविधा देता है। यह संकल्पना इमारत में हवा के आवागमन को बनाए रखती है। इमारत गर्म हवा को अपनी ओर खिंचती है और इसे स्वतः बाहर करती है। हालांकि, इसका इस्तेमाल कम किया जाता है, लेकिन यह एक आसान पैसिव कूलिंग मेथड है।

इस नतीजे से खुश, सेंट एंड्रयूज संस्थान के उपाध्यक्ष, रोहित राणा कहते हैं, “डबल-हाइट बालकनी और एट्रियम का विचार शानदार था। छात्र, इस जगह का इस्तेमाल ब्रेकआउट के दौरान करते हैं। इससे छात्रों के बीच मेलजोल को बढ़ावा मिला है, जो कि किसी भी शैक्षणिक-सह-आवासीय परिसर के लिए जरूरी है। जाली, इमारत को छाया प्रदान करने के लिए एक सरल, लेकिन प्रभावी साधन है।”

यह पैसिव कूलिंग तकनीक हॉस्टल के इंटीरियर को काफी हद तक ठंडा रखने में मदद मिलती है और एसी की जरूरतें 40 प्रतिशत तक कम हो गई।

इमारतों को बनाने में इस तरह की तकनीक का अधिक से अधिक इस्तेमाल होना चाहिए, इससे पर्यावरण को भी नुकसान कम होगा। द बेटर इंडिया इस तरह के प्रयासों के लिए जीरो एनर्जी डिज़ाइन लैब (जेडईडी लैब) को शुभकामनाएं देता है।

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संपादन- जी. एन झा

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