साल 2013 में जब अशोक अलीसेरिल थमारक्षण, यूके के एसेक्स में अपना घर सेट कर रहे थे, तब अक्सर उन्हें दूर कहीं छोटे विमानों के उड़ने की आवाज़ सुनाई देती थी। एयरक्राफ्ट की आवाज़े सुनकर उन्हें काफी उत्सुकता होती थी। एक दिन उन्होंने यह पता लगाने का फैसला किया कि आखिर आस-पास एयरफील्ड कहां है।
एयरफील्ड पर जब उन्होंने विमानों को देखा, तो पाया कि उन विमानों को उड़ाने वाले उनके जैसे ही आम लोग थे। उन्हें देख कर उनके मन में एक सवाल आया कि क्या वह भी विमान उड़ा सकते हैं?
लेकिन इससे पहले कि वह विमान उड़ाने के लिए अपना लाइसेंस प्राप्त करने के बारे में सोच पाते, उनके रास्ते में दूसरी प्राथमिकताएं आ गईं। सबसे पहले, उन्हें अपने नए घर को सेट करना था और फिर दो बच्चों के देखभाल की जिम्मेदारी भी थी।
आखिरकार 2018 में उन्हें अपने शौक़ को पूरा करने के लिए कुछ समय मिला। उन्होंने एक पायलट कोर्स किया और सितंबर 2019 में यूके सिविल एविएशन अथॉरिटी से अपना लाइसेंस हासिल किया, जो पूरे यूरोप में मान्य है और फिर यहाँ से, उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।
कैसा था पहली बार उड़ान भरने का एहसास?

दिलचस्प बात तो यह है कि इस साल, अशोक का विमान उड़ाने का शौक़ एक कदम और आगे बढ़ा है। हाल ही में अशोक ने खुद एक चार-सीटर विमान/एयरक्राफ्ट बनाया है। इस प्लेन का नाम उन्होंने अपनी छोटी बेटी दीया के नाम पर रखा है। ‘जी-दीया’ नाम के इस प्लेन को बनाने में करीब 1.8 करोड़ रुपये का खर्च आया और इसे बनाने में लगभग दो साल का समय लगा।
39 वर्षीय अशोक मूलत: केरल के अलप्पुझा के रहनेवाले हैं। वह 2006 में ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में मास्टर्स के लिए यूके गए थे। वह अपनी पत्नी अभिलाषा और बेटियों तारा व दीया के साथ एसेक्स में बस गए और वर्तमान में फोर्ड मोटर कंपनी में काम करते हैं।
अशोक ने बताया, “जब मैंने 2018 में पहली बार एक विमान उड़ाया, तब से ही मुझे इससे प्यार हो गया। यह एकदम आजाद होने जैसा था। जब मैं हवा में था, तो मुझे लगा कि मैं स्वतंत्र हूं।”
नियमित रूप से विमान उड़ाने के लिए उन्हें एक लाइसेंस की ज़रूरत थी। वह कहते हैं, “मैंने तैयारी कर परीक्षा दी और आवश्यक फ्लाइंग घंटों को प्राप्त करने पर काम किया, जिसके बाद मुझे 2019 में अपना लाइसेंस मिला।”
लाइसेंस मिलने के बाद, अशोक ने पूरे ब्रिटेन में कुछ यात्राएं कीं। इसके बाद वह अपने परिवार के साथ उड़ान भरना चाहते थे। इसलिए उन्होंने विकल्पों की तलाश शुरू की।
खरीदने के बजाय, एयरक्राफ्ट बनाने का फैसला क्यों?
अशोक बताते हैं कि किराए के लिए उपलब्ध ज्यादातर विमान दो-सीटर होते हैं, जो उनके चार सदस्यों वाले परिवार के लिए काफी नहीं था। इसके अलावा, जो भी चार-सीटर विमान मौजूद थे, वे बहुत पुराने और महंगे थे।
अशोक बताते हैं, “मैंने विभिन्न विकल्पों को देखा, जिसमें विमान शेयर करना या एक पुराना खरीदना भी शामिल था। कुछ भी संभव नहीं लग रहा था, क्योंकि उपलब्ध चार-सीटर्स सेसनास थे, जो 1970 में बनाए गए थे। नए विमान की कीमत आधे मिलियन पाउंड से ज्यादा थी।”
वह बताते हैं कि वह लाइट एयरक्राफ्ट एसोसिएशन का हिस्सा हैं, जो लोगों को अपने विमान बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। एसोसिएशन के माध्यम से, उन्हें एहसास हुआ कि एक नया विमान बनाना सबसे अच्छा विकल्प होगा।
कुछ रिसर्च के बाद, उन्हें दक्षिण अफ्रीका के चार-सीटर, स्लिंग TSI के बारे में पता चला। हालांकि, जैसा कि यह यूके में उपलब्ध नहीं था, अशोक ने एक टेस्ट उड़ान के लिए जोहान्सबर्ग के लिए उड़ान भरी। इस विमान से वह काफी प्रभावित हुए और वापस लौटते ही विमान का किट ऑर्डर कर दिया। अशोक कहते हैं कि वह पहले शख्स हैं, जिन्होंने यूके में एक स्लिंग टीएसआई बनाया है।
वर्क फ्रॉम होम का मिला फायदा

अशोक तक एयरक्राफ्ट किट, अप्रैल 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान पहुंची। अशोक बताते हैं कि एक विमान के लिए सात किट लगते हैं और उन्होंने एक-एक कर सात किट ऑर्डर कीं। उन्होंने बताया, “हर किट में लगभग 2-3 बॉक्स होते हैं और बहुत ज्यादा जगह घेरते हैं। मैंने सबसे पहले टेल किट से शुरुआत की। इतनी बड़ी जगह का प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती थी। हमारा पूरा घर भर गया था। मेरी पत्नी और बेटी तारा ने हर किट को खोलने में मदद की।”
प्लेन बनाने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बात करते हुए वह बताते हैं, “असेंबली के निर्देश ड्रॉपबॉक्स के माध्यम से भेजे जाते हैं। मैंने YouTube वीडियो की सहायता भी ली। असेंबली करने की तुलना में मशीन को कैसे बनाया जाए, इस पर रिसर्च करने में ज्यादा समय लगा।”
अशोक कहते हैं कि एक बार जब आप तकनीक सीख लेते हैं, तो असेंबल करने में ज्यादा समय नहीं लगता। जहां एक विंग को असेंबल करने में उन्हें एक महीने का समय लगा, वहीं दूसरे विंग के लिए सिर्फ एक हफ्ते का वक्त लगा। एक बार जब विमान बनने लगा, तो घर में इतनी जगह नहीं थी कि वहाँ विमान फिट हो सके। इसलिए अशोक ने अपने बगीचे में 5X3 मीटर का वर्कशॉप बनाया और वहां असेंबली की प्रक्रिया शुरू की।
चूंकि वह घर से काम कर रहे थे, इसलिए वह हर शाम दो घंटे अपने विमान बनाने के प्रोजेक्ट पर बिताते थे। वह सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक काम करते थे और फिर शाम को वर्कशॉप जाते थे।
इस एयरक्राफ्ट को बनाने में कितना लगा समय?
1,500 घंटे से अधिक की मेहनत और प्रयास के बाद, अशोक का विमान नवंबर 2021 में तैयार हो गया। लाइट एयरक्राफ्ट अथॉरिटी ने इस पूरी प्रक्रिया में 12 निरीक्षण किए और आखिरकार फरवरी 2022 में इसे उड़ान के लिए सर्टिफाइ किया।
अशोक बताते हैं कि जब उन्होंने पहली बार खुद अपने द्वारा बनाए गए विमान की कमान संभाली, तो उनकी खुशी की सीमा नहीं थी। सबसे पहले, उन्होंने अपने दोस्तों के साथ फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रिया की एक सप्ताह लंबी यात्रा की। फिर उन्होंने अपने परिवार के साथ आइल ऑफ वाइट की यात्रा की और अब वे चारों जल्द ही एक बड़ी यात्रा की योजना बना रहे हैं।
इस विमान को बनाने का खर्च काफी ज्यादा था। इस खर्च का प्रबंधन करने के लिए अशोक और उनके परिवार को अपने व्यक्तिगत खर्च में कटौती करनी पड़ी और कुछ कर्ज भी लेना पड़ा। वे कहते हैं, “फाइनेंस एक बड़ा मुद्दा था। हमने अपनी बचत से लगभग एक-तिहाई खर्च का प्रबंधन किया और बाकी के लिए कर्ज लेना पड़ा। लॉकडाउन से भी मदद मिली, क्योंकि इस समय हमारे खर्च भी कम हो गए थे। मेरी पत्नी शुरू में बहुत खुश नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे वह समझने लगी।”
खर्च को कैसे किया मैनेज?

एक बातचीत में, अशोक की पत्नी अभिलाषा ने बताया, “हम नर्सरी फीस नहीं दे रहे थे और काम पर आने-जाने में होने वाले खर्चे की भी बचत हो रही थी। हम अपने सभी किराने का खर्च क्रेडिट कार्ड पर डालते थे, ताकि वेतन बचा सकें। हमारे लिए लॉकडाउन का मतलब था कि हमें कहीं जाना नहीं है।”
अब, इस एयरक्राफ्ट में तीन पायलटों की हिस्सेदारी है, जिससे उनका वित्तीय भार कम हुआ है। अशोक कहते हैं, “हम अब तीन अन्य लोगों के साथ विमान साझा करेंगे। इससे हमें अपने कर्ज़ चुकाने में मदद मिलेगी।”
वह आगे बताते हैं कि पैसे की बात एक तरफ है, लेकिन जब आप विमान में बैठते हैं, तो सबकुछ सार्थक लगता है। अशोक हंसते हुए बताते हैं, “जिस विमान को मैंने खुद से बनाया, उसमें बैठना बहुत अच्छा लगता है, यह एहसास अद्भुत है। मेरी पत्नी और बच्चों ने भी उड़ान का आनंद लिया। मेरी पत्नी खुश है कि हमें हवाईअड्डे की अव्यवस्था से नहीं गुजरना पड़ता।”
मूल लेखः सौम्या मणी
संपादनः अर्चना दुबे
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