इस गणेश चतुर्थी पर करे पर्यावरण की रक्षा भी और एक घायल हाथी की सहायता भी

गणेश चतुर्थी के दौरान लाखो प्लास्टिक तथा प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की बनी गणपति की मूर्तियाँ तालाबो तथा नदियों मे विसर्जित की जाती है। परन्तु एक संस्था ऐसी है जो की आपको न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियाँ दिलाने में मदत करती है, बल्कि उनका विसर्जन भी जिम्मेदारी से करने में सहायता करती है। इतना ही नहीं आप इन मूर्तियों की घुली हुई मिटटी को भी दुबारा इस्तेमाल कर सकते है।

गणेश चतुर्थी के दौरान लाखो प्लास्टिक तथा प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की बनी गणपति की मूर्तियाँ तालाबो तथा नदियों मे विसर्जित की जाती है। परन्तु एक संस्था ऐसी है जो की आपको न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियाँ दिलाने में मदत करती है, बल्कि उनका विसर्जन भी जिम्मेदारी से करने में सहायता करती है। इतना ही नहीं आप इन मूर्तियों की घुली हुई मिटटी को भी दुबारा इस्तेमाल कर सकते है।

पिछले साल गणेश चतुर्थी के दौरान बंगलुरु के एक आई.टी कंसलटेंट, श्री शशि शाह ने कई लोगो को सुन्दर सुन्दर गणेश की मूर्तियों को अपनी कार में लेकर विसर्जित करने जाते हुए देखा ।
पर इस जश्न के माहौल में भी शशि का ध्यान एक बात की तरफ आकर्षित हुआ और वह था POP से बने तथा कृत्रिम रंगों से सजी मूर्तियाँ ।
इसके बाद शशि इस बात के बारे में बेहद गंभीरता से सोचने लगे। साल दर साल ये मूर्तियाँ पानी में विसर्जित की जाती आई  है। इससे न तो सिर्फ बहते पानी में अडचने आती है बल्कि पूरी तरह न घुलने के कारण यह हमारे पर्यावरण को भी नुक्सान पहुचाती है ।

अपने दोस्त सुबरू के साथ मिलकर शशि ने एक कंपनी खोली जो की सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियाँ ही नहीं बनाते बल्कि उन्हें उचित तरीके से विसर्जित करने में भी मदत करते है।

Ganesha idols are bought from local artisans near Bengaluru.
बंगलुरु के स्थानीय कारीगरों से मूर्तियाँ खरीदी जाती है ।

हालांकि इसका विचार उन्हें २०१४ में ही आ गया था, पर इस साल १७ अगस्त को उन्होंने औपचारिक तौर पे अपनी कंपनी मडपयेज़ (Mudpiez) की स्थापना की । यह कंपनी पर्यावरण के अनुकूल गणेश की मूर्तियाँ आप के घर तक तो पहुंचती ही है साथ में विसर्जन के दिन इन्ही मूर्तियों को ले जाने भी आती है। इसके बाद इन मूर्तियों को पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बगैर विसर्जित किया जाता है ।

“हर कोई मूर्तियों को तालाब में विसर्जित करता है । ज़्यादातर मूर्तियाँ POP, प्लास्टिक तथा इसी तरह की चीजों से बनी होने के कारण पानी में घुलती ही नहीं। और ये कितना नुकसानदेह हो सकता है, ये हम सभी जानते है। पर ऐसा नहीं है की हर जगह इसी तरह की मूर्तियाँ बेचीं जाती है। कई ऐसी संस्थाए है जो पर्यावरण के अनुकुल बनी मिट्टी की मूर्तियाँ बेचते है । सो हमने इसी सोच को अगले स्तर पर पहुँचाने का सोचा। हमने दो चीजों पर ध्यान केन्द्रित किया, एक इन मिट्टी की सुरक्षित मूर्तियों को घर घर पहुँचाना और दूसरा – इन्हें वापस लाकर सुरक्षित तरीके से विसर्जित करना।“
– सुबरू

मूर्तियों की तलाश में शशि और सुबरू बंगलुरु के पास के कुछ गाँवों में गए। उन्होंने नारायणपुरा गाँव में बसे तीन मूर्तिकारो को ढूंड निकाला । इन मूर्तिकारो से उन्होंने ५०० मूर्तियाँ बनवाई । सुबरू के मुताबिक़ जैसे जैसे मांग बढती है वैसे वैसे वे ज्यादा मूर्तियों का आर्डर देते है ।

मडपयेज़ की वेबसाइट पर फिलहाल ९ विभिन्न तरीके की मूर्तियाँ उपलब्ध है। सबसे बड़ी मूर्ति १७ इंच की है तथा उसका मूल्य रु.७५० है । और सबसे छोटी मूर्ति १० इंच ऊँची है तथा उसका मूल्य रु.४०१ है।

The idols are made only with clay and no colour is used.
यह मूर्तियाँ केवल मिट्टी से बनायीं जाती है। किसी भी रंग का उपयोग इनमे नहीं होता।

पर इस संस्था की सबसे ख़ास बात पर्यावरण के अनुकूल बनी मूर्तियाँ उपलब्ध कराना नहीं है, बल्कि उन्हें उचित तरीके से विसर्जित करने में लोगो की मदत करना है।
विसर्जन के लिए नारायणपुरा तथा बानेरघट्टा में कृत्रिम जलाशय बनाए जाते है। और फिर नदियों तथा तालाबो को दूषित करने के बजाये इन जलाशयों में गणपति विसर्जन किया जाता है ।
तीन दिन तक इन मूर्तियों को इसी जलाशय में ही रखा जाता है जब तक की ये पूरी तरह घुल नहीं जाती । एक बार सारी मिट्टी घुल जाने पर मूर्तिकारो द्वारा इसी मिट्टी का किसी और चीज़ को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है ।

इस पुरे कार्यक्रम को और सरल बनाने के लिए मडपयेज़ घर घर जाकर मूर्तियाँ इकठ्ठा करते है तथा उन्हें एकसाथ ले जाकर उनके द्वारा बनाये गए जलाशयों में विसर्जित करते है।

Shashi and Subru
शशि और सुबरू – मडपयेज़ के निर्माता

सुबरू कहते है –
“इस तरह हम न केवल समय, उर्जा तथा पैसो की बचत करते है, बल्कि ट्रैफिक को भी बहोत हद तक कम करने में सफल होते है । क्युकी लोगो को मूर्ति विसर्जन के लिए घर से निकलना ही नहीं पड़ता।“

सुबरू और शशि अब इस संस्था को दुसरे शहरो में भी शुरू करना चाहते है। इसके अलावा वे दुसरे त्योहारों जैसे की दशेहरा और बोम्माला कोलुवु के दौरान भी इसी तरह का अभियान चलाना चाहते है ।
कोलकाता के मूर्तिकारो से इनकी बातचीत चल रही है तथा जल्द ही दशहरे के लिए भी दुर्गा माँ की मिट्टी की मूर्तियाँ भी तैयार करवा ली जाएँगी ।
इन मुर्तियों को बबल रैप पैकिंग के बदले कागज़ से ही पैक करने का भी विचार इन दोनों ने किया है ।
इसके साथ ही मूर्तियाँ बेचकर जो भी लाभ इन दो दोस्तों को मिलेगा उसका १० से १५ प्रतिशत हिस्सा ये वाइल्ड लाइफ रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर, बंगलुरु (Wildlife Rescue & Rehabilitation Centre (WRRC), Bengaluru) द्वारा बचाए गए एक हाथी की देखभाल के लिए देना चाहते है।

सुबरू WRRC से जुड़े हुए है। वे बताते है की जिस हाथी की वे मदत करना चाहते है वह एक महावत का हाथी था । पर यह हाथी एक दुर्घटना का शिकार हो गया। इसके बाद वह किसीके काम का नहीं रहा और उसे उसके मालिक ने छोड़ दिया। किसी तरह वह एक मंदिर में पहुंचा जहाँ से WRRC के कर्मचारियों ने उसे बचाया तथा बंगलुरु ले आये ।

यह हाथी अब बंगलुरु में है पर उसे चिकित्सीय सहायता की ज़रूरत है । इसीलिए मडपयेज़ अपनी कमाई का कुछ हिस्सा इस हाथी के इलाज के लिए देना चाहते है।
यदि आप इस गणेश चतुर्थी पर अपने पर्यावरण की भी रक्षा करना चाहते है तो मिटटी के गणेश की मूर्ति खरीदने के लिए मडपयेज़ की वेबसाइट पर जाए । अधिक जानकारी के लिए ईमेल करे subru@mudpiez.in , shashi@mudpiez.in

बेटर इंडिया की तरफ से गणेश चतुर्थी की  हार्दिक शुभकामनाएं !!!
गणपति बाप्पा मोरया !!!


 

मूल लेख- श्रेया पारीक 

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