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मल्टीलेयर खेती के लिए किसान आकाश चौरसिया को मिले 20 से भी ज्यादा राष्ट्रीय पुरस्कार

Akash Chaurasiya is doing multi layer farming

पिछले कुछ वर्षों में, धीरे-धीरे देश के छोटे शहरों में एक नया कृषि मॉडल फैल रहा है। इस मॉडल के जरिए किसान न केवल बेहतर फसल उगा पाने में सक्षम हो रहे हैं, बल्कि उनकी नियमित आय में भी अच्छा-खासा इज़ाफा हो रहा है। इस नए कृषि मॉडल का नाम है मल्टीलेयर फार्मिंग। इस तकनीक की मदद से कम जगह में ज्यादा फसलें उगाई जा सकती हैं। इस नए मॉडल के बारे में लोगों को जागरूक करने में, मध्यप्रदेश के रहनेवाले आकाश चौरसिया बड़ा योगदान दे रहे हैं।

इस काम के लिए उन्हें 20 से ज्यादा राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। 32 वर्षीय चौरसिया ने लगभग 80,000 किसानों को व्यवहारिक ट्रेनिंग और लगभग 12 लाख अन्य लोगों को मल्टीलेयर खेती के बारे में शिक्षित किया है।

आकाश चौरसिया का जन्म मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के एक छोटे से शहर सागर में हुआ। आकाश का परिवार सुपारी की खेती करता है, हालांकि बचपन से ही उनका सपना डॉक्टर बनने का था। द बेटर इंडिया से बात करते हुए आकाश बताते हैं कि वह हमेशा  बीमारियां, डॉक्टर और अस्पतालों की बढ़ती संख्या के बारे में सोचा करते थे। फिर उन्होंने महसूस किया कि सभी बीमारियों की जड़ वह है जो हम खाते-पीते हैं। काफी सोचने के बाद उन्होंने खेती के माध्यम से समस्या के जड़ से खत्म करने का फैसला किया।

मल्टी-लेयर फार्मिंग का ख्याल कैसे आया?

एक बार जब आकाश चौरसिया ने खेती करने की ठान ली, तब उन्होंने कई किसानों से बात की और उनके सामने आने वाली कई समस्याओं पर सोचना शुरू किया। इसमें पानी और खाद से संबंधित मुद्दों से लेकर जलवायु परिवर्तन और कीटों के हमलों, डिस्ट्रिब्यूशन और बिक्री तक शामिल था। साल 2014 में, इन सभी समस्याओं के समाधान के रूप में उन्हें एक ही जमीन पर कई फसलें उगाने का विचार आया।

उन्होंने फसलों की दो लेयर से शुरुआत की, एक अंडरग्राउंड और दूसरी सतह पर। उन्होंने सबसे पहली बार टमाटर और करेला उगाया। बाद में अन्य कॉम्बिनेशन के साथ भी प्रयोग किया। आकाश के सामने जल्द ही पहली चुनौती आई – और वह थी घास और खरपतवार की समस्या।

वह बताते हैं, “बीज से बहुत सारी घास निकलती है, जो फसल को कमजोर करती है और उन्हें हटाना महंगा होता है।” इस समस्या को हल करने के लिए, उन्होंने सतह पर पत्तेदार फसलें जैसे कि पालक, धनिया, मेथी आदि लगाना शुरु किया। पत्तेदार फसलें तेजी से बढ़ती हैं, जिसके कारण घास के लिए काफी कम जगह बचती है। वह बताते हैं, “इस मॉडल से, घास लगभग 80 प्रतिशत नियंत्रित हो जाती है।”

बहुमंज़िला इमारतों से आकाश चौरसिया को मिली प्रेरणा

Multilayer Farm

आकाश की अगली चुनौती जगह की कमी थी। वह कहते हैं कि पहले, उनके पास खुद की ज़मीन नहीं थी, इसलिए वह जानते थे जगह होना कितना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, ज्यादातर किसानों के पास आज केवल सीमांत खेत हैं, जिसका मतलब है उनके पास “दो से पांच एकड़ की ज़मीन” है। एक पीढ़ी बाद, जैसे-जैसे वह ज़मीन बटेगी, हर एक किसान के पास और भी कम ज़मीन होगी। इसलिए आकाश ने कम ज़मीन पर ज्यादा फसल उगाने के तरीके के बारे में सोचना शुरु किया। 

फिर उन्हें शहर की बहुमंजिला इमारतों से प्रेरणा मिली। वह कहते हैं, “मुझे यह आइडिया काफी पसंद आया कि बहुमंजिला इमारतों में कम जगह में अधिक लोगों के रहने की व्यवस्था होती है।” इसके बाद, 6.5 फीट की ऊंचाई पर, उन्होंने बांस से एक संरचना का निर्माण किया और उसके ऊपर एक जाली लगाई, जिससे संरचना आंशिक रूप से सूरज के प्रकाश के संपर्क में हो और आंशिक रूप से छाए के।

दो फसलें उगाने के बाद, उन्होंने तीसरी लेयर के लिए लताओं वाले पौधे चुने। इस बाद चौथी लेयर पर आम, पपीता, या सपोटा (चीकू) जैसे मौसमी फलों के पेड़ लगाए, जो मल्टी-लेयर खेत का सबसे लंबा भाग है।

क्या हैं मल्टीलेयर खेती के फायदे? 

फसलों की कई परतें पानी को सूखने से रोकती हैं। आकाश चौरसिया बताते हैं, “खुले मैदान की तुलना में लगभग 80 प्रतिशत पानी की बचत होती है।” वह कहते हैं कि जहां एक खुले मैदान में एक फसल के लिए 100 लीटर पानी का उपयोग होता है, वहीं एक मल्टीलेयर खेत में चार फसलों के लिए उस पानी का केवल 30 प्रतिशत किया जाता है। इसलिए प्रत्येक फसल लगभग सात प्रतिशत पानी से बढ़ती है और खुले मैदान की तुलना में, लगभग 93 लीटर पानी की बचत होती है।”

चार तरह की फसलों से किसान को भी हर एक फसल से आय मिलती है। उदाहरण के लिए, मार्च से जुलाई तक पत्तेदार हरी सब्जियां, जैसे कि पालक से किसानों की अच्छी कमाई हो जाती है। अप्रैल से नवंबर तक, लाल लौकी की तरह लताएं फलती हैं। अगस्त में, अदरक जैसी अंडरग्राउंड फसल पक जाती है और बेचने के लिए तैयार रहती है।

वहीं, दिसंबर से जनवरी तक पपीते का पेड़ फल देता है। आकाश खुद मल्टीलेयर खेती से 30 लाख रुपये सलाना कमा रहे हैं। वह कहते हैं, “ऐसा एक भी हफ्ता नहीं है, जिसमें हमारी कमाई न होती हो।” वह जोर देते हुए कहते हैं कि यह मॉडल किसानों को आर्थिक रूप अधिक से स्वतंत्र बनाता है। 

मल्टीलेयर फार्मिंग में बायो डिस्पोजेबल चीज़ों का होता है इस्तेमाल

आकाश चौरसिया, किसानों को अपनी मल्टी लेयर कृषि तकनीक के बारे में बताते हुए

यह मल्टीलेयर फार्मिंग एक अधिक टिकाऊ मॉडल भी है, क्योंकि इस मॉडल के लिए किसान जो बांस या लाठी इस्तेमाल करते हैं, वे बायो डिस्पोजेबल होते हैं। इसके लिए किसानों को बाजार जाने या पैसे खर्च करने की भी ज़रूरत नहीं होती है। अगर पॉलीहाउस की बात की जाए, तो वह कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करता है, जिसका ठीक से निपटारा नहीं किया जा सकता।

कार्बन डाइऑक्साइड पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचाता है। उसकी तुलना में यह विधि पर्यावरण के अनुकूल है, किसानों के लिए अधिक लाभदायक है और अच्छा, केमिकल फ्री भोजन प्रदान करती है। आकाश कहते हैं, “अच्छा खाना सबका अधिकार है। जितने ज्यादा किसान ऐसा करेगें, उतनी ज्यादा प्लेटों तक केमिकल मुक्त खाना पहुंचेगा। यह देखकर अच्छा लगता है, जब लोग अच्छा खाना खाते हैं।”

लोगों को व्यक्तिगत रूप से शिक्षित करने के अलावा, आकाश का एक YouTube चैनल भी है, जिसके माध्यम से वह अपने काम के बारे में जागरूकता फैलाते हैं। उन्होंने इससे संबंधित लिट्रेचर आसानी से उपलब्ध कराया है, ताकि कोई भी मल्टीलेयर  खेती शुरु कर सके।

इस तकनीक के ज़रिए आकाश चौरसिया को अब ज्यादा मिल रही फसल

आकाश चौरसिया का मल्टी लेयर खेत

आकाश कहते हैं, ”बेड तैयार करने से लेकर दवा तैयार करने और खेती तक, मैं किसानों से हाथ से ही सारी प्रक्रियाएं करवाता हूं और उन्हें सिखाता हूं।” किसानों को किसी कंपनी से मॉडल खरीदने के झंझट से नहीं गुजरना पड़ता है और यह मॉडल दूर-दूर तक फैल भी रहा है।

उदाहरण के लिए, कोलकाता के कल्याणी में नदिया जिले के रहनेवाले सोरव पात्रा तीन महीने से मल्टीलेयर खेती कर रहे हैं। वह कहते हैं, “इससे पहले मैं केवल एक फसल उगा पाता था। अब मैं एक साथ अधिक फसलें उगा सकता हूँ। संरचना की ऊंचाई 6.5 फीट रखने से मैं अंदर एक और फसल भी उगा सकता हूं। तीन महीने में ही, मुझे एक मजबूत गुणवत्ता वाली फसल मिली है। इससे पहले मुझे पूरे साल उपज के लिए इंतजार करना पड़ता था।”

आकाश को उम्मीद है कि जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ेगी, ज्यादा से ज्यादा लोग इस मॉडल को अपनाएंगे। वह कहते हैं, “सामान्य खेती आसान है। ट्रैक्टर लो और बीज बोओ। मल्टीलेयर खेती में संरचना की योजना बनाने के लिए बहुत अधिक इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है।”

मूल लेखः आयुषी अग्रवाल

संपादनः अर्चना दुबे

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